अशोक कुमार यादव मुंगेली
सावन म सबो कोती हरियाली के हे बहार।
चलव मनाबो छत्तीसगढ़ के पहली तिहार।।
किसान ह धान बों डरिस खेत अउ भांठा।
नांगर, कुदरी, रापा ल धोके पारही हांथा।।
रचमच-रचमच गेंड़ी चढ़हे लईका मन आहीं।
मुसुर-मुसुर गुड़हा चीला ल जम्मों झन खाहीं।।
पाखा म सवनाही बनाथें सबो माई लोगिन।
घर के बाहिर म बनाहीं गोबर के परेतीन।।
यादव ह घरो-घर नीम के डारा ल खोंचही।
लोहार ह चौखट म लंबा खीला ल ठोंकही।।
जुरमिल के कुटकी देबी के पूजा ल करबो।
मवेसी के बचईया देवता गोरइंया ल मनाबो।।
कबड्डी अउ नरियर फेंकउला के खेलबो खेल।
गेंड़ी दउड़ अउ नाचा ले संगी संग होही मेल।।