जब मात्र चार तारीख लगी न्याय प्रदान करने में

asiakhabar.com | March 14, 2023 | 12:52 pm IST
View Details

-डॉ श्रीगोपाल नारसन-
अदालतों में तारीख-पे-तारीख के मिथक को तोड़ते हुए जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वितीय जोधपुर ने पीड़ित उपभोक्ता को उसके मुकदमा दर्ज कराने की चौथी तारीख पर ही न्याय देकर उपभोक्ता कानून की मूलभावना का सम्मान किया है। जोधपुर जिले के गवाल बेरा, नारवां निवासी गोपाराम और देवाराम ने डिस्कॉम, मंडोर के सहायक अभियंता के विरुद्ध जिला उपभोक्ता आयोग में परिवाद प्रस्तुत कर बताया कि उनकी तरफ से 3 वर्ष पहले आवेदन करने और विभाग द्वारा संपूर्ण राशि जमा करा लेने के बावजूद अभी तक विद्युत कनेक्शन उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा है। डिस्कॉम की ओर से अगली तारीख पर जवाब प्रस्तुत कर बताया गया कि परिवादी को दिसंबर, 2019 में ही कनेक्शन के आदेश जारी कर दिए गए थे लेकिन पड़ोस के लोगों की तरफ से बाधा उत्पन्न की गई, जिस वजह से कनेक्शन नहीं किया जा सका। परिवादी ने तर्क दिया कि पुलिस की सहायता से भी कनेक्शन सुचारू जा सकता है।
आयोग के अध्यक्ष डॉ. श्याम सुन्दर लाटा, सदस्य डॉ. अनुराधा व्यास, आनंद सिंह सोलंकी की बेंच ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद निर्णय में कहा कि विद्युत अधिनियम की धारा 43 के अनुसार उपभोक्ता द्वारा आवेदन करने पर विद्युत कंपनी की तरफ से एक माह के अंदर कनेक्शन दिया जाना आवश्यक है। कनेक्शन के लिए कानून-व्यवस्था बनाए रखने और पुलिस सहायता लिए जाने की ड्यूटी विभाग की है, ना कि उपभोक्ता की। आयोग ने कनेक्शन में विलंब के लिए डिस्कॉम को सेवाओं में कमी का दोषी मानते हुए उपभोक्ता को एक माह में कनेक्शन नहीं देने पर 200 रुपए प्रतिदिन हर्जाना अदा करने का आदेश दिया है। इसी प्रकार जिला उपभोक्ता आयोग हरिद्वार ने आई क्यू सुपर स्पेशलिटी आई हॉस्पिटल को चिकित्सा सेवा में लापरवाही के लिए दोषी मानते हुए पीड़ित उपभोक्ता को उपचार खर्च व वाद व्यय के रूप में 27575 रुपये मय 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिए जाने का फैंसला सुनाया है। विनीत नगर रुड़की निवासी एस पी वत्स ने आंख में तकलीफ होने पर 10 नवंबर सन 2018 को निर्धारित शुल्क अदा करके आई क्यू सुपर स्पेशलिटी आई हॉस्पिटल की चिकित्सक डॉ. निमिषा अग्रवाल से चिकित्सीय परीक्षण कराया था और उन्होंने ही उनकी दायीं आंख का कोर्निया ऑपरेशन किया। लेकिन आपरेशन के बाद आंख ठीक होने के बजाए उसमे चुभन रहने लगी और दृष्टि भी पहले से कमजोर हो गई। जिसपर पीड़ित एस पी वत्स ने गाजियाबाद के चिकित्सक डॉ. राजेश रंजन को दिखाया तो उन्होंने बताया कि आपरेशन में लापरवाही के कारण आंख में लैंस पीस रह गया है जिससे आंख में इंफेक्शन हुआ। उनके द्वारा आंख से लैस पीस तो निकाल दिया गया लेकिन आंख में हुए इंफैक्शन के कारण आंख पूरी तरह से ठीक नही हो पाई। जिस कारण उन्हें अभी भी अपना उपचार एम्स नई दिल्ली में कराना पड़ रहा है। जिला आयोग ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपने विस्तृत निर्णय आदेश में आईक्यू हॉस्पिटल की चिकित्सक डॉ. निमिषा अग्रवाल को चिकित्सा सेवा में लापरवाही के लिए दोषी मानते हुए पीड़ित उपभोक्ता को उक्त उपचार में व्यय हुई राशि अंकन 17575 रुपये मय 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज व अधिवक्ता शुल्क एवं वाद व्यय के रूप में अंकन दस हजार रूपये यानि 27575 रुपये एक माह में अदा करने का आदेश दिया है। इस तरह के अनेक मामलों में उपभोक्ता समयबद्ध न्याय प्राप्त करने में सफल रहे है। बाजारबाद के इस दौर में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए पहली बार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 बनाया था। लेकिन बदलते समय और शिकायतों के निवारण में व्याप्त जटिलता के कारण इस अधिनियम को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के द्वारा बदल दिया गया। नया अधिनियम, अधिक समग्र व कठोर होने के साथ-साथ सरलीकृत विवाद समाधान प्रक्रिया और शिकायतों के ई-फाइलिंग का प्रावधान भी लाया है। अब उपभोक्ता अपनी शिकायत, अपने निकटतम जिला उपभोक्ता आयोग में दर्ज करा सकता है। जबकि पहले शिकायत वही दर्ज हो सकती थी जहां विक्रेता या सेवा प्रदाता का कारोबार, कार्यालय या शाखा कार्यालय होता था। अब जहां उपभोक्ता निवास करता है उसी क्षेत्र के उपभोक्ता न्यायालय में अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। जो न्याय के प्रति सुलभता का प्रमाण है। समय के साथ हो रहे कानूनी बदलाव पर गौर करे तो उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम,2020 के अनुसार, डिजिटल मीडिया या इलेक्ट्रॉनिक सेवा प्रदाताओं के माध्यम से ऑनलाइन खरीददारी को भी इस अधिनियम की सीमा में शामिल गया है। साथ ही शिक्षा, मेडिकल एंड हेल्थकेयर, ट्रांसपोर्ट व टेलीकम्युनिकेशन, बैंकिंग सेक्टर, इंश्योरेंस तथा हाउसिंग कंस्ट्रक्शन इत्यादि सेवाओं को उपभोक्ता अधिनियम में शामिल करके उपभोक्ताओं के अधिकारों को अब अधिक व्यापक बनाया गया है। अधिनियम की धारा 2(7) के तहतउपभोक्ता एक ऐसा व्यक्ति है, जो किसी भी सामान या सेवा खरीदता है, जिसका भुगतान किया गया है या वादा किया गया है या आंशिक रूप से भुगतान किया गया है और आंशिक रूप से वादा किया गया है, या आस्थगित भुगतान की किसी भी प्रणाली के तहत ऐसे सामान या सेवाओं के लाभार्थी के अनुमोदन के साथ उपयोगकर्ता भी शामिल है। अधिनियम के तहत, अभिव्यक्ति कोई भी सामान खरीदता है और किसी भी सेवा को किराये पर लेता है या प्राप्त करता है मय इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों या टेली-शॉपिंग या डायरेक्ट सेलिंग या मल्टी-लेवल मार्केटिंग के माध्यम से ऑफ़लाइन या ऑनलाइन लेनदेन शामिल हैं,को उपभोक्ता की श्रेणी में माना गया है। वही जहां अधिकार है वहां उपचार भी है। जैसा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम एक उपचारात्मक विधि है इसलिए इस अधिनियम की धारा 2(9) में कुल 6 अधिकारों को यहां उपबंधित किया गया, जिनके उलंघन करने पर उपभोक्ता द्वारा विक्रेता या निर्माता के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जा सकती हैं।
इन अधिकारों में जीवन और संपत्ति के लिए खतरनाक वस्तुओं, उत्पादों या सेवाओं के मार्केटिंग से बचाव का अधिकार।
गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और वस्तुओं, उत्पादों या सेवाओं की कीमत के बारे में सूचित करने का अधिकार, ताकि उपभोक्ता को अनुचित व्यापार प्रथाओं से बचाया जा सके।
सुनिश्चित होने का अधिकार कि प्रतिस्पर्धी कीमतों पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं, उत्पादों या सेवाओं तक उपभोक्ता की पहुंच हो रही है। सुनवाई का अधिकार और यह आश्वासन दिया जाना कि उपयुक्त मंचों पर उपभोक्ता के हितों पर उचित विचार किया जाएगा। अनुचित व्यापार व्यवहार या प्रतिबंधात्मक व्यापार प्रथाओं या उपभोक्ताओं के शोषण के खिलाफ निवारण की मांग करने का अधिकार; तथा उपभोक्ता जागरूकता का अधिकार भी निहित किये गए है।
अनुचित व्यापार व्यवहार उपभोक्ता अधिनियम, 2019 की धारा 2(47) के तहत बिक्री के लिए नकली माल का निर्माण या पेशकश करना या सेवा प्रदान करने के लिए भ्रामक प्रथाओं को अपनाना,प्रदान की गई सेवाओं और बेची गई वस्तुओं के लिए उचित कैश मेमो या बिल जारी नहीं करना,दोषपूर्ण वस्तुओं और सेवाओं को वापस लेने से इनकार करना और बिल में निर्धारित समय अवधि के भीतर या बिल में ऐसा कोई प्रावधान नहीं होने पर 30 दिनों के भीतर वस्तु का मूल्य वापस प्रदान करना, उपभोक्ता की व्यक्तिगत जानकारी को किसी अन्य व्यक्ति के सामने प्रकट करना जो प्रचलित विधि के अनुसार न हो,उपभोक्ता ऐसे मामलों में शिकायत दर्ज करने में सक्षम होगा और धोखाधड़ी वाले व्यापारों को भी रोकने भी सहायक सिद्ध होगा।
यदि उपभोक्ता को किसी निर्माता, सेवा प्रदाता या विक्रेता के द्वारा दिए माल या सेवा से कोई नुकसान उठाना पड़े, तब वह उनके विरुद्ध प्रोडक्ट लायबिलिटी की कार्रवाई कर सकता है। जिसके तहत उत्पाद निर्माता को अधिनियम की धारा 84 में उत्तरदायी ठहराया जाएगा। यदि उत्पाद में विनिर्माण दोष है, डिजाइन में दोषपूर्ण है या वह विनिर्माण विनिर्देशों का पालन नहीं करता है और इसमें उचित उपयोग हेतु पर्याप्त निर्देश नहीं हैं तो कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। उपभोक्तावाद के इस युग में लोगों में किसी भी जरूरी या फिर गैर जरूरी वस्तु को खरीदने की होड़ सी लगी हुई है। शायद इसी का फायदा कुछ विक्रेता और कम्पनियाँ उठा रहे हैं। ये लोग कई बार लोगों को घटिया गुणवत्ता की वस्तुएं बढ़िया गुणवत्ता की बताकर बेच देते हैं या तक कि टूटे हुए उत्पाद बेच देते हैं। वही तय कीमत से अधिक कीमत वसूल लेते हैं और कई बार तो वस्तु की मात्रा भी कम दी जाती है। इस तरह की धौखाधड़ी आये दिन किसी न किसी उपभोक्ता के साथ होती रहती है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 व उसके बाद इस अधिनियम के स्थान पर आए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के अनुसार उपभोक्ता से अभिप्राय उस व्यक्ति से है जिसने रुपये का भुगतान करके या भुगतान करने का वायदा करके कोई सामान या सेवा खरीदी हो।
ऐसा व्यक्ति भी उपभोक्ता है, जिसने खुद तो कोई सामान या सेवा नही खरीदी, लेकिन खरीदार की अनुमति से सामान या सेवा का उपयोग किया है। लेकिन जो व्यक्ति सामान या सेवा को बेचने या व्यापार के उद्येश्य से खरीदता हो वह उपभोक्ता नही माना जाता। अलबत्ता स्व-रोजगार के लिए सामान या सेवा खरीदने वाला व्यक्ति उपभोक्ता की परिधि में आता है। जो शीघ्र,सुलभ व कम खर्च में बेहतर न्याय का एक बड़ा आधार है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *