विनय गुप्ता
अगले हफ्ते देश की सबसे पुरानी पार्टी को नया कमांडर इन चीफ मिल सकता है। 10 जुलाई को कांग्रेस
वर्किंग कमिटी की मीटिंग बुलाने की तैयारी की जा रही है जिसमें राहुल गांधी की जगह नए अध्यक्ष का
चुनाव हो सकता है। दिसंबर 2017 में अध्यक्ष बने राहुल गांधी ने आम चुनाव में हुई हार के बाद
इस्तीफा दे दिया था। हालांकि पार्टी ने एक महीने से अधिक समय तक उन्हें मनाने की कोशिश की,
लेकिन आखिरकार राहुल नहीं माने और अब पार्टी नया अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया में आगे बढ़ चुकी है।
अर्से बाद गांधी परिवार से अलग पार्टी नेतृत्व पर मुहर लग सकती है। जाहिर है, पार्टी के लिए यह
आसान नहीं होगा। अभी नया अध्यक्ष चुने जाने से पहले ही कई नाम चर्चा में आ चुके हैं और हर नाम
पर कुछ लोगों का साथ तो कुछ नेताओं का प्रतिरोध भी सामने आ रहा है। सोनिया गांधी और राहुल
गांधी ने जानबूझ कर पूरी प्रक्रिया से खुद को अलग कर लिया है और पूरी संभावना है कि दोनों मीटिंग
में भी न शामिल हों।
ऐसा इस आरोप से बचने के लिए है कि गांधी परिवार ने अपनी शर्तों और सुविधा के अनुसार नया नेता
चुन लिया! अभी जो नाम चर्चा में हैं, उनमें सबसे आगे अशोक गहलोत, सुशील कुमार शिंदे और मुकुल
वासनिक हैं। इसके अलावा सचिन पायलट और मल्लिकाजुर्न खड़गे जैसे नेताओं के भी नाम सामने किए
जा रहे हैं। मीटिंग अंतरिम अध्यक्ष के नेतृत्व में होगी जो कि मोतीलाल वोरा हो सकते हैं। कांग्रेस के
संविधान के अनुसार अध्यक्ष अगर अपने पद से हट जाते हैं तो नए अध्यक्ष के चुनाव तक सीडब्ल्यूसी
का सबसे सीनियर नेता स्वाभाविक रूप से अंतरिम अध्यक्ष होता है। मीटिंग में सबसे पहले राहुल गांधी
का अध्यक्ष पद से इस्तीफा स्वीकार किया जाएगा। इसके साथ ही कांग्रेस की तमाम कमिटियां भंग हो
जाएंगी। जाहिर है, अध्यक्ष के चुनाव के तुरंत बाद नई कमिटी गठित करने की भी जल्दी होगी।
आते ही देनी होगी सियासी परीक्षा
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार चुनाव के बाद नए अध्यक्ष को बहुत दिनों की मोहलत नहीं मिल सकती है
क्योंकि आम चुनाव के बाद पहले ही इस मुद्दे पर काफी वक्त जाया किया जा चुका है जिससे
कार्यकर्ताओं में भारी रोष और चिंता है। नए कांग्रेस अध्यक्ष के लिए आगे के रास्ते आसान नहीं रहेंगे।
पहले तो नई टीम का गठन करना होगा जिसमें संतुलन करना बहुत ही कठिन होगा। पहले ही कई
राज्यों में पार्टी साफ दो भागों में बंटी हुई है। पार्टी में युवा और पुराने नेताओं के बीच भी कई मुद्दों पर
सालों से मतभेद रहे हैं। साथ ही हाल में कई नेता पार्टी भी छोड़ चुके हैं। इसके अलावा नए अध्यक्ष को
तुरंत महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरना है जहां चुनाव इसी साल
अक्टूबर में होने हैं। इसके लिए नए अध्यक्ष को बिल्कुल वक्त नहीं मिलेगा।
इन चुनावों में न सिर्फ पार्टी को मजबूत बीजेपी से मुकाबला करना है बल्कि वहां चुनाव से पहले
गठबंधन की संभावना को भी तलाशना है। जाहिर है कि नए अध्यक्ष को पद ग्रहण करते ही कठिन
सियासी परीक्षा देनी होगी। इसके अलावा कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान में भी सरकार बचाने के लिए
पार्टी को एकजुट करना होगा। तीनों राज्यों में आम चुनाव के बाद से ही बीच-बीच में बगावत के सुर
सुनाई पड़ रहे हैं जो पार्टी के लिए कभी भी बड़ा बवंडर बन सकते हैं। इन तीनों राज्यों पर बीजेपी की भी
नजर है। जाहिर है, कांटों का ताज पहनने वाले नए अध्यक्ष को देश की सबसे पुरानी पार्टी का मुखिया
बनने की खुशी मनाने का कोई मौका नहीं मिलने वाला और तुरंत सियासी जंग के मैदान में बतौर
कमांडर उतरना होगा।
वंशवाद से अलग होने का प्रयास
कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनने के बाद जहां उनकी टीम और प्रदर्शन पर सबका ध्यान रहेगा वहीं पार्टी
और देश की राजनीति में गांधी परिवार की प्रासंगिकता पर भी नजर रहेगी। राहुल गांधी ने साफ कर
दिया है कि भले वह किसी पद पर नहीं रहेंगे, लेकिन पार्टी के लिए वह किसी भी भूमिका में उपलब्ध
रहेंगे। पार्टी में अभी भी वही सबसे बड़े नेता हैं और किसी दूसरे नेता का राष्ट्रीय कद उस अनुरूप नहीं
है। सोनिया गांधी पहले से ही राजनीति से खुद को दूर रखने का प्रयास करती रही हैं, लेकिन प्रियंका
गांधी सक्रिय हो चुकी हैं। पार्टी में महासचिव और देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के प्रभारी के रूप में
प्रियंका गांधी का कद बड़ा हो चुका है। जाहिर है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पार्टी के अंदर ताकत
के दो मजबूत केंद्र बने रहेंगे।
जो भी नया अध्यक्ष बनेगा वह इन्हें इग्नोर करने का जोखिम भी नहीं ले सकता है। नब्बे के दशक में
सीताराम केसरी बनाम सोनिया गांधी के टकराव वाले इतिहास से सीख लेते हुए संभव है कि शुरू से ही
दोनों ओर से बीच का रास्ता तलाशा जाए। इन वजहों को देखते हुए गांधी परिवार ने इस प्रक्रिया से खुद
को अलग कर लिया है। नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली बीजेपी वंशवाद का आरोप लगाकर कांग्रेस पर
हमलावर रही है। गांधी परिवार चाहेगा कि नए अध्यक्ष पर डमी होने का आरोप न लगे जिसके लिए वह
खुद को संगठन से अलग रख सकते हैं लेकिन लाख कोशिश के बावजूद गांधी परिवार को कांग्रेस से
अलग रखना नए अध्यक्ष के लिए आसान नहीं होगा और उनकी प्रासंगिकता बिना पद के भी बनी रह
सकती है।