जयललिता अम्मा के जाने से एक राजनीति के युग का अंत

asiakhabar.com | December 8, 2016 | 1:27 pm IST
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जी हां आज तमिलनाडु नहीं पूरे देश में से एक ऐसी शख्सियत का चले जाना उन दिलों को जरूर झकझोर देता जिन्हें ऐसी शख्सियत अम्मा ्य्य यानि मां के साये से है। जिसे एक मां- बेटा समझ सकता है। आज भी वहीं मंझर तमिलनाडु के मरीन बीच पर दिखाई दिया जब अम्मा को पंचतत्व में विलीन किया गया। कोमलवल्ली उर्फ जयललिता। जयललिता की गिनती एक मंझे हुए कलाकार के रूप में तो की जाती थीं, तथा एक मंझे हुए राजनेता के रूप में ही उन्हें देश ही नहीं एक ऐसी शख्सियत के रूप में प्रसिद्ध किया जो अविस्मर्णिय है। उनकी आम दिलों के भीतर तक पहुंच ही उन्हें आज ‘अम्मा’ तक ले आयी। ये कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि तमिलनाडु में सिल्व ज. जयललिता (68) को ईश्वर के रूप में पूजा जाता था और अब उनके राजनीतिक वारिस पन्निसेल्वम भी इसको जीवित रखेंगे। क्योंकि वह उनके भरोसेमंद ही नहीं एक भाई की तरह हैं जो उन्हें हर उतार-चढ़ाव के दौरान उनकी विरासत को संभालते रहे। अगर हम उनके कॅरियर की बातें करें तो लगभग दो दशकों तक तमिल, तेलगु, हिन्दी आदि में उन्होंने रंगमंच पर अपनी बेहतरीन पारी खेली।

फिर उन्हें राजनीति में लाने वाले तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री व तमिल के मशहूर अभिनेता एमजी रामचंद्रन थे, जिन्होंने जयललिता की राजनीति का क, ख ग सिखाया और उन्हें एक उनके बाद उनकी विरासत को यहां तक लेकर आयीं। शुरुआती दौर में जयललिता ने तमिलनाडु से राज्यसभा के लिए प्रतिनिधित्व किया था। लेकिन रामचंद्रन की मौत होते ही जयललिता ने खुद को उनकी विरासत का वारिस घोषित कर दिया। जयललिता पहली बार 1991 में मुख्यमंत्री बनीं। एम. करुणानिधि की पार्टी द्रमुक से टूटने के बाद एमजीआर ने अन्नाद्रमुक का गठन किया था। साल 1983 में एमजीआर ने जयललिता को पार्टी का सचिव नियुक्त किया था। बाद में राज्यसभा के लिए मनोनित किया गया। जयललिता पहली बार साल 1991 में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं। हालांकि 1996 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। जयललिता पर आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में केस चला, जिसमें वह दोषी भी पाई गईं। बेंगलुरु की अदालत ने जयललिता को चार साल की सजा सुनाई। भ्रष्टाचार के आरोप के बावजूद चुनाव जीतीं जयललिता 2001 में फिर मुख्यमंत्री बनने में सफल रही थीं। भ्रष्टाचार के मामलों में लिप्त होने के बाद कोर्ट से सजा होने के बावजूद जयललिता अपनी पार्टी को चुनावों में जिताने में कामयाब रहीं। उन्होंने गैर चुने हुए मुख्यमंत्री के तौर पर कुर्सी संभाली। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने उनकी नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी कुर्सी अपने विश्वसनीय मंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम को सौंप दी। जब उन्हें मद्रास हाईकोर्ट से कुछ राहत मिली तो वह मार्च 2002 में फिर से मुख्यमंत्री बन गईं। इसके बाद वह 2011 से 2014 तक मुख्यममंत्री बनीं। गरीबों के लिए योजनाएं शुरू करके वह आम लोगों में काफी पॉपुलर हो गईं। जयललिता की तबीयत खराब होने के बाद पिछले कुछ दिनों से राज्य के वित्त मंत्री ओ. पनीरसेल्वम ही मुख्यमंत्री का कामकाज संभाल रहे हैं। अब बार-बार गिर रही उनकी सेहत से उनके वारिस की ओर तमिलनाडु देख रहा है। एक फिल्म लाइन से क्रियर की शुरुआत करने वाली जय ललिता आज राजनीति की धुरंधर है। अभी ढाई साल पहले ही ले ले पूरे देश में 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद भी तमिलनाडु में उनका जलवा बरकरार रहा। 05 दिसंबर की रात्रि 11.30 बजे अंतिम सांस ली। जिसके बाद एक युग का अंत हो गया।

अम्मा हर लिहाज से लोगों के लिए उस मां का काम किया जो पल-पल अपने बच्चों को पथदर्शक, मार्गदर्शक व पालनहार के रूप में अवतरित होकर तमिलनाडु के विकास उत्थान के लिए बेहतरीन काम किया। हालांकि मुझे कभी जयललिता से मिलने का समय तो नहीं मिला लेकिन उनके बारे में काफी पढ़ा व सुना है जिसके आधार पर मैं कह सकता हूं कि वाकई वह एक देवी थीं जिन्होंने उन गरीब तबके लोगों को आगे ले जाने में अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। हालांकि विरोधी कुछ भी कहे उनकी तुलना मैं अगर आयरन लेडी से न करूं तो मेरे लेखन कार्य से बेइमानी होगी। मैं यहां इसलिए उल्लेखित कर रहा हूं एक समय उन्होंने हड़ताल कर रहे लगभग 200 कर्मचारियों को बर्खास्त तक कर दिया था। जो एक कठोर निर्णय था लेकिन वहां की तत्कालीन हालातों को देखकर कह सकते हैं कि ऐसा मजबूरी में किया गया होगा। अगर हम उनके राजनीति से पूर्व के जीवन पर जाए तो वह एक मधुर मिलनसार महिला थीं जो सब में घुलमिल जाती थीं और अपने किरदार को बड़ी बेहतरीन अंदाज से पेश करती थीं जिसे हर दर्शक भावविभोर होकर उस रंग में रंग जाता था। यह बात मैं हिन्दी फिल्मी अभिनेता धर्मेद्र के मीडिया से बातचीत में बताई गई बातों पर कह रहा हूं। अगर और उनके अतीत में जाया जाए तो सबको मालूम है कि वह एक लाॅयर बनना चाहती थीं (एक तमिल मैगजीन के तहत, वह लाॅयर इसलिए बनना चाहती थीं ताकि गरीब तबके लोगों की लड़ाई लड़ सके।) हालांकि परम सत्ता ने उन्हें फिल्मी कॅरियर से होते हुए उन्हें स्वयं निर्णयदाता के रूप में ले आया जहां स्वयं जो आज एक पाठक एक ढूंढ रहा है कि वह अम्मा कैसे बनी जो उन्होंने गरीब तबके के लोगों के लिए जरूरत की चीज मुहैया करायीं। कुछ समय बाद वह लोगों से राजनीतिक व्यस्थता, सुरक्षा के चलते दूर रहीं लेकिन उनकी कल्याणकारी योजनाएं उन्हें तमिल के नागरिकों से बांधे रहे। जो एक सफल प्रशासक (राजा) के रूप में बेहद जरूरी था। उन्होंने कहीं भी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा प्रकट नहीं कि लेकिन जैसा लोग बताते है कि वह केंद्र में अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रही थीं लेकिन समय के चलते वह केंद्र में ज्यादा सक्रिय नहीं रह पायीं। अगर वह केंद्र में सक्रिय रहती तो शायद एक मंझे हुए वक्ता के रूप में जरूर प्रसिद्ध होती क्योंकि उन्हें तमिल के साथ-साथ अंग्रेजी, हिन्दी का भी ज्ञान था। आज वह हमारे बीच नहीं रहीं लेकिन उनकी यादें हमारे साथ जरूर रहेंगी व उन युवाओं को भी इक इतिहास के रूप में बुलंदी तक लेकर जाएगी। कोई कुछ भी कहे ‘अम्मा’ का जीवन अपने आप में एक मिसाल था। उनको युगों-युगों तक याद किया जाएगा।

उतार-चढ़ाव का जीवन: कोमलवल्ली उर्फ जयललिता का जन्म 24 फरवरी 1948 को एक तमिल परिवार में हुआ। वह पुराने मैसूर राज्य के मांड्या जिले के पांडवपुरा तालुक के मेलुरकोट गांव में पैदा हुई थीं। उनके पिता का नाम जयराम व माता का नाम वेदावल्ली व उनके दादा एक सर्जन थे। महज 2 साल की उम्र में जयललिता के पिता की मौत हो गई थी। पिता की मौत के बाद जयललिता की मां उन्हें बेंगलुरु लेकर चली आईं। यहीं से जयललिता ने तमिल सिनेमा में काम करना शुरू कर दिया। अभिनेता शिवाजी गणेशन के साथ खूब ख्याति बटोरी जब जयललिता स्कूल में पढ़ रही थीं तभी उनकी मां ने उन्हें फिल्मों में काम करने के लिए राजी कर लिया और इसी दौरान उन्होंने एपिसल नाम की अंग्रेजी फिल्म में काम किया। 15 साल की उम्र में जयललिता कन्नड़ फिल्मों में मुख्य अभिनेत्री की भूमिकाएं करने लगीं। इसके बाद वह तमिल फिल्मों में काम करने पहुंचीं। अभिनेता शिवाजी गणेशन के साथ भी फिल्में करके उन्होंने खूब ख्याति बटोरी। जयललिता ने हीमैन नाम से मशहूर हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता धर्मेंद्र के साथ भी काम किया। जयललिता के जीवन पर बनी एक तमिल फिल्म इरूवर आई थी, जिसमें जयललिता की भूमिका ऐश्वर्या राय ने निभाई थी। तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और हिंदी फिल्म में काम किया जयललिता राजनीति में आने से पहले एक लोकप्रिय अभिनेत्री थीं। उन्होंने तमिल, तेलुगू, कन्नड़ फिल्मों के अलावा एक हिन्दी फिल्म में भी काम किया। उन्होंने सिनेमा को अलविदा कहकर 1982 में राजनीति की दुनिया में कदम रखा। सन 1989 में तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष की नेता बनने वाली प्रथम महिला व सन 1991 में तमिलनाडु राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। उन्हें कई पत्तिकादा पत्तानामा, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सहित आदि पुरस्कारों से नवाजा गया।


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