-निर्मल रानी-
ओलम्पिक के इतिहास में भारत अब तक कुल दस स्वर्ण पदक जीत चुका है जिसमें आठ स्वर्ण पदक भारतीय
हॉकी टीम को उसके 1920-1950 मध्य के स्वर्णिम युग के दौरान प्राप्त हुए हैं जबकि दो व्यक्तिगत स्वर्ण पदक
में से एक 11 अगस्त 2008 को बीजिंग में आयोजित शूटिंग में अभिनव बिंद्रा को पुरुषों की दस मीटर एयर
राइफ़ल प्रतियोगिता में हासिल हुआ था जबकि दूसरा व्यक्तिगत स्वर्ण पदक पिछले दिनों नीरज चोपड़ा ने टोक्यो
ओलिंपिक में भारत के लिए ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिता में भाला फेंकने की प्रतिस्पर्धा में जीता। नीरज चोपड़ा के
स्वर्ण पदक को ओलंपिक के एथलेटिक्स वर्ग में 121 वर्षों के इतिहास में भारत को मिले सबसे पहले स्वर्ण पदक
के रूप में भी देखा जा रहा है। निःसंदेह टोक्यो में पहला एथिलीट ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने से पूरा देश ख़ुशी से
झूम रहा है परन्तु चूँकि नीरज चोपड़ा उस हरियाणा का बेटा है जिसके बारे में कहावत मशहूर है कि -'म्हारा देस
हरियाणा -जहाँ दूध दही का खाना ',इसलिए हरियाणा के लोगों का उत्साह कुछ अधिक है। वैसे भी टोक्यो
ओलम्पिक में जो कुल 7 पदक प्राप्त हुए हैं उनमें स्वर्ण सहित 3 पदक अकेले हरियाणा के खिलाड़ियों ने जीते, शेष
4 पदक पूरे देश के खिलाड़ियों ने मिलकर जीते। सातवां पदक हॉकी टीम का कांस्य पदक है जिसमें हरियाणा
सहित पूरे देश के खिलाड़ी शामिल हैं। हरियाणा के सपूत व भारतीय सेना में राजपूताना रेजिमेंट में सूबेदार नीरज
चोपड़ा ने भाला फेंकने में स्वर्ण पदक जीता तो पहलवान बजरंग पूनिया ने कुश्ती में भारत को कांस्य पदक
दिलाया। हरियाणा के ही पहलवान रवि दहिया ने कुश्ती में ही रजत पदक अपने नाम किया था और इसी राज्य के
दूसरे पहलवान दीपक पूनिया पदक के बिल्कुल क़रीब पहुंचकर हार गए।
दुर्भाग्यवश हरियाणा के और भी कई खिलाड़ी पदक के क़रीब पहुंचकर हार गए अन्यथा यदि यह खिलाड़ी भी पदक
जीत लाते तो देश के पदकों की संख्या लगभग दोगुनी हो सकती थी। पदक से चूकने वाले खिलाड़ियों में हरियाणा
के ही युवा निशानेबाज मनु भाकर, सौरभ चौधरी, पहलवान विनेश फ़ोगाट जैसे नाम शामिल हैं। महिला हॉकी टीम
जो पदक से बाल बाल चूक गयी उसमें भी अकेले हरियाणा राज्य की 9 बेटियां शामिल थीं। इनमें में कप्तान रानी
रामपाल तो इस राज्य की थी हीं साथ ही सविता पूनिया जो 'हॉकी की दीवार' के नाम से प्रसिद्ध हो चुकी हैं वह
भी हरियाणा की ही बेटी हैं । हरियाणा के ही साक्षी मलिक, सुशील कुमार, विजेंद्र कुमार, गीता व बबीता फोगाट
जैसे अनेक खिलाड़ी इससे पूर्व भी अपनी प्रतिभाओं का लोहा मनवाकर राष्ट्र का नाम रोशन कर चुके हैं। अब टोक्यो
ओलम्पिक में एक बार फिर हरियाणा के खिलाड़ियों के शानदार व गौरवपूर्ण प्रदर्शन के बाद यह चर्चा होने लगी है
कि जब देश के सबसे छोटे राज्यों में गिना जाने वाला हरियाणा जैसा अकेला राज्य ओलम्पिक में इतना शानदार
प्रदर्शन कर सकता है फिर आख़िर उत्तर प्रदेश,बिहार,मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र जैसे और भी कई बड़े राज्य अंतर्राष्ट्रीय
खेलों व एथेलीट प्रतियोगिताओं में क्यों पीछे रह जाते हैं ? हरियाणा की गिनती अन्न उत्पादन के क्षेत्र में भी पंजाब
के बाद दूसरे नंबर पर होती है। इतना ही नहीं बल्कि यह देश का वह गौरवशाली राज्य भी है जिसके अधिकांश
किसानों के बच्चे देश की सरहद के प्रहरी के रूप में भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दिया करते हैं और ज़रूरत पड़ने
पर अपनी शहादत भी पेश करते हैं ।
दरअसल जिन राज्यों के बच्चे व युवा अंतर्राष्ट्रीय खेल व एथलीट प्रतियोगिताओं में आगे नहीं निकल पाते उसके
पीछे का मुख्य कारण इन राज्यों के सत्ताधीशों की अकर्मण्यता व खेलों के प्रति उनकी निष्क्रियता व निकम्मापन
मुख्य कारण है। शायद यह शातिर राजनेता जानते कि चूँकि खिलाड़ी उनके वोट बैंक नहीं हैं इसलिये चतुर व
शातिर राजनीतिज्ञ इनको प्रोत्साहित करने पर समुचित ध्यान नहीं देते। जनता का जितना पैसा यह सियासतदां
अपनी वाहवाही के अपने बड़े बड़े सचित्र विज्ञापनों पर ख़र्च करते हैं वह भी प्रायः झूठे तथ्य पेश कर अपनी वाहवाही
कराने वाले विज्ञापनों पर, उसका मात्र दस प्रतिशत हिस्सा भी यदि खिलाड़ियों की सुविधा उनके प्रशिक्षण उनके
प्रोटीनयुक्त आहार पर ख़र्च किया जाये तो इसमें कोई संदेह नहीं कि पदक तालिका में भारत का नाम भी पदक
तालिका की सूची में शीर्ष पर आ सकता है। परन्तु हमारे देश में नेताओं को अपनी सत्ता अपनी शोहरत आपने
बहुसंख्य वोट बैंक की अधिक चिंता रहती है न कि दुनिया में देश का नाम रौशन करने की आशाओं से परिपूर्ण
युवाओं व खिलाड़ियों के प्रोत्साहन की। मिसाल के तौर पर अभी पिछले दिनों जब 7 भारतीय पदक विजेता टोक्यो
ओलम्पिक समापन के पश्चात् भारत लौटे तो दिल्ली स्थित अशोका 5 सितारा होटल में उनका स्वागत किया गया।
इस स्वागत समारोह में सबसे बड़ा चित्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का था जबकि सातों पदक विजेताओं के चित्र एक
परिधि में इतने छोटे छपे थे की दूर से उन्हें पहचाना भी नहीं जा सकता था। जबकि होना यही चाहिये था कि जिन
पदक विजेताओं के स्वागत में यह समारोह था उनके चित्र सबसे बड़े लगाए जाएं। प्रधानमंत्री के चित्र की तो
आवश्यकता ही नहीं थी। परन्तु यहाँ तो देश के करदाताओं के पैसों से ग़रीबों को राशन वितरित करने वाले विशेष
थैलों पर प्रधानमंत्री का चित्र तो वैक्सीन सर्टीफ़िकेट पर प्रधानमंत्री का चित्र। गोया देश की सारी राजनीति नेताओं के
चित्र व उनकी शोहरत व विज्ञापन पर ही आधारित है ऐसे में युवा खेल कौशल की ओर ध्यान देने की फ़ुर्सत ही
कहां ?
लगभग मृत प्राय हो चुकी भारतीय हॉकी की वह टीम जिसके प्रदर्शन से दुनिया घबराती थी उसे प्रोत्साहित करने
का 'ज़ोखिम' उठाने के लिये कोई राज्य तैयार नहीं। जबकि हरियाणा में हॉकी के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षण
की पूरी सुविधा उपलब्ध है। उधर इस बार उड़ीसा के मुख्य मंत्री नवीन पटनायक ने भी भारतीय हॉकी टीम को
प्रायोजित करने का बीड़ा उठाया इसका परिणाम सामने है कि भारतीय महिला हॉकी टीम को जहां हरियाणा ने 9
खिलाड़ी दिये वहीं पुरुष हॉकी टीम ने भी गत वर्षों की तुलना में अच्छा प्रदर्शन किया। हरियाणा के खिलाड़ियों की
सफलता के पीछे उनके सांस्कारिक खान पान का भी योगदान है। यहाँ ग़रीब से ग़रीब किसान परिवार का व्यक्ति
अपने घरों में दुधारू पशु पालने की कोशिश अवश्य करता है। व्यवसाय के लिये कम परिवार के खान पान के लिये
अधिक। हरियाण-पंजाब में शहरों में भी दूध-घी-दही-लस्सी-मट्ठा आदि खाने पीने का ख़ूब चलन है। यही वजह है
कि भारत में हरियाणा राज्य 'जय जवान' -'जय किसान' ही नहीं 'ओलम्पिक पदकों का भी सिरताज' भी बना है।