राजीव गोयल
भारत के खिलाफ लगातार साजिश रचने वाला चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। चीनी सेना ने भारतीय
दूरसंचार कंपनियों, सरकारी एजेंसियों और रक्षा सेक्टर समेत अन्य सेक्टरों को निशाना बना रहा है। बताया जा रहा
है इन चीनी हमलों में एनटीपीसी के प्लांट्स भी शामिल थे। एक साइबर इंटेलिजेंस कंपनी ने जनकारी साझा की है।
अमेरिकी रिपोर्ट में चीन के इस साजिश के पुख्ता सबूत मिले हैं। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि चीन का यह
अभियान पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के एक विशिष्ट इकाई से जुड़ा था। अमेरिकी रक्षा मुख्यालय के तहत
आने वाले रिकॉर्डेड फ्यूचर की ओर से इसका खुलासा हुआ, जिसने इस साल की शुरुआत में बिजली और बंदरगाह
क्षेत्रों में भारत के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को निरंतर करने वाले सिस्टमों पर चीनी साइबर निशाना बनाए हुए था।
इसी साल मार्च में उजागर हुई इस यूनिट को रेडइको कहा गया, जबकि नए समूह की पहचान रेडफॉक्सट्रोट के रूप
में हुई है। रिकॉर्डेड फ्यूचर के इंसिक्ट ग्रुप ने संदिग्ध चीनी सरकार द्वारा प्रायोजित समूह के रूप में पहचान की गई
है। चीन की ओर से यह हरकत उस वक्त शुरू हुई जब पिछले साल भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर
दोनों सेना आमने-सामने थीं। लद्दाख में भारतीय और चीनी सेना के बीच झड़प हुई थी। एक अलग ब्लॉग पोस्ट में
रिकॉर्डेड फ्यूचर ने कहा कि ये निष्कर्ष नेटवर्क ट्रैफिक के विश्लेषण, हमलावरों द्वारा उपयोग किए गए मैलवेयर के
फुटप्रिंट, डोमेन रजिस्ट्रेशन रिकॉर्ड और संभावित लक्ष्यों से डेटा ट्रांसमिसिंग करने पर आधारित थे। भारत में इस
तरह के साइबर हमले लगातार बढ़ रहे हैं। एक आंकड़ा तो एडवर्ड स्नोडेन ने ही मुहैया कराया था। मार्च 2013 में
स्नोडेन ने बताया था कि बाहर बैठे सेंधमारों ने भारतीयों की 6.3 अरब खुफिया सूचनाओं तक पहुंच बना ली थी।
हालत यह है कि हमारे प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर रक्षा व विदेश मंत्रालय, भारतीय दूतावासों, मिसाइल प्रणालियों,
एनआइसी, यहां तक खुफिया एजेंसी-सीबीआई के कंप्यूटरों पर भी साइबर हमले कर जासूसी हो चुकी है। साइबर
स्पेस के खतरों की बात अब काल्पनिक नहीं है। वर्चुअल आतंक, सेंधमारी और सैन्य व आर्थिक महत्व की सूचनाओं
के लीक होने जैसी घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि सूचनाओं के इलेक्ट्रॉनिक संजाल में घुसपैठ की रोकथाम
के पुख्ता प्रबंध नहीं करने का खमियाजा दुनिया की कई सरकारों को भी उठाना पड़ सकता है। पुलवामा हमले के
बाद खबर मिली थी कि पाक हैकरों ने भारत सरकार से जुड़ी कम से कम नब्बे वेबसाइटों को हैक कर लिया है।
इनमें खासतौर से वित्तीय संचालन और पावर ग्रिड से जुड़ी वेबसाइटें हैकरों के निशाने पर थीं।
साइबर कहें या वर्चुअल (आभासी) जंग, असल में अब इसका खतरा वास्तविक है। मामला भारत, पाकिस्तान या
चीन तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें महाशक्तियां शामिल हैं। पिछले वर्ष अक्टूबर में कई पश्चिमी देशों ने रूस के
सैन्य खुफिया विभाग पर दुनियाभर में कई साइबर हमले करने के आरोप लगाए थे। हालांकि रूस ने इन आरोपों को
खारिज किया और कहा था कि कुछ पश्चिमी देश उसे योजनाबद्ध तरीके से फैलाए जा रहे दुष्प्रचार में फंसाने की
कोशिश कर रहे हैं। इसमें संदेह नहीं रह गया है कि भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती साइबर जंग होगी। साइबर युद्ध
के जरिये संचालित की जाने वाली वे आपराधिक और आतंकी गतिविधियां जिनसे कोई व्यक्ति या फिर संगठन
देश-दुनिया व समाज को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करे। अभी तक देश में इस तरीके से कई गैरकानूनी काम
हुए, जैसे ऑनलाइन ठगी, बैंकिंग नेटवर्क में सेंध, लोगों- खासकर महिलाओं को गलत प्रोफाइल बना कर परेशान
करना आदि।
साइबर जंग या आतंकवाद का हैकिंग के रूप में भी एक चेहरा ऐसा हो सकता है जिसमें खासतौर से महत्त्वपूर्ण
सरकारी वेबसाइटों को निशाना बनाया जाए। भारत में हाल के साइबर हमलों की घटनाओं के बाद यह मांग तक
उठने लगी है कि वर्चुअल जंग से दो-दो हाथ करने के मामले में हमारे देश में ठीक वैसा ही रवैया अपनाने की
जरूरत है जैसा उड़ी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा हमले के बाद हवाई हमले के रूप में अपनाया
गया है, यानी साइबर अपराधियों का संपूर्ण सफाया किया जाए। मगर यह काम आसान नहीं है। असल में साइबर
युद्ध छेडऩे वाले अपराधियों का चेहरा साफ नहीं दिखता है। दुनिया के किसी भी कोने में बैठ कर सेंधमार सरकारी
प्रतिष्ठानों की वेबसाइटों को चौपट करने के अलावा बैंकिंग से जुड़ी गतिविधियों में सेंधमारी करके अपना उल्लू
सीधा कर सकते हैं। जहां तक सरकारी वेबसाइटों को निशाना बनाने की बात है तो ऐसा अक्सर दो देशों के बीच
तनाव पैदा होने के हालात में ही सेंधमारी करते हैं।