विकास गुप्ता
पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में शामिल न किए जाने की वजह से इनकी कीमतें बढ़ी हैं। नतीजतन
लगातार महंगाई की मार से आम जनता का घरेलू बजट चरमरा कर रह गया है। हालात ऐसे नाजुक बन
चुके हैं कि खाने-पीने की चीजों के दाम भी अब आसमान छूने लगे हैं। गरीब आदमी आखिर किस तरह
अपने पेट की आग बुझाए, यह सबसे बड़ी चिंता है। कहने को देश में एक कानून, एक टैक्स वसूल किए
जाने का ढिंढोरा पीटा गया, मगर अभी तक पेट्रोल व डीजल को इसके दायरे में न लाना जनता के साथ
अन्याय है। बड़े अफसोस की बात है कि पेट्रोल व डीजल पर केंद्र और राज्य सरकारें अपनी मनमर्जी का
दोहरा टैक्स वसूलकर जनता पर बोझ बढ़ाए जा रही हैं। आज अगर आकलन पड़ोसी देशों से किया जाए
तो पेट्रोल, डीजल की कीमतें सबसे अधिक अपने देश में बढ़ी हैं। पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों पर
अंकुश लगाने में केंद्र और राज्य सरकारें नाकाम चल रही हैं। सबका साथ, सबका विकास का नारा कब
सच होगा, जनता यह जानने को आतुर है। विकास क्या चंद उद्योगपतियों का ही सरकारों को नजर
आता है, जिसकी वजह से वह पेट्रोल व डीजल की कीमतें लगातार बढ़ाए जा रही है। महंगी गाडि़यों में
सवार होना आजकल ज्यादातर लोगों का शौक बन चुका है। घरेलू बजट की परवाह किए बगैर लोग बैंकों
से कर्जा लेकर भी अपना यह शौक पूरा किए जा रहे हैं। प्रत्येक घर में वाहनों की लंबी कतारें खड़ी देखने
को मिलती हैं। औसतन प्रत्येक व्यक्ति एक दिन में करीब सौ रुपए का पेट्रोल अपने वाहन में खर्च कर
देता है। यहां नौकरीपेशा लोगों की बात की जा रही है।
व्यवसाय के सिलसिले में सदैव गाडि़यों में सवार रहने वालों को अधिक जेब खाली करनी पड़ती है।
आधुनिक तकनीक से युक्त महंगी गाडि़यों में एयर कंडीशनर लगा होने की वजह से पेट्रोलियम पदार्थों की
खपत दो गुणा बढ़ जाती है। पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों का अत्यधिक असर मध्यमवर्गीय परिवारों पर
पड़ता है। भारत को पेट्रोल व डीजल के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है। भारत तेल उत्पादक देशों
से कच्चा तेल खरीदकर अपने देश की तेल कंपनियों को रिफाइंड करने के लिए सौंपता है। तेल कंपनियां
पेट्रोल-डीजल तैयार करके उसे मनमाने दामों में बेचने के लिए राज्य सरकारों को देती हैं। केंद्र और राज्य
सरकारों को पेट्रोल-डीजल पर अत्यधिक राजस्व मिलता है, इसलिए वे इनकी बढ़ती कीमतों पर कोई
ध्यान नहीं देना चाहती हैं। केंद्र सरकार ने खाड़ी देशों के कच्चे तेल का भंडारण अपने देश में यह कहकर
करवाया था कि जनता को इसका लाभ मिलेगा। तेल भंडारण का लाभ गरीब जनता किस तरह ले रही है,
यह किसी से छुपा नहीं है।
पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों का असर गरीब आदमी के बजट पर अधिक पड़ता है। लगातार पेट्रोलियम
पदार्थों की बढ़ी कीमतों की बदौलत ही अब उचित मूल्य की दुकानों में मिलने वाले खाद्यान्न की कीमतें
भी बढ़ी हैं। सोने-चांदी की कीमतें पहले ही आसमान को छू रही हैं, अब खाने-पीने की चीजें भी आम
आदमी की पहुंच से ऊपर जा रही हैं। कोरोना वायरस के चलते लोगों का कामकाज बिल्कुल ठप्प पड़
गया है। निजी कंपनियों और उद्योग-धंधों से जुड़े लोग बेरोजगारी की मार झेलने को मजबूर हैं। कहने
को केंद्र सरकार ने बीस हजार करोड़ रुपए की सहायता लोगों को पहुंचाने का दावा कर रखा है। इस
घोषणा का लाभ आखिर कितनी जनता उठा रही है, यह आज एक बड़ा सवाल है। पेट्रोल-डीजल की बढ़ी
कीमतों का परिणाम है कि हिमाचल प्रदेश में पचास फीसदी तक बस किराया बढ़ोतरी की जा चुकी है।
बस आपरेटरों ने सरकार पर दबाव बनाकर किराया बढ़ाने में सफलता हासिल कर ली, मगर बसों में
सवारियां पुनः पूर्व की भांति बैठाने में नाकाम रहे हैं। नतीजतन बस आपरेटरों पर भी इसका विपरीत
असर देखा जा सकता है। बस किराया इस कदर बढ़ चुका है कि गरीब आदमी का बस में सफर करना
भी अब आसान नहीं रहा है। पठानकोट-जोगिंद्रनगर नैरोगेज रेलवे ट्रैक पर दौड़ने वाली रेलगाडि़यों का
किराया भी दो गुना बढ़ाए जाने की सुर्खियां पढ़ने से लोगों में असंतोष है। पहाड़ की गरीब जनता रेलगाड़ी
में सफर करके अपने आपको सुखद मानती रही है, मगर अब इसे भी महंगा बना दिया जा रहा है।
ग्रामीण महिलाओं को धुआं रहित ईंधन मुहैया करवाए जाने को लेकर केंद्र और हिमाचल सरकार की ओर
से शुरू की गई गृहणी सुविधा योजना सराहनीय थी।
गरीब महिलाओं को गैस सिलेंडर मुफ्त उपलब्ध करवाकर एक सराहनीय पहल को अंजाम दिया गया था।
मगर गैस सिलेंडर की लगातार बढ़ती कीमतों की वजह से ऐसी योजनाओं का सार्थक बनना अब आसान
नहीं रहा है। गैस सिलेंडर पर केंद्र सरकार उपभोक्ताओं के खाते में सबसिडी जमा करती थी। पिछले एक
वर्ष से उपभोक्ताओं के खाते में सिर्फ 32 रुपए सबसिडी के जमा करके मजाक बनाने की कोशिश की
गई, ऐसा कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। गैस सिलेंडर के दामों में भी कई गुणा बढ़ोतरी होने की
वजह से अब लोग विरोध कर रहे हैं। पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ाने में आम जनमानस भी कोई कम
जिम्मेदार नहीं है। साइकिल पर सवार होना अब कोई नहीं चाहता और प्रत्येक काम के लिए सिर्फ वाहनों
पर निर्भर होकर रहना भी घरेलू बजट को हिला रहा है। पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने से ही
इनके बढ़े दामों में कमी आएगी। इसके लिए सरकारों को ठोस निर्णय लेना होगा।