-विनोद तकियावाला-
भारतीय राजनीति में घटने वाली घटनाओं की चर्चा आजकल भारत में ही नही वरन सम्पूर्ण विश्व राजनीति के मनीषीयों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। चाहे वह प्रधान मंत्री का विदेशी दौरा रहा हो या पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनावी हिंसा या मणिपुर की दिल दहला देने वाली हिसा की घटना हो इन घटनाओं में एक घटना विपक्षी एकता को लेकर विगत दिनों कनार्टक में कांग्रेस पार्टी की अगुवाई में 26 राजनीतिक दलों की बैठक है। आप को बता दें कि यह विपक्षी दलों की दुसरी बैठक थी। इसके पूर्व विपक्षी पार्टी की गठवन्धन की पहली बैठक बिहार की ऐतिहासिक राजधानी पटना में बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार व लालु यादव के नेतृत्व हुई थी। जिसमें 18 राजनीतिक दलों नें शिरकत किया था। विपक्षी एकता को लेकर सतापक्ष-विपक्ष में आये दिनों काफी नोक झोक व टीका टिप्पणी देखने को मिलता रहता है। केंद्र में सतारूढ़ भाजपा के अगुवाई एनडीए की सरकार इस बैठक के खतरे को भाँपते हुए आनन फानन मे अगले दिनों देश की राजधानी दिल्ली में 38 दलों के कुनबों के शाथ बैठक की। इस 38 दलो में एनडीए पुराने साथी नही दिखे, नये कुनवे कई राजनीतिक दल ऐसे शामिल थे जिसकी मत प्रतिशत की बात तो दुर थी, इस पार्टी ना कोई विधायक या सांसद बनें हैं। इस बैठक की अहमियत इस बात से चलता है कि इस बैठक में प्रधान सेवक के द्वारा ना अपनी उपस्थिति दर्ज कराई ब्लकि अपनी चिर परिचितअंदाज में विरोधी दलों के नाते गठबन्धन को सता प्राप्ति के लिए मजबुरी का बन्धन बताया। अपने कुनबे में सभी राजनीति दलों के लिए दरवाजे खुले रहने का भरोसा दिलाया भले ही उन पर या उनकी पार्टी के किसी नेताओ कितने भष्टाचार के कितने भीआरोप लगा हो। जिसकी झलक आये दिनों देखते को मिलते रहते है। एनडीए की इस बैठक में देशवासियों को यह भरसक भरोसा दिलाने का प्रयास किया कि भाजपा व एनडीए ही 5 राज्यों केआगामी विधान सभा व अगले वर्ष 24 में होने वाले लोक सभा चुनाव में विजय होगी। भारत का विकाश मोदी के नेतृत्व में सम्भव है।
जीतेगा भारत जिसकी चर्चा चहुँ दिशाओ हो रही है। आप के मन कई सवाल व शंका उत्पन्न हो रहे होगें ‘भारत की ड़ंका आप किस देश-किस क्षेत्र में बजने वाली है। मै यहाँ पर स्पष्ट करना चाहुँगा कि आज मै भारत का अपने किसी विदेशी प्रतिदुन्दी टीम से खेल में या किसी अन्तराष्ट्रीय क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धियों पर नही है। बल्कि भारत में दो राजनीतिक दलों के मध्य आगामी वर्ष 2024 मे लोकसभा आम चुनाव में सता पक्ष विपक्ष के मध्य राजनीतिक क्रिकेट पिच पर उतरने के कमर कसने की है। इस संदर्भ में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए व कांग्रेस के कुशल नेतृत्व में आई एन डी आई ए में चुनावी की रणनीति बनाने पर गहन चित्तन मंथन शुरू कर दिया है। आज हम इस पर विस्तार से चर्चा करत है।
विपक्षी एकता के गठबंधन की बैठक में आई.एन.डी.आई.ए (इंडिया) नाम काफी विचार विर्मश के बाद दिया गया है। ‘जीतेगा भारत’ को अपनी टैगलाइन बनाया है। इसी टैगलाइन का अलग-अलग भाषाओं में ट्रांसलेशन भी किया जाएगा। आप को बता दे कि इस बैठक में विपक्षी पार्टियों के गठबंधन का नाम पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के द्वारा इंडिया रखने का प्रस्ताव रखा था। सुत्रों के अनुसार इस बैठक में शामिल हुए विदुथलाई चिरुथिगल काची (वीसीके) पार्टी के चीफ थोल तिरुमावलवन के हवाले से बताया कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस नाम पर सहमत नहीं थे, क्योंकि इंडिया में एनडीए के लेटर्स भी आते हैं। तो वही दुसरी ओर कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि राहुल गांधी ने बैठक के दौरान बताया किइंडिया नाम क्यों रखा जाना चाहिए।
विपक्षी दलों की इस मैराथन मींटिग के दौरान कई नेताओं ने महसूस किया था कि गठबंधन के नाम में भारत भी होना चाहिए। इसके बाद इसे टैगलाइन में शामिल किया गया। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने कहा है कि भाजपा इंडिया नाम पर बेवजह विवाद पैदा कर रही है। भाजपा ने खुद मेक इन इंडिया और शाइनिंग इंडिया जैसी स्कीम निकाली हैं। आप सांसद राघव चड्ढा ने कहा है कि अब चुनाव NDA बनाम इंडिया होंगे और इनमें इंडिया की जीत होगी। विपक्ष की इस महत्वपूर्ण बैठक में ममता बनर्जी और सोनिया गांधी एक-दूसरे के बगल में बैठी थीं। जुलाई 2021 के बाद ये उनकी दूसरी मुलाकात थी। विपक्षी गठबन्धन का नाम रखने से पूर्व सभी विपक्षी नेताओं से इस पर सुझाव मांगे गए थे। बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार शुरुआत में इस नाम से सहमत नहीं थे, लेकिन सभी की सहमति के बाद उन्होंने भी आईएनडीआईए (इंडिया) नाम को स्वीकार कर लिया। लेकिन मीटिंग के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में नीतीश शामिल नहीं हुए थे। इसके पीछे खराब मौसम की प्रिडिक्शन के चलते नीतीश जल्दी चले गए थे, क्योंकि उन्हें एक अन्य बैठक में शामिल होना था। हालांकि उनकी नाराजगी की खबरें भी आ रही हैं। इस पर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष खड़गे ने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि हम सरकार की नाकामियों को उजाकर करें। मैं खुश हुँ कि राहुल, ममता सब सहमत हैं। 2024 में साथ लड़ेंगे और अच्छे परिणाम लाएंगे। यहाँ पर आप के मन में प्रशन उठना स्वाभाविक है कि विपक्षी पार्टी के नाम का अर्थ क्या है। आप मै ज्यादा परेशान ना करते हुए बता दे कि विपक्षी दलों के गठबंधन का नाम इंडिया की फुल फॉर्म इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस है। जिसकी घोषणा कांग्रेसअध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा किया गया। उन्होंने कहा कि आपस में समन्वय स्थापित करने के लिए 11सदस्यों की एक कमेटी और दिल्ली में एक कार्यालय जल्द बनाया जाएगा। जिसकी घोषणा मुंबई में होने वाली हमारी अगली बैठक में होगी। खड़गे ने कहा कि भाजपा ने अपने स्वार्थ के लिए लोकतंत्र की सभी एजेंसियों ईडी, सी बी आई आदि को नष्ट कर दिया है। हमारे बीच राजनीतिक भेद हैं, लेकिन हम देश को बचाने के लिए एक साथ आए हैं। इससे पहले हम पटना में मिले थे, जहाँ16 पार्टियां मौजूद थीं। आज की बैठक में 26 पार्टियों ने हिस्सा लिया। इसमें अखिलेश यादव के साथ उनके चाचा शिवपाल यादव, आरजें डी सुप्रीमो लालू यादव के साथ डी राजा, सीताराम येचुरी, राहुल गाँधी, सोनिया गाँधी और ममता बनर्जी नें अपनी भुमिका निभाई।
8 नए दलों को मिलाकर 26 पार्टियों के नेता आए। सर्वविदित रहे कि इस बार विपक्षी कुनबे को और मजबूत करने के लिए 8 और दलों को न्योता भेजा गया था। इनमें मरूमलारची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम एम डी एम के, कोंगु देसा मक्कल काची के एम डी के, विदुथलाई चिरुथिगल काची (वीसीके), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी), ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (जोसेफ) और केरल कांग्रेस (मणि) ने हामी भरी। इन नई पार्टियों में से के डी एम के और एम डी एम के 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के साथ थीं। दबी जुबान से चर्चा हो रही है कि देश की सता पर इतने समय पर राज्य करने वाली कांग्रेश पार्टी के भविष्य क्या होगा। इस पर सुत्रो के हवाले से कहा जा रहा है कि कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनाव में 370 सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी!बाकी सीटों पर सहयोगी दलों को समर्थन दे सकती है। लोकसभा की कुल 543 सीटों में से बाकी की 173 सीटों पर वह सहयोगी दलों के उम्मींदवार को समर्थन दे सकती है। अगर ऐसा हुआ तो यह पिछले पांच लोक सभाचुनाव (1999, 2004, 2009, 2014 और 2019) में पहली बार होगा जब कांग्रेस 400 से कम सीटों पर चुनाव लड़ेगी। जिसके कारण भारतीय राजनीति की पैनी नजर रखने राजनीतिज्ञ पंडितओं की चित्ता बढ गई है। उनका मानना कि विश्व के बड़े लोकतंत्र भारत में जिस तरह से क्षेत्रीय व छोटे राजनीतिक दलों का ना केवल उदय हुआ है, ब्लकि वे अवसर मिलते ही अपनी स्वार्थ सिद्धि व सता के लोलुपता वश राष्ट्रीय राजनीति दलो को अपनी उंगलीयों पर नचाते है। वह ना केवल भारत राजनीति व प्रजातंत्र के प्रवल समर्थक के लिए खतरे की घंटी है। खैर अभी इस संदर्भ में कुछ कहना जल्द बाजी होगा। फिलहाल आप सभी से यह कहते हुए विदा लेते है-ना ही काहुँ से दोस्ती। ना ही काहुँ से बैर।। खबरी लाल तो माँगे सबकी खैर॥