चीन प्रकरण-कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है?

asiakhabar.com | April 7, 2024 | 4:50 pm IST
View Details

-तनवीर जाफ़री-
बिहार के जमुई में गत दिनों राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि “आज का भारत दुश्मन के घर में घुसकर मारता है। कांग्रेस के राज में भारत को ग़रीब और कमज़ोर देश माना जाता था। छोटे-छोटे देश जो आज आटे के लिए तरस रहे हैं, उनके आतंकी हम पर हमला करके चले जाते थे और तब की कांग्रेस दूसरे देशों के पास शिकायत लेकर जाती थी। पीएम मोदी ने आगे कहा कि अब ऐसे नहीं चलेगा…आज का भारत घर में घुसकर मारता है…आज का भारत दुनिया को दिशा दिखाता है”। स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी का इशारा पाकिस्तान की तरफ़ था। उसी पाकिस्तान की तरफ़ जिसके कांग्रेस पार्टी ने 1971 में न केवल दो टुकड़े कर दिये थे बल्कि भारत पाक के बीच हुये संक्षिप्त युद्ध के दौरान भारतीय सेना के समक्ष पाकिस्तानी सेना ने विश्व का अब तक का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण भी किया था। इतना ही नहीं बल्कि यह सब उस अंतराष्ट्रीय राजनैतिक वातावरण के बीच हुआ था जबकि अमेरिका, पाकिस्तान का पक्षधर था और भारत के विरुद्ध सातवें बेड़े के रूप में अपना जंगी जहाज़ भेजने की घुड़की भी दी थी। गोया आज़ादी के मात्र 24 वर्षों बाद ही भारत ने न तो अमेरिका जैसी विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की परवाह की न ही पाकिस्तानी सेना की।
अब ज़रा मोदी राज में पड़ोसी देश चीन के दुस्साहस और सरकार के ‘हौसले’ पर नज़र डालिये। भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी का दावा है कि चीन ने लद्दाख़ की 4, 067 वर्ग किमी ज़मीन हड़प ली है। उन्होंने यह भी कहा है कि मोदी सरकार सच्चाई छिपा रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी यही दावा कर चुके हैं कि लद्दाख़ के एक बड़े हिस्से पर चीन ने क़ब्ज़ा किया हुआ है। चीन ने लद्दाख़ के सीमावर्ती ज़मीन पर क़ब्ज़ा भी किया और इस क़ब्ज़े के कुछ ही दिनों बाद उसने अपने देश का एक नया मानचित्र भी जारी कर दिया, जिसमें अक्साईचिन जोकि भारत का हिस्सा है उसे चीन के क्षेत्र में दिखाया गया है। लद्दाख के स्थानीय लोग भी चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं कि चीन ने लद्दाख़ की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लिया है जिसमें बड़ा हिस्सा उनकी चरागाह भूमि का भी है। कई पूर्व सैन्याधिकारी अनेक राजनेता व विदेशी मामलों के जानकार बार बार इस बात को दोहराते रहे हैं कि चीन ने लद्दाख़ की हज़ारों किलोमीटर ज़मीन बलात दबा ली है। परन्तु इनसब आरोपों के जवाब में हमारे प्रधानमंत्री मोदी फ़रमाते हैं कि लद्दाख़ की एक इंच ज़मीन पर भी चीन ने क़ब्ज़ा नहीं किया है। प्रधानमंत्री के शब्दों में-“न वहां कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के क़ब्ज़े में है’। प्रधानमंत्री मोदी तो चीन का नाम लेने तक से कतराते हैं। इसी विषय पर मोदी सरकार के विदेश मंत्री एस जयशंकर के तो विचार ही निराले हैं। जयशंकर यह तो स्वीकार करते हैं कि आज चीन सीमा पर शांतिकाल में हमारे इतिहास की सबसे बड़ी सैन्य तैनाती है। वे यह भी बताते हैं कि सीमा पर आधारभूत संरचना ख़र्च को मौजूदा सरकार ने पांच गुना तक बढ़ाया है। परन्तु साथ ही वह यह भी कहते हैं कि -‘चीन भारत से बड़ी अर्थव्यवस्था है और हम चीन से नहीं लड़ सकते’। इस वातावरण में भी सरकार द्वारा सफल विदेश नीति व सफल कूटनीति का दावा करना कैसे सही समझा जाये? क्योंकि यदि सफल विदेश नीति और कूटनीति होती तो सीमा पर सैनिकों की तैनाती कम होती, शांति की स्थापना का रास्ता हमवार होता। सीमा पर युद्ध और सैन्य टकराव के हालात न होते।
भारत द्वारा लद्दाख़ सीमा पर अपनाये जा रहे ढुलमुल रवैय्ये का ही नतीजा है कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर भी अपनी गिद्ध दृष्टि लगाई हुई है। पिछले दिनों उसने अरुणाचल प्रदेश को चीनी क्षेत्र का इलाक़ा बताते हुये वहां के तीस स्थानों के नाम बदल दिए हैं। इनमें से 11 रिहायशी इलाक़े, 12 पर्वत, 4 नदियां, 1 तालाब और पहाड़ों से निकलने वाला एक प्रमुख रास्ता शामिल है। वैसे तो चीन पूरे अरुणाचल पर अपना दावा करता है परन्तु फ़िलहाल मुख्यतः उसकी बुरी नज़र तवांग इलाक़े पर टिकी हुई है। तवांग अरुणाचल के उत्तर पश्चिम में स्थित हैं, जहां पर भूटान और तिब्बत की सीमाएं हैं। अरुणाचल प्रदेश पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा राज्य है। इसके उत्तर व पश्चिमोत्तर में तिब्बत, पश्चिम में भूटान और पूर्व में म्यांमार के साथ इसकी सीमा है। भारत के लिये अरुणाचल प्रदेश पूर्वोत्तर के सुरक्षा कवच की अहमियत रखता है। इन सबके बावजूद जहां भारत चीन के प्रति नर्म व उदासीन रवैय्या अपनाता दिखाई देता है वहीँ चीन के हौसले इतने बुलंद हैं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग G20 सम्मेलन बीच में ही छोड़ कर अपने सैन्य मुख्यालय पहुँच जाते हैं और अपने सैनिकों को युद्ध के लिये तैयार रहने का आदेश भी दे देते हैं?
निश्चित रूप से चीन की गिनती विश्व के विस्तारवादी देशों में होती है जोकि अपने सीमावर्ती देशों की ज़मीनों को अपनी सैन्य शक्ति की धौंस दिखाकर या उन्हें क़र्ज़ में डुबोकर या तो क़ब्ज़ा जमाता रहा है या उनपर अपना दावा ठोकता रहा है। भारत सहित पाकिस्तान, पूर्वी तुर्किस्तान, दक्षिणी मंगोलिया, तिब्बत, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग व मकाउ जैसे देश इसी सूची में शामिल हैं। लद्दाख़ व अरुणाचल प्रदेश में उभरे नये विवाद से पहले भी भारत की हज़ारों किलोमीटर ज़मीन पर चीन ने क़ब्ज़ा कर रखा है। परन्तु वर्तमान मोदी सरकार जोकि दुश्मन को लाल आँखें दिखाने की बात करती है, जिस सरकार के मुखिया स्वयं अपनी छाती की नाप छत्तीस इंच बताते हैं जो देश को विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का दावा करते हैं जो दुश्मन को घर में घुसकर मारने की बातें करते हैं, उनसे निश्चित रूप से देश यही उम्मीद करता है कि वे चीन को भी अपनी छाती की नाप बताएं और लाल आँखों से उसकी तरफ़ भी देखें। आख़िर क्या वजह है कि प्रधानमंत्री के इस दावे के बावजूद कि “न वहां (लद्दाख़ में) कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के क़ब्ज़े में है’, फिर भी लद्दाख के स्थानीय लोग ही यह कह रहे हैं कि कि चीन ने हमारी हज़ारों किलोमीटर ज़मीन क़ब्ज़ा कर रखी है? क्या वजह है कि इसी बात को लेकर 7 अप्रैल को लद्दाख़ में मोदी सरकार की इन्हीं ढुलमुल नीतियों के विरुद्ध लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के नेतृत्व में पशमीना मार्च के नाम से जो बड़ा प्रदर्शन होने जा रहा था, सरकार ने लद्दाख़ के लोगों की आवाज़ को दबाने व प्रदर्शन से निपटने के लिये लद्दाख़ में इंटरनेट बंद करने का आदेश जारी कर दिया? इतना ही नहीं बल्कि सरकार ने इस प्रदर्शन से घबराकर लद्दाख़ में धारा 144 भी लागू कर दी और हर प्रकार के प्रदर्शन व आंदोलन पर रोक लगा दी? नतीजतन सोनम वांगचुक को सरकार व प्रशासन से किसी भी प्रकार के टकराव को टालने की ग़रज़ से प्रस्तावित प्रदर्शन को वापस लेना पड़ा। इस समस्या को छुपाने, दबाने, मीडिया ब्लैक आउट या झूठे बयानों से बात नहीं बनने वाली है। देश को सच्चाई जानने का अधिकार है। बक़ौल मिर्ज़ा ग़ालिब-बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं ‘ग़ालिब’। कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *