शिशिर गुप्ता
भारतीय संविधान में न्यायपालिका को सर्वोच्च अधिकार प्राप्त हैं। पिछले कुछ समय से जिस तरह से जजों की
नियुक्तियों और तबादलों पर केंद्र सरकार का दखल बढ़ा है। केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकार के खिलाफ यदि कोई
आदेश जारी हुआ है, जो सरकार के खिलाफ है। ऐसी स्थिति में उस जज का तुरंत ट्रांसफर कर देना, अथवा कार्य
विभाजन बदल देने से न्यायपालिका और सरकार की आलोचनाएं होने लगी हैं।
गुजरात हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सिविल अस्पताल को लेकर राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया था। हाईकोर्ट
की बेंच को बदल दिया गया है। गुजरात हाईकोर्ट की खंडपीठ के दो जजों ने सिविल अस्पताल को कालकोठरी बता
दिया था। अगली सुनवाई के पहले ही इन जजों को मामले की सुनवाई से अलग कर दिया गया है। नई बैंच ने
सुनवाई करते हुए पुराने जज के निर्णय को नजरअंदाज करके विपरीत निर्णय दिया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य
न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्य सभा का सदस्य बनाने के बाद हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों की
स्वीकार्यता घट रही है।
इसी तरह की खबर कर्नाटक से आई है। श्रम सचिव ने मजदूरों की समस्या उठाई थी। निजी कंपनियों को नोटिस
जारी किए थे। उस सचिव का तुरंत तबादला कर दिया गया। उसे कोई विभाग भी आवंटित नहीं किया गया।
इसी तरह दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज द्वारा दिल्ली पुलिस को कुछ राजनेताओं के मामले में एफआईआर दर्ज नहीं
करने पर पुलिस को लेकर फटकार लगाई गई थी। पुलिस को आदेश दिया गया था कि वह एफआईआर दर्ज करे।
उसके तुरंत बाद रातों-रात जज का ट्रांसफर कर दिया गया। उसके बाद विपरीत निर्णय से मामला टंडा हो गया।
न्यायपालिका में जिस तरह से जजों के ट्रांसफर हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में जरूरी मामले कई माह से सुनवाई के
लिए लंबित हैं। जिनमें सरकार की जवाबदेही तय होनी है। महत्वपूर्ण मामले जो हाईकोर्ट में याचिका के रूप में
दाखिल किए गए थे। उन मामलों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने पास सुनवाई के लिए बुला लेना, और लंबे समय
तक नहीं सुनना।इसी तरीके से मजदूरों वाले मामले में भी सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली को लेकर न्यायपालिका के
सेवानिवृत्त जजों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने जब दबाव बनाया। तब सुनवाई शुरू हुई। इससे आम जनता के बीच में
यह संदेश जा रहा है, कि न्यायपालिका के जजों पर भारी दबाव है। ऐसी स्थिति में अब लोग खुलकर भी आलोचना
करने लगे हैं। विपक्षी दल भी जिस तरह से न्यायपालिका के ऊपर सवालिया निशान खड़ा कर रहे हैं। यह भारत के
लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं जनता का न्यायपालिका के प्रति विश्वास को खत्म करने वाला है। विपक्ष भी इस विषय
पर लगातार मुखर हो रहा है।
पिछले कुछ माह से सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह से याचिकाओं की सुनवाई को टाला जा रहा है। कई जनहित
याचिकाओं को खारिज कर दिया गया, और उन पर जुर्माना भी लगाया गया। सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष का
दबाव भी देखने को मिल रहा है। इस बात के आरोप खुद न्यायपालिका के सेवानिवृत्त जज और सुप्रीम कोर्ट के
वरिष्ठ अधिवक्ता समय-समय पर सार्वजनिक रूप से लगा चुके हैं। ऐसी स्थिति में जब देश बड़ी विषम स्थिति से
गुजर रहा है। आर्थिक संकट, बेरोजगारी, कोरोनावायरस का संक्रमण, विशेषकर आम जनता के मौलिक अधिकारों
का हनन, जिस तरह से शासन व्यवस्था द्वारा किए जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में न्यायपालिका की चुप्पी से अब
लोगों में उत्तेजना देखने को मिल रही है। न्यायपालिका और मीडिया के माध्यम से आम जनता न्याय पाने की
आशा करती हैं। मीडिया आम जनता की बातें सरकार विधायिका और न्यायपालिका तक पहुंचाने का काम करती है।
मीडिया को स्वयं कोई अधिकार नहीं है। मीडिया में जो भी विषय सामने आते हैं निश्चित रूप से न्यायपालिका
विधायिका और कार्यपालिका उस दिशा में विचार करना शुरू कर देती है। यही मीडिया की सबसे बड़ी ताकत है।
न्यायपालिका की जिम्मेदारी संविधान द्वारा सर्वोच्चता मैं रखी गई है। सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट को संविधान ने
विशेष अधिकार दिए हुए हैं। जिसमें वह विधायिका, कार्यपालिका और विषय वस्तु के अनुसार स्वंय संज्ञान लेकर
आदेश जारी कर सकती हैं। न्यायपालिका द्वारा पूर्व में ऐसे बहुत से मामले सामने आए हैं। जब हाईकोर्ट और
सुप्रीम कोर्ट ने लोगों के मौलिक अधिकार एवं संविधान की भावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए आदेश जारी किए हैं।
पिछले कुछ माहों से न्यायपालिका द्वारा सरकार को सहयोग करने की भावना से जो कार्य किए जा रहे हैं उससे
न्यायपालिका की निष्पक्षता पर समय-समय पर सवालिया निशान, स्वयं न्यायपालिका के सेवानिवृत्त जज और
वरिष्ठ अधिवक्ता लगा रहे हैं। इससे मामला बड़ा गंभीर हो जाता है। 2 माह से अधिक के लॉकडाउन, मजदूरों की
भगदड़, बेरोजगारी और आर्थिक स्थितियों को लेकर जो अफरा-तफरी का माहौल पूरे देश भर में बना हुआ है। ऐसी
स्थिति में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को ज्यादा सजगता एवं जिम्मेदारी के साथ कार्य करना होगा। न्यायपालिका ही
एक ऐसा माध्यम बचा है, जो जनता और सरकार के बीच में सेतु बनाए रखते हुए स्थितियों को नियंत्रण में रख
सकता है। इस दिशा में सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट की विशेष जम्मेदारी भी है।