शिशिर गुप्ता
भारतीय चुनाव आयोग विषय पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में जिस छात्र को पहला स्थान मिला,
उसका निबंध इस प्रकार है-भारत में चुनाव पर्व की तरह मनाया जाता है। यहाँ तक कि राष्ट्रीय पर्व भी
इसके सामने पानी भरते हैं। भारतीय चुनाव में चुनाव आयोग का महत्वपूर्ण स्थान है। चुनाव की तारीखें,
पोलिंग बूथों की सं या और चुनाव के परिणाम घोषित करने के अतिरिक्त कोई दूसरा काम नहीं करते।
पहले चुनाव बैलट पत्र से हुआ करता थे। अब ईवीएम से होने लगा। ईवीएम में पार्टियों के निशान होते हैं
और उनके आगे नीले रंग का बटन होता है। नीले रंग के बटन को दबाने पर जो आवाज निकलती है
उससे पक्ष-विपक्ष का दिल कभी मचलता, उछलता तो कभी सिकुड़ता, भड़कता और जरूरत पड़ी तो कांपता
भी है।
चुनाव आयोग चुनावों से ज्यादा चपरासीगिरी के लिए मशहूर है। उसे यह देखना होता है कि कौन किसे
गरिया रहा है, कितना गरिया रहा है, कैसे गरिया रहा है, क्यों गरिया रहा है आदि-आदि। गरियाने के बाद
कौन पिला रहा है, कितना पिला रहा है, कहाँ से पिला रहा है और कब पिला रहा है आदि-आदि पर नजर
रखते हैं। लक्ष्मी जी पर इनकी विशेष रुचि रहती है। कौन, किसे, कैसे और कब बाँट रहा है यही सब पता
लगाने के चक्कर में चुनाव समाप्त हो जाते हैं।उधर दूसरी ओर पार्टियों की उछलकूद चुनावों के समय
मतदाताओं के कि लिए नोट की छपाई, बोतलों की उगाही और लालची आंखों के लिए नोटों की भरपाई
खूब की जाती है। पार्टियाँ मतदाता को रिझाने के लिए शीला की जवानी से लेकर एंजलिना जोली की
झोली तक हर गाने पर अंगड़ाइयां ले ले कर नाचते हैं। उन्हें मधुशाला की बूंदे पिलाते हैं। ऊपर से नोटों
की बरसात कराते हैं। बावजूद इसके मतदाता किसी से वफाई तो किसी से बेवफाई कर जाते हैं। चुनाव
आयोग पाँच साल में एक बार या किसी का विकेट लुढ़कने या फिर अपनी जनता से तलाक ले चुके नेता
की कार्रवाई पूरा करने के लिए चुनाव करवाते हैं।
चुनाव आयोग और सरकार का संबंध चोली दामन सा होता है। इधर सरकार जनता को मनलुभावन
लालच का सूरज दिखाकर करोड़ों-अरबों का पैकेज घोषित कर देते हैं। चूंकि सरकार पैकेज को पैक कर
रखना चाहती है इसलिए चुनाव आयोग के बहाने चुनाव कोड का नाटक करवा देते हैं। न नौ मन तेल
होगा न राधा नाचेगी। चुनाव तक न कोड हटेगा और न सरकार पैसा देगी। हिसाब बराबर। चुनावों के
समय चिह्नों का बड़ा महत्व होता है। चुनाव आयोग पार्टियों के चिह्नों पर मुहर लगाती है। फिर जनता
बटन दबाती है। बाद में जीती हुई पार्टी सबका गला दबाती है। चुनाव आयोग के पास सब कुछ होता है,
केवल एक मन को छोड़कर। उनका मन तो पार्टियों के 'मनÓफेस्टो में न जाने कहाँ दबकर रह जाता है
कि कभी दिखने का नाम नहीं लेता। जो भी हो चुनाव आयोग कभी मन की बात नहीं करता। केवल
चुनाव की बात करता है। यही कारण है कि भारत विश्वभर में चुनावों का देश कहलाता है।