शिशिर गुप्ता
बिना गारंटी के 3.5 लाख करोड़ रुपए के कर्ज़ और चार साल का समय कोई भी सरकार या बैंक नहीं दे सकते।
यह बड़े जोखि़म का फैसला है। और फिर एक साल तक मूलधन भी नहीं चुकाना है। बेशक उद्योग बैंक का कर्ज़ न
चुकाने के कारण एनपीए घोषित किया जा चुका है, फिर भी सरकार ने उस यूनिट को नया कर्ज़ देना तय किया है।
साफ़ सोच है कि उद्योग नए सिरे से खड़ा हो सके, उसमें नई जान फूंकी जा सके, क्योंकि ऐसे सूक्ष्म, लघु,
मध्यम उद्योग (एमएसएमई) ही भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इन उद्यमों पर पहले से ही करीब 10 लाख
करोड़ रुपए के कर्ज़ हैं, उनके बावजूद 45 लाख से ज्यादा औद्योगिक इकाइयों और करीब 11 करोड़ कर्मचारियों
के पुनरोत्थान के लिए 3.5 लाख करोड़ रुपए के कर्ज़ देने की घोषणा केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की है।
यही प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक पैकेज की बुनियादी सोच है। विपक्ष की व्याख्या है कि सरकार कर्ज़ की
अर्थव्यवस्था का आधार बना रही है। सभी घोषणाएं कर्ज़ संबंधी हैं। क्या इसे ही पैकेज कहते हैं? आम आदमी और
मजदूर की जेब में नकदी क्या डाला गया, क्योंकि उस वर्ग ने नौकरियां गंवाई हैं? वह फिलहाल बिलकुल विपन्न
है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पैकेज के इस हिस्से को ‘बिग ज़ीरो’ करार दिया है। कुंठित और दुराग्रही
नेता के बयान पर क्या टिप्पणी करें? बहरहाल समस्या आम आदमी की बेरोज़गारी और खाली जेब की जरूर है,
क्योंकि उसके बिना आर्थिक बाज़ार में मांग कैसे पैदा होगी? अर्थशास्त्री सवाल कर रहे हैं कि छोटे उद्योगों के लिए
3.5 लाख करोड़ रुपए बैंकों को मुहैया कराए जाएंगे, क्या वह पूंजी हवा खाने को दी जाएगी? जाहिर है कि बिन
पूंजी वाले एमएसएमई बैंकों से नए कर्ज़ लेंगे, उद्योगों में निवेश कर उन्हें जीवंत बनाएंगे और अंततः रोज़गार के
अवसर पैदा करेंगे। आर्थिक पैकेज में उन इकाइयों के लिए भी 20,000 करोड़ रुपए और 50 हजार करोड़ रुपए के
प्रावधान किए गए हैं, जो अपना विस्तार करना चाहती हैं और सभी तनावों, संकटों से निजात पाना चाहती हैं।
लिहाजा एमएसएमई को नए सिरे से परिभाषित करना बेहद महत्त्वपूर्ण है। अब एक करोड़ रुपए से 100 करोड़ रुपए
तक के निवेश और टर्नओवर वाली कंपनियां भी एमएसएमई की परिधि में आएंगी। अब सूक्ष्म, लघु और मध्यम
उद्योगों को अलग-अलग परिभाषित किया गया है। यह प्रावधान भी पहली बार किया गया है कि अब 200 करोड़
रुपए तक के सरकारी ठेके ‘ग्लोबल’ नहीं होंगे, सिर्फ भारतीय छोटे उद्योग ही उनके लिए टेंडर कर सकेंगे। यकीनन
इससे एमएसएमई का बाज़ार और संभावनाओं के आयाम खुलेंगे। उससे ऐसी औद्योगिक इकाइयों की संपदा बढ़ेगी
और वे आत्मनिर्भर होती जाएंगी। यह भी घोषणा की गई है कि सरकारी विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों में इन
औद्योगिक इकाइयों के जो भी भुगतान लंबित होंगे, उनकी अदायगी 45 दिनों में ही करनी होगी। बेशक पैकेज में
प्रवासी मजदूरों की जेब में 7500 रुपए नकद डालने की घोषणा नहीं की गई। ऐसी व्यवस्थाओं से देश की
अर्थव्यवस्था स्थायी तौर पर मजबूत नहीं हो सकती। बिजली कंपनियों के लिए 90,000 करोड़, गैर-बैंकिंग वित्तीय
कंपनियों की स्पेशल तरलता स्कीम के तहत 30,000 करोड़ रुपए देने की घोषणाएं कर हरेक वर्ग की आर्थिक
मदद करने की कोशिश की गई है। विभिन्न क्षेत्रों के निर्माण से जुड़े ठेकेदारों, बिल्डरों को तीन से छह माह की
मोहलत देकर प्रयास किया गया है कि उनके हाथ में तरलता रहे। ईपीएफ की 12 फीसदी दर और अंशदान भी
सरकार ही देगी। कई स्तरों पर आर्थिक मदद के प्रावधान किए गए हैं। अब सवाल यह है कि यदि घोषित कर्ज़
अक्तूबर माह से मिलने शुरू होंगे, तो तब तक पूंजीहीन एमएसएमई कैसे काम करेंगे? कर्मचारियों के वेतन कैसे
दिए जाएंगे? उत्पादन के लिए कच्चा माल कैसे खरीदा जाएगा? ऐसी कई व्यावहारिक समस्याएं सामने आएंगी।
क्या तब तक सरकार आंशिक तौर पर कोई बंदोबस्त कर सकती है? यह वित्त मंत्री ने पैकेज की पहली घोषणा की
है। अभी 2-3 हिस्सों के संबोधन शेष हैं, जिनमें बचे-खुचे वर्गों को राहतों के आश्वासन बांटे जाएंगे। सबसे जरूरी है
आम आदमी की भूख और बेकारी को तुरंत समाप्त करने की कोशिश करना। सरकार आंकड़ों की बौछार कर सकती
है, लेकिन अंतिम प्रतिक्रिया जनता की ही होगी, जो अंततः सबसे ज्यादा ताकतवर है, लिहाजा पांच माह की लंबी
प्रतीक्षा कराने के बजाय सरकार तुरंत ही कोई प्रयास करे।