आज फिर स्कूल जाते वक्त बिन्दिया दिखाई पड गयी। ना जाने क्यों यह विन्दिया जब तब मेरे सामने आ ही
जाती है। शायद लॉ ऑफ रिवर्स इफेक्ट मनुष्यों पर कुछ ज्यादा लागू होता है जिस आदमी से हम कन्नी काटना
चाहते हैं या जिसे देखने मात्र से मन खराब हो जाता है वही अकसर आपके सामने आकर खड़ा हो जाता है।
हालांकि बिंदिया ने कभी मेरे साथ कुछ गलत नहीं किया है बल्कि सामने पड़ते ही हमेशा नमस्ते मास्टरजी कहकर
मेरा अभिवादन ही करती है। फिर भी उसकी दिलफेंक अदा, द्विअर्थी बातें और पुरुषों के साथ उन्मुक्त हास
परिहास नारीत्व की गरिमा के अनुरूप कतई नहीं कहा जा सकता। मोहल्ले के लोग उसे चरित्रहीन ही समझते थे
और वही विचार मेरा भी था। हालांकि मेरे अन्दर का शिक्षक और दार्शनिक मानव को उसूलों और रिवाजों की
कसौटी पर मापने के लिए मुझे धिक्कारता था मगर दिमाग की प्रोग्रामिंग तो बचपन से डाले गए संस्कारों से हो
गयी थी। जैसे कम्प्यूटर को प्रोग्राम किया जाता है वह वैसे ही निर्देशों का पालन करता है ठीक उसी प्रकार मानव
मस्तिष्क है।
प्राचीनकाल में की गयी जात-पात, धर्म-अधर्म, चरित्र-दुश्चरित्र की प्रोग्रामिंग के हिसाब से ही आज तक सोचता आ
रहा है क्योंकि अभी तक इस प्रोग्रामिंग को ना ही किसी ने खारिज किया है और ना ही बदलने या अपडेट करने की
कोशिश भी की है। खैर मुद्दे पर आते हैं, बिन्दिया के सामने आते ही मेरा मुंह यूं बनता जैसे कुनैन की गोली जीभ
पर चिपक गयी हो और उसे गले में धकेलना मुश्किल हो रहा हो। बिंदिया के प्रति मेरी सोच और व्यवहार यथावत
था और कुछ हद तक मेरी इस वितृष्णा से वह भी परिचित थी। तभी तो मेरे सामने उसके वैसे बोलचाल और
रंगढंग नहीं होते जैसे दूसरे मर्दों के सामने होते थे। मगर इन दिनों उसका पूर्व से ज्यादा मुझे इज्जत देना और
आंखों ही आंखों में कुछ कहने का प्रयास सिवाय त्रियाचरित्र के कुछ और नहीं लग रहा था। उसकी स्वच्छन्दता के
किस्से आस पास के नौजवानों के मुंह से सुनने को मिल जाते थे उसे यह लोग छमिया, बिल्लो, द्रौपदी इत्यादि
नामों से अलंकृत किया करते थे। बिंदिया भी उनके द्विअर्थी मजाकों का जवाब उतने ही उत्साह से दिया करती थी।
कुछ लोग बिंदिया पर तरस भी खाते क्योंकि बचपन से ही बदनसीबी और उसका चोली दामन का साथ रहा है।
उसका हवलदार बाप दूसरी औरत कर लाया और बिल्लो और उसकी गर्भवती मां को बेसहारा छोड़ दूसरी के साथ
रहने लगा, सात साल की बिंदिया की पढ़ाई छूट गयी और मां और नवजात भाई की जिम्मेदारी उसने घर के मर्द
की भांति संभाल ली कभी घरों में बर्तन झाड़ू करके तो कभी शादियों-पार्टियों में प्लेट सर्व करके। बिंदिया ने खुद
मेहनत मजदूरी की मगर भाई को पढ़ा लिखाकर अच्छी जिन्दगी जीने योग्य बनाया। समय पर भाई ने अपनी
प्रेमिका से शादी भी कर ली, एक बार भी उसे अपनी बड़ी बहन के हाथ पीले करने का विचार नहीं आया जो उसे
पढ़ाने-लिखाने की वजह से अधेडावस्था में पहुंच चुकी थी। नववधू को कुआंरी बड़ी ननद फूटी आंख नहीं सुहाती
ऊपर से मोहल्ले में बिंदिया के बारे में उडती खबरें, समझदार भाई अलग घर लेकर रहने लगा, पोता-पोती के मोह
में कुछ वर्ष बाद मां भी पुत्र के घर चली गयी। कुछ दिन बिंदिया को किसी ने घर से बाहर निकलते हुए नहीं देखा
वह वहीं घर में बंद पड़ी अकेली सुलगती रही, सिसकती रही मगर जब वह घर से निकली तो एक अलग ही नया
सा रूप लेकर जिसे देखकर मोहल्ले वाले स्तब्ध रह गए। कुछ बड़ी बूढ़ी दबी जबान में कहती आम जब पूरी तरह
से पके नहीं तब ही तोड़ लिया जाए तो ठीक नहीं तो आप ही टूटकर गिर जावे है।
मोहल्ले में मेरा ही एक पुराना छात्र किशन भी था नाम के अनुरूप छैल-छबीला, ना जाने कितनी गोपियों के साथ
अनगिनत रास रचाए उसने। इन दिनों बिंदिया पर उसकी नजरें इनायत थी। मैं उसे कई बार समझा बुझा चुका था
कि सही रास्ते पर आ जाए अपने पिता के ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय में हाथ बंटाए, वह गर्दन झुका सारी बात सुनता
पर अपनी आदतों से बाज ना आता। उसके पिताजी मुझे बहुत सम्मान देते और अकसर अपने बिगड़े बेटे को रास्ते
पर लाने की गुजारिश करते। मेरे कहने पर किशन थोडा बहुत ट्रांसपोर्ट का काम देखने लगा था, एक दिन स्कूल से
आने के बाद जलपान कर ही रहा था कि किशन आ गया। आते ही पैर छूकर जैसे हमेशा प्रणाम करता है किया,
मैंने पत्नी से किशन के लिए भी जलपान लाने को कहा और पूछा कि ट्रांसपोर्ट का काम कैसा चल रहा है? अब
कोई गलत काम तो नहीं करता? इत्यादि। किशन ने छोटे बच्चे की तरह गर्दन हिलाकर मना किया। उसकी इस
हरकत से मुझे हंसी आ गयी। मुझे हंसते देख उसे हौसला मिला और मेरा हाथ पकड़कर बोला- मास्साब आपसे एक
मदद चाहिए थी, प्लीज मना मत करना।
उसे यूं गंभीर देखकर मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि पिछले 20 सालों में मैंने उस भावना शून्य व्यक्ति को इस
मुखमुद्रा में कभी नहीं पाया फिर आज ऐसी क्या बात है? मैं चकरा गया। फिर हंसते हुए कहा -कहीं नुकसान
वुक्सान कर आया लगता है। अब पिताजी से बचने के लिए मेरी जरूरत महसूस हुई है, हैं?
किशन-नहीं गुरूजी बात कुछ और है।
मैंने कहा-अरे अब बतायेगा भी या यूं ही पहेलियां बुझाएगा।
किशन- मैं शादी करना चाहता हूं। अपना घर बसाना चाहता हूं।
मैं चैंक गया क्योंकि कितने सालों से मैं और किशन के बापू उसे शादी करने के लिए कहते आ रहे थे और वह
मजाक से कहता-अरे गुरूजी एक शादी से मेरा क्या होगा पहले के राजा महाराजाओं के मजे थे चाहे जितनी रानियां
रख लें अब तो भारतीय कानून ने किसी काम का नहीं छोड़ा।किशन के बापू भी उदास होकर कहते, गुरूजी अब तो
हमें लग रहा है कि बिना पोते पोतियों का चेहरा देखे ही इस संसार से जाना पड़ेगा। मैंने कहा, देर आये, दुरुस्त
आये। अभी तेरे पिता को फोन करता हूं, सुनकर खुश हो जायेंगे।
खुश नहीं होंगे दो जूते लगायेंगे मेरी खोपड़ी पर। किशन ने अधीरता से कहा।
मैंने हतप्रभ होकर पूछा, देख, तू फिर बात घुमाकर कुछ छिपा रहा है। खुलकर बता क्या बात है?
गुरूजी, मैंने लड़की पसंद कर ली है। आप भी उसे जानते हैं। बिंदिया!
नाम सुनते ही मैं हिल गया और गुस्से में सांप की तरह किशन पर फुफकारते हुए बोला, कोई और सती सावित्री
नहीं मिली तुझे। सीता लड़की ढूंढी है तूने यह बताऊंगा तेरे बाप को?
गुरूजी आप तो जानते हैं कि जैसी वो सीता है वैसा ही मैं राम हूं।
किशन की बात सुन में शब्द विहीन हो गया। मैं एक शिक्षक होकर उदारता का जो ज्ञान अपने छात्रों को ना दे
पाया वही अनमोल ज्ञान मेरे दिशाहीन अयोग्य छात्र ने मुझे दे दिया। अब मैंने किशन को वादा किया कि उसकी
शादी बिंदिया से करवाकर ही दम लूंगा। मैंने किशन के पिताजी से बात करने के लिए मन ही मन भूमिका बनायीं
और तुरंत उनके ऑफिस पहुंच गया। उन्हें इस विवाह हेतु मनाने के लिए हालांकि मुझे काफी पापड बेलने पड़े और
उसके पिताजी को अपनी गारंटी भी देनी पड़ी कि बिंदिया शादी के बाद अच्छे घर की बहुओं की तरह व्यवहार
करेगी और किशन भी अपनी रासलीला छोड़ काम पर ध्यान देगा। कहते हैं ना, अंत भला तो सब भला, आज
बिंदिया और किशन तीन बच्चों के माता-पिता हैं। अब बिंदिया में मुझे सिर्फ एक अच्छी पत्नी और मां दिखाई देती
है। हम गलत को गलत साबित करने के लिए तो हमेशा तैयार रहते हैं मगर गलत को सुधारने का प्रयास नहीं
करते। जाने कब हम अपने दिमाग की प्रोग्रामिंग अपडेट करेंगे! लेकिन जब भी ऐसा किया सच हमारे समाज में,
हमारे देश में कहीं कोई समस्या ही नहीं रहेगी।