संयोग गुप्ता
चीन के सुप्रीम लीडर शी जिनपिंग का आक्रामक रुख उन्हें भारी पड़ सकता है। वे इसके जरिए भले ही यह संकेत
देना चाह रहे हों कि कोरोना वायरस के चलते बाद चीन को आर्थिक और कूटनीतिक तौर पर कोई झटका नहीं लगा
है। मगर जिस तरह भारत समेत अन्य देशों ने चीन का प्रतिकार किया है, जिनपिंग का यह इरादा फेल भी हो
सकता है। फिर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना के मामले में लगातार चीन को घेरे हैं। ट्रंप ने चीन पर
निशाना साधते हुए कहा कि हम गाउन, मास्क और सर्जिकल उपकरण का उत्पादन कर रहे हैं.. इन्हें विशेष रूप से
विदेशी भूमि में बनाया गया। विडंबना यह है कि विशेष रूप से चीन में, जहां से यह वायरस और अन्य बीमारियां
आई थीं। चीन की गोपनीयता बरतने, धोखे और आवरण रखने की सोच ने इसे पूरी दुनिया में फैलने दिया। उन्होंने
कहा कि इसके लिए चीन को पूरी तरह से जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। उसे जिम्मेदारी लेनी ही होगी। रूस भी
अमेरिका के साथ चीन पर चढ़ाई किए है। नेपाल में भी उसका विरोध हो रहा है तो भूटान भी जमीन हथियाए जाने
से खफा है। अपनी पार्टी या सरकारी मशीनरी पर शी का कंट्रोल वैसे ही बरकरार है। लेकिन कभी हर चीज के
चेयरमैन कहे जाने वाले जिनपिंग की रफ्तार बहुत धीमी हो चली है। 2015-16 में आर्थिक सुस्ती के बावजूद वह
अपनी सत्ता आसानी से बचा ले गए थे, हालांकि अब चुनौती बड़ी और ग्लोबल है। चीन एक बार फिर आर्थिक
गिरावट झेल रहा है। पश्चिमी देशों का मूड उसके खिलाफ हो गया है, इनमें से कई तो ऐसे हैं जिनके चीन के साथ
अच्छे रिश्ते रहे हैं। विदेश जाकर काम, पढ़ाई या घूमने वाले रईस चीनियों को भी इस बात का अहसास हो चुका
है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव नेटवर्क इसीलिए बनाया गया था ताकि चीन के राजनीतिक हित साधे जा सकें और
दूसरे देशों पर आर्थिक निर्भरता कम हो सके। इस प्रोजेक्ट को बड़ा झटका लगा है। कई देश कर्ज को रीशेड्यूल
करने की बमांग कर रहे हैं। चीन ने हफ्तों तक कोविड-19 की बात छिपाई, इससे भी इस पहल पर नकरात्मक
असर हुआ है। शी जिनपिंग ऐसे नेता के रूप में उभरे हैं जो पूरी तरह से पार्टी के प्रति समर्पित है। उनका मकसद
कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों में चीन की सत्ता रखना है। पार्टी ने जिस तरह से आर्थिक विकास किया है और शी ने
भ्रष्टाचार के खिलाफ जैसा अभियान चलाया, उससे इस मकसद को और बल मिला। शी ने अपने कई दुश्मनों को
करप्शन कैंपेन में निपटा दिया। चीन ने हाल ही में जो आक्रामक रुख अपनाया, उसका मकसद अपने पड़ोसियों को
याद दिलाना था कि वे दोयम दर्जे पर हैं। हालांकि शी जिनपिंग का यह दांव ठीक नहीं बैठा। लाइन ऑफ एक्चुअल
कंट्रोल पर चीन ने जब घुसपैठ की भारत ने उसका करारा जवाब दिया। यह साफ हो गया कि भारत बात आगे बढ़
जाएगी, इस डर से चुप नहीं बैठेगा। दूसरी तरफ, ऑस्ट्रेलिया ने भी इम्पोर्ट बंद करने की चीन की धमकी को
नजरअंदाज करते हुए चीनी सैनिकों के आने पर रोक लगा दी है। दक्षिण चीन सागर में जापान और दक्षिण
एशियाई देश चीन के आगे गुट बनाए खड़े हैं और उससे समुद्र के नियमों का पालन करने को कह रहे हैं। हांगकांग
के लिए नए कानून बनाकर चीन को वैश्विक स्तर पर आलोचना झेलनी पड़ रही है, लेकिन जिनपिंग शायद ही
अपना रास्ता बदलें। हालांकि यह चीन के ऊपरी तबके लिए जरूर अजीब है जिसने लोकतंत्र के बदले आर्थिक बेहतरी
को चुना। अभी भले ही राष्ट्रवाद पर सवार होकर जिनपिंग इस चुनौती से निपट लें मगर पार्टी के भीतर अपनी
हनक बरकरार रख पाना उनके लिए आसान नहीं होगा।