चीन के खिलाफ ट्रेड वार जरूरी

asiakhabar.com | July 26, 2020 | 1:58 pm IST

अर्पित गुप्ता

भूटान से सटी भारत की सीमा के पास डोकलाम में चीन के 72 दिन तक गतिरोध पैदा करने और आधे अधूरे
तरीके की वापसी के तीन साल बाद, उत्तरी सीमा पर लद्दाख में घुसपैठ करने के तीन महीने बाद भारत सरकार ने
चीन को पहली बार कारोबारी झटका दिया। इससे पहले भारत ने कुछ छोटे-छोटे कदम उठाए थे। अब सरकार ने
ऐलान किया है कि बड़ी सरकारी खरीद में चीन की कंपनियां टेंडर नहीं डाल पाएंगी। ध्यान रहे भारत बहुत बड़ा
बाजार है। इसमें चीन की कंपनियां काफी सक्रिय रही हैं। पर अब उनके ऊपर पाबंदी लगेगी। इसका असर होगा।
इससे पहले भारत ने टिकटॉक सहित चीन के 59 एप्स पर पाबंदी लगाई थी तब माना जा रहा था कि यह बड़ा
कदम नहीं है। क्योंकि इनका बड़ा कारोबार भारत में नहीं है। इसके बावजूद इसका असर हुआ। दुनिया ने इस बात
का जिक्र किया कि भारत ने चीन के खिलाफ ट्रेड वार की छोटी ही सही लेकिन पहल की है। दुनिया के कई और
देशों ने चीन की जासूसी बंद कराने के लिए उसके एप्स पर पाबंदी लगाने पर विचार किया है। ध्यान रहे इन एप्स
बनाने वाली कंपनियों के हितों को चोट पहुंचेगी तो वे चीन की सरकार पर दबाव बनाएंगे। चीन भले कम्युनिस्ट
पार्टी के शासन वाला देश है पर बुनियादी रूप से वह कॉरपोरेट पूंजी से ही नियंत्रित हो रहा है और कोई भी सरकार
उनके हितों को चोट नहीं पहुंचा सकती है।
एप्स पर पाबंदी के साथ साथ भारत सरकार ने चीनी कंपनियों को दिए जाने वाले टेंडर पर भी रोक लगाई है।
भारत की कई निजी कंपनियां आगे आई हैं जो चीन को मिले टेंडर को पूरा करेंगी। गौरतलब है कि भारतीय रेलवे
के डेडिकेटेड फ्रेट कॉरीडोर के काम में चीन की कंपनियों को ठेका मिला हुआ है पर रेलवे ने इसे रद्द करने का
फैसला किया है। इसके रेलवे में काम करने वाली भारत की सबसे पुरानी कंपनियों में से एक टेक्समैको रेल एंड
इंजीनियरिंग लिमिटेड ने रेलवे को लिखा है कि वह इस काम को पूरा कर सकती है। यह कंपनी बिड़ला समूह की है
और केके बिड़ला ग्रुप इसका संचालन करना है। ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट रेल कॉरीडोर की सिगनलिंग और
टेलीकम्युनिकेशन का काम चीन की कंपनी के पास था, जो बहुत खराब तरीके से इस काम को कर रही थी। करीब
470 करोड़ रुपए का यह प्रोजेक्ट भारतीय रेलवे ने चीनी कंपनी से ले लिया है, जिसे पूरा करने के लिए बिड़ला
समूह की कंपनी आगे आई है।
इसी तरह भारत संचार निगम लिमिटेड, बीएसएनएल ने अपने सिस्टम को अपग्रेड करने के लिए चीनी कंपनियों के
उत्पाद लगाने का फैसला किया था, जिसे स्थगित कर दिया गया। अब चीन की बजाय दूसरे देश की तकनीक का
इस्तेमाल होगा। इससे बीएसएनएल की सेहत पर तो फर्क पड़ेगा, लेकिन चीन के कारोबारी हितों पर चोट देने के
लिहाज से यह भी एक जरूरी कदम है। जाहिर है कि भारत अभी जो भी कदम उठा रहा है वह छोटे हैं। इनका
प्रतीकात्मक असर होगा पर इसका मैसेज चीन को समझना चाहिए। उसे यह समझना होगा कि भारत इससे आगे
बड़ी पहल भी कर सकता है। भारत अगर इसमें समय ले रहा है तो उसका मकसद अपनी तैयारियों को दुरुस्त
करना भी हो सकता है। ध्यान रहे भारत ने चीन के जिन 59 एप्स को बैन किया उनकी जगह लेने के लिए एक
सौ से ज्यादा स्वदेशी एप्स आ गए हैं। धीरे धीरे इनकी लोकप्रियता भी बढ़ रही है।
भारत ने पड़ोसी देशों से होने वाले निवेश को लेकर भी बड़ा फैसला किया था और तय किया था कि पड़ोसी देशों से
आने वाले निवेश के लिए पहले से मंजूरी लेना अनिवार्य होगा। ध्यान रहे भारत में चीन ने बड़ा निवेश किया है।
खासतौर से गुजरात में। बतौर मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री के रूप में भी नरेंद्र मोदी ने चीन को बड़े मौके दिए।
उनकी पहल पर चीन ने गुजरात में स्टील प्लांट से लेकर ऑटोमोबाइल सेक्टर में बड़ा निवेश किया है। निवेश के
नियमों में मामूली बदलाव करके भारत ने अब चीन को मैसेज दे दिया है वह इस मामले में भी भारत को फॉर

गारंटेड न ले। भारत को निवेश की जरूरत है परंतु वह चीन के निवेश का रास्ता रोक सकता है। इन सब कदमों से
भारत ने चीन को मैसेज दे दिया है।
अगर भारत सैन्य व कूटनीतिक दबाव के साथ साथ कारोबारी दबाव भी बनाए तो चीन को सबक सिखाया जा
सकता है। यह भी याद रखने की बात है, चीन हमेशा दूसरे देशों को कारोबारी दबाव में रखता है। जैसे ऑस्ट्रेलिया
ने कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने में उसकी भूमिका की जांच की मांग की वैसे ही चीन ने उसके यहां से जौ
और बीफ के आयात को कम करने की धमकी दे डाली। सो, चीन को जहां भी कारोबारी एडवांटेज है वहां वह उसका
इस्तेमाल जरूर करता है। भारत ऐसे देशों में है, जहां कारोबारी एडवांटेज भारत के पास है। सो, भारत को दबाव
बनाने के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहिए।


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