जीएसटी में राज्यों को स्वायत्तता दो

asiakhabar.com | November 3, 2020 | 5:11 pm IST

अर्पित गुप्ता

यदि कोई राज्य अतिरिक्त राजस्व एकत्रित करना चाहता है तो वह जीएसटी अथवा आय कर की दरों में वृद्धि कर
इस रकम को अर्जित कर सकता है जिससे कि इसका उपयोग जनहित के लिए किया जा सके। हमें तत्काल
जीएसटी की दरों को निर्धारित करने में राज्यों को स्वायत्तता देनी चाहिए क्योंकि इस स्वायत्तता से अंतरराज्यीय
व्यापार में विघ्न पड़ना जरूरी नहीं है। हमारे देश में कम्प्यूटर की विद्या का प्रचुर भंडार उपलब्ध है और यदि
कनाडा में इस प्रकार की व्यवस्था बनाई जा सकती है तो भारत में भी अवश्य ही। साथ-साथ राज्यों को आयकर भी
वसूल करने की छूट देनी चाहिए जिससे हर राज्य को अपने विवेक के अनुसार टैक्स वसूल करने एवं उसे खर्च
करने की छूट मिल सके। हालात को देखते हुए वर्तमान मॉडल में संशोधन की जरूरत है। तभी संघीय ढांचा बचा
रहेगा और देश की एकता बनी रहेगी…
जीएसटी व्यवस्था लागू होने से पहले प्रत्येक राज्य सेल टैक्स की दरों को निर्धारित करने में स्वायत्त था। हर राज्य
अपनी जरूरत के अनुसार सेल टैक्स वसूल करता था और अपने विवेक के अनुसार उसको खर्च करता था। यदि
राज्य को खर्च अधिक करना हो तो उसके पास विकल्प होता था कि वह सेल टैक्स की दरों में वृद्धि कर अधिक
राजस्व एकत्रित करे। दूसरी तरफ यदि राज्य उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाहता था तो उसके पास विकल्प था कि
सेल टैक्स की दरों को न्यून करे जिससे कि दूसरे राज्यों से उद्योग अपने राज्य में स्थानांतरित हों। वर्तमान

जीएसटी की व्यवस्था ने राज्यों की इस स्वायत्तता को समाप्त कर दिया है। अब सभी माल पर जीएसटी की दर
सभी राज्यों की सहमति से निर्धारित की जाती है और सभी माल पर एक ही दर से संपूर्ण देश में जीएसटी वसूल
किया जाता है। यदि कोई राज्य अपनी जरूरत के अनुसार अधिक राजस्व एकत्रित करना चाहे अथवा अपनी नीतियों
के अनुसार दूसरे राज्यों से उद्योगों को आने को प्रोत्साहन देना चाहे तो उसके पास ऐसा करने का कोई अवसर नहीं
है। परिणाम यह है कि राज्यों के खर्च लगातार बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन उनकी आय नहीं बढ़ रही है। विशेषकर
सरकारी कर्मियों के वेतन प्रति वर्ष बढ़ते जा रहे हैं जिसको वहन कर पाना राज्य सरकारों के लिए सिरदर्द बना हुआ
है। कोविड आक्रमण के पहले से ही देश की अर्थव्यवस्था मंद पड़ रही थी।
कोविड ने आग में घी का काम किया है। इस समय राज्यों में भारी संकट पैदा हो गया है। वर्तमान में देश में कुल
जीएसटी की वसूली सपाट है अथवा उसमें कुछ गिरावट ही आ रही है, जबकि हर वर्ष कम से कम 14 प्रतिशत की
वृद्धि होने का अनुमान था। अर्थात पिछले दो वर्षों में जो जीएसटी की वसूली में 28 प्रतिशत की वृद्धि होनी थी,
उसके स्थान पर गिरावट आई है। जीएसटी की वसूली कम होने के साथ-साथ केंद्र सरकार पर राज्यों के राजस्व की
हानि की भरपाई करने का बोझ भी बढ़ता जा रहा है। जीएसटी कानून में व्यवस्था है कि हर राज्य को उसकी
सरहद में बेचे गए माल पर वसूल की गई जीएसटी का हिस्सा दिया जाएगा। जैसे यदि राजस्थान का व्यापारी उत्तर
प्रदेश में माल बेचता है तो उत्तर प्रदेश में उस माल की बिक्री पर वसूल की गई जीएसटी में राज्य का हिस्सा उत्तर
प्रदेश सरकार को दे दिया जाएगा। लेकिन जब पूरी अर्थव्यवस्था ही मंद पड़ रही है और कुल जीएसटी की वसूली ही
सपाट है तो राज्यों का हिस्सा भी सपाट है, जबकि उनके खर्च बढ़ते जा रहे हैं। इस कारण राज्यों पर संकट मंडरा
रहा है। विशेषकर इसलिए कि केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया था कि पांच वर्षों तक राज्य सरकारों की आय में जो
कमी आएगी, उसकी भरपाई केंद्र सरकार के द्वारा की जाएगी।
वर्तमान हालात को देखते हुए पांच वर्ष बाद 2022 में जब केंद्र द्वारा यह सुविधा बंद कर दी जाएगी तब राज्यों के
लिए भयंकर स्थिति पैदा होगी क्योंकि राज्यों की आय लगभग 50 से 70 प्रतिशत रह जाएगी, जबकि उनके खर्च
लगातार बढ़ते जाएंगे। इस परिस्थिति में राज्यों के लिए अपने कर्मियों को वेतन देना भी अति कठिन हो जाएगा
और न्यूनतम सुविधाएं भी, जैसे न्यायालय, सड़क, पानी आदि को भी उपलब्ध करना असंभव हो जाएगा। इसके
अलावा वर्तमान व्यवस्था में राज्य सरकारों के पास अपने खर्चों की गुणवत्ता में सुधार करने का भी प्रोत्साहन नहीं
रह गया है। उनकी नजरें केंद्र सरकार से अधिकाधिक रकम प्राप्त करने पर टिकी हैं और वे अपने संसाधनों में
वृद्धि कर राजस्व एकत्रित करने और अपने खर्चों में कटौती करने में रुचि नहीं ले रहे हैं। इस परिस्थिति में हमें
तत्काल राज्यों को जीएसटी की दरों में स्वायत्तता देने पर विचार करना चाहिए। कनाडा हमारे देश की तरह ही बड़ा
देश है और वहां तमाम राज्य हैं। कनाडा में भी जीएसटी व्यवस्था लागू है, लेकिन कनाडा में हर राज्य को जीएसटी
की अपनी दर लागू करने का भी अधिकार है। एल्बर्टा राज्य में केवल पांच प्रतिशत केंद्रीय अथवा फेडरल जीएसटी
वसूल किया जाता है। ब्रिटिश कोलंबिया में पांच प्रतिशत फेडरल जीएसटी तथा सात प्रतिशत राज्य जीएसटी वसूल
किया जाता है। ओंटारियो राज्य में 13 प्रतिशत सम्मिलित जीएसटी वसूल किया जाता है जिसमें पांच प्रतिशत
हिस्सा केंद्र का होता है। इन विभिन्न दरों के बावजूद कनाडा में एक राज्य से दूसरे राज्य को माल आसानी से
जाता है और राज्यों की सरहद पर कोई जांच नहीं होती है। जीएसटी की संपूर्ण रकम केंद्र सरकार के कोष में जमा
की जाती है और केंद्र सरकार के द्वारा बिलों के अनुसार उसे राज्यों में वितरित कर दिया जाता है।

कनाडा में केवल जीएसटी ही नहीं बल्कि आयकर में भी विभिन्न दरें लागू करने की स्वायत्तता है। कनाडा में दो
प्रकार के आयकर हैं। फेडरल आयकर 49 हजार तक की टैक्सेबल आय पर 15 प्रतिशत की दर से वसूल किया
जाता है। इसके अतिरिक्त राज्यों द्वारा अलग-अलग दरों से आय कर वसूल किया जाता है। एल्बर्टा में 131 हजार
डालर की टैक्सेबल आय पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त आयकर वसूल किया जाता है। ब्रिटिश कोलंबिया में 42 हजार
डालर की टैक्सेबल आय पर पांच प्रतिशत अतिरिक्त आयकर वसूल किया जाता है। ओंटारियो में 45 हजार डालर
की टैक्सेबल आय पर पांच प्रतिशत अतिरिक्त राज्य आयकर वसूल किया जाता है। इस प्रकार हर राज्य को
स्वायत्तता है कि वह अपने विवेक के अनुसार अलग-अलग दरों से जीएसटी और आयकर दोनों वसूल कर सकें। यदि
कोई राज्य अतिरिक्त राजस्व एकत्रित करना चाहता है तो वह जीएसटी अथवा आय कर की दरों में वृद्धि कर इस
रकम को अर्जित कर सकता है जिससे कि इसका उपयोग जनहित के लिए किया जा सके। हमें तत्काल जीएसटी
की दरों को निर्धारित करने में राज्यों को स्वायत्तता देनी चाहिए क्योंकि इस स्वायत्तता से अंतरराज्यीय व्यापार में
विघ्न पड़ना जरूरी नहीं है। हमारे देश में कम्प्यूटर की विद्या का प्रचुर भंडार उपलब्ध है और यदि कनाडा में इस
प्रकार की व्यवस्था बनाई जा सकती है तो भारत में भी अवश्य ही। साथ-साथ राज्यों को आयकर भी वसूल करने
की छूट देनी चाहिए जिससे हर राज्य को अपने विवेक के अनुसार टैक्स वसूल करने एवं उसे खर्च करने की छूट
मिल सके। हालात को देखते हुए वर्तमान मॉडल में संशोधन की जरूरत है। तभी देश का संघीय ढांचा बचा रहेगा
और देश की एकता बनी रहेगी।


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