चीन को घेरने की रणनीति

asiakhabar.com | October 7, 2020 | 3:27 pm IST

विकास गुप्ता

जापान की राजधानी टोक्यों में क्वाड समूह के विदेश मंत्रियों की दूसरी बैठक चीन के लिए इस बात का स्पष्ट
संदेश है कि अब एशिया और इसके चारों ओर महासागरों में उसके बढ़ते कदमों के खिलाफ घेरेबंदी की रणनीति पर
तेजी से काम हो रहा है। ऐसे में चीन को अपना आक्रामक रवैया छोड़ दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान करना
चाहिए और महासागरीय सीमाओं के उल्लंघन करने और अपने सैन्य अड्डे बनाने से बाज आना चाहिए। पर
इतिहास गवाह है कि चीन सुधरने वाला नहीं है।
वह जिस विस्तारवादी नीति पर चल रहा है, उसमें उससे कुछ अच्छे की उम्मीद करना व्यर्थ है। यह बैठक ऐसे
वक्त में हो रही है जब भारत और चीन के बीच हालात बेहद तनावपूर्ण हैं। भारत के लिए इस बैठक का महत्व
इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि वह भी चार देशों के इस समूह का सदस्य देश है। क्वाड समूह में भारत के अलावा
अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया हैं। अमेरिका ने भी साफ कहा है कि क्वाड समूह का मकसद एशिया-प्रशांत क्षेत्र
को सुरक्षित बनाना है, खासतौर पर ऐसे वक्त में जब क्षेत्र में चीनी दादागीरी बढ़ती जा रही है।
क्वाड यानी चार देशों के इस समूह की स्थापना का मूल उद्देश्य एशिया में चीन के बढ़ती सैन्य ताकत को रोकना
था। पिछले कुछ वर्षों से दक्षिण चीन सागर को लेकर अमेरिका और चीन के बीच विवाद गंभीर रूप लेता रहा है
और कई मौकों पर तो हालात यहां तक पहुंच गए जैसे कभी भी युद्ध भड़क सकता हो। सामरिक लिहाज से चीन
के लिए दक्षिण चीन सागर काफी अहमियत रखता है। इसलिए वह इस पर दावा ठोकता रहा है और उसने वहां बड़े
सैन्य अड्डे भी बना लिए हैं। इसके अलावा यह इलाका प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के बीच स्थित समुदी
मार्ग से व्यापार का बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का 20 फीसद हिस्सा यहां से गुजरता है। सात देशों से घिरे दक्षिणी चीन सागर को
लेकर चीन और दूसरे एशियाई देशों में टकराव पहले से चल रहे हैं। इसलिए एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की घेरेबंदी
के लिए अमेरिका ने आस्ट्रेलिया, भारत और जापान का हाथ पकड़ा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस वक्त
अमेरिका ने चीन के खिलाफ पूरी तरह से मोर्चा खोल रखा है। चीन पर दुनिया में कोरोना महामारी फैलाने का
आरोप लगा कर उसने ज्यादातर देशों को उसके खिलाफ लामबंद करने की रणनीति बनाई है। दोनों देशों के बीच
व्यापार युद्ध तो पहले से चल ही रहा था। आस्ट्रेलिया भी चीन से खफा है और जापान उसका पुराना प्रतिद्वंद्वी।
ऐसे में क्वाड के सभी सदस्य देश कहीं न कहीं चीन की चालों से घायल महसूस कर रहे हैं। भारत के साथ तो चीन
ने लद्दाख सीमा पर इस बार जिस तरह का विवाद खड़ा किया, भारतीय जवानों पर हमले किए, घुसपैठ की,
उससे उसकी मंशा उजागर हो गई।
कुछ समय पहले दक्षिण चीन सागर में विमानवाहक पोत को उड़ा देने वाली मिसाइल का परीक्षण कर चीन ने जो
ताकत दिखाई, उससे अमेरिका की नींद उड़ी हुई है। ऐसे में चीन को सबक सिखाने के लिए उसे घेरना जरूरी है
और यह काम किसी एक देश के बूते का नहीं है। इसके लिए क्वाड जैसे समूह की जरूरत है, बल्कि इस संगठन
का विस्तार हो तो और अच्छा, तभी चीन को निरंकुश होने से रोका जा सकेगा।
लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प में कर्नल और दो भारतीय जवानों का
बलिदान हर्गिज व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हालांकि इस झड़प में कुछ चीनी सैनिकों के भी मारे जाने की खबर है,

लेकिन इससे चीन का अपराध कम नहीं हो जाता। उसने एक बार फिर जिस तरह हमारी पीठ पर छुरा घोंपने का
काम किया, उसके बाद इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा और कोई चारा नहीं कि वह हमारे सबसे बड़े और साथ ही
शातिर शत्रु के रूप में सामने आ गया है। यह धूर्तता की पराकाष्ठा है कि वह भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण भी करता
है और फिर भारत को शांति बनाए रखने का उपदेश देते हुए पीछे हटने से इंकार भी करता है। भारत की सीमाओं
पर अपने विस्तारवादी रवैये का निर्लज्ज प्रदर्शन करने के पीछे उसका इरादा कुछ भी हो, अब उस पर रत्ती भर भी
विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। गलवन घाटी की घटना यही बता रही है कि पानी सिर के ऊपर बहने लगा है।
मित्रता की आड़ में शत्रुतापूर्ण रवैये का परिचय देना और भारत को नीचा दिखाना चीन की आदत बन गई है।
हालांकि उसकी इस गंदी आदत के बावजूद भारतीय नेतृत्व ने सदैव संयम का परिचय दिया है, लेकिन अब जब वह
इस संयम को कमजोरी के तौर पर देखने लगा है तब फिर भारत को उसका यह मुगालता दूर करने के लिए हर
मोर्चे पर सक्रिय होना ही होगा। आखिर बात देश के मान-सम्मान की है।


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