शिशिर गुप्ता
चीनी सेना गलवान घाटी से करीब दो किलोमीटर पीछे हटी है। गलवान में ही पीपी-14 के पास 15 जून को हिंसक
और हत्यारी झड़प हुई थी। तब से भारत और चीन के सैनिकों के बीच तनाव और तनातनी की ऐसी स्थिति थी कि
कभी भी टकराव संभव था। इस बार भारतीय सैनिकों को गोली चलाने और हथियार इस्तेमाल करने की अनुमति
मिल चुकी है, लिहाजा अगली झड़प किस हद तक जा सकती है, यह दोनों ओर की सेनाएं ही तय करेंगी। बहरहाल
यह तनाव और तनातनी कम करने की खबर है कि चीनी सेना ने गलवान घाटी के साथ-साथ हॉट स्प्रिंग, गोगरा
आदि इलाकों से पीछे हटना शुरू किया है, लेकिन पैंगोंग झील और डेप्सांग इलाकों से चीनी सेना नहीं हटी है। क्या
यह चीनी सेना की अधूरी वापसी है? बहरहाल कुछ तंबू उखाड़े गए हैं। अस्थायी ढांचों और अन्य निर्माणों को
ध्वस्त किया है। सेना के वाहन भी लौट रहे हैं। अभी तक यह खबर सरकारी सूत्रों के जरिए आई है या टीवी चैनलों
पर कुछ सेटेलाइट इमेज दिखाई गई हैं। सेना का आधिकारिक खुलासा सामने क्यों नहीं आया, इसका जवाब सेना
ही देगी, लेकिन 72 घंटे तक चीनी सैनिकों की गतिविधियों पर निगरानी रखने की बात कही गई है। यह भी
सूचना आई है कि गलवान घाटी क्षेत्र में विवादित जगह के चारों ओर, तीन किलोमीटर तक, बफर जोन बनाया
जाएगा। वहां किसी भी देश का सैनिक नहीं जाएगा। सेना के पीछे हटने की कवायद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा
सलाहकार अजित डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच करीब दो घंटे के टेलीफोनिक संवाद के बाद शुरू
हो सकी। स्पष्टीकरण दिया गया कि कमांडर स्तर की बातचीत में अभी तक जो सहमतियां तय हुई थीं, उन्हें लागू
कर सेनाओं को पीछे करने की प्रक्रिया शुरू हुई है। चीनी विदेश मंत्रालय का बयान गौरतलब है कि भारत-चीन
संबंधों की परीक्षा तूफान से हुई है। दोनों देशों में बातचीत जारी रहेगी। चीन फर्स्ट लाइन फोर्स पीछे हटा रहा है।
भारत ने भी दोहराया है कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का सम्मान करे। बहरहाल चीन को एकदम ही
यह निर्णय नहीं लेना पड़ा कि सेनाएं पीछे हटेंगी और अवैध निर्माण धराशायी किए जाएंगे। यह चीन की
अंतरराष्ट्रीय घेराबंदी, भारत सरकार द्वारा उसके 59 ऐप्स पर पाबंदी लगाने, सरकारों के स्तर पर ही चीनी
कंपनियों के ठेके रद्द किए जाने और चीनी उपकरणों तथा सामान के बहिष्कार की घोषणाओं से जो दबाव चीन ने
महसूस किया, उसके मद्देनजर सीमा क्षेत्रों में तनाव कम करने और लिहाजा सैनिकों को पीछे हटाने के फैसले लेने
पड़े। दरअसल चीनी सेना और उसके कमांडरों ने भी कल्पना नहीं की थी कि भारतीय सैनिक इतना कड़ा प्रतिरोध
करेंगे और सीमा पर आंख में आंख डाल कर तैनात रहेंगे। भारत की युद्ध संबंधी तैयारियों को देखकर भी चीन
पुनर्विचार करने पर विवश हुआ होगा कि इतने मोर्चों पर जंगी माहौल बनाकर वह जीत हासिल नहीं कर पाएगा।
कमोबेश भारतीय मोर्चे पर चीन ने समझौता करना ही बेहतर समझा। बेशक हमारे प्रधानमंत्री के लेह दौरे ने भी
सैनिकों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला। बेशक अहम सवाल यह है कि क्या यह सैन्य वापसी और कवायद स्थायी
है? एलएसी पर भारतीय दावे के जिन इलाकों का उल्लंघन चीन ने किया था, क्या वह उन्हें सुधारेगा और वहां से
हमेशा के लिए पीछे हटेगा? क्या यह छह कदम आगे और दो कदम पीछे वाली चीनी सेना की वापसी है? कुछ भी
हो, इस बार भारत चीन की भावना और 70 साल पुराने कूटनीतिक रिश्तों की दुहाई कबूल नहीं करेगा। फिलहाल
भरोसा करने की गुंजाइश बेहद कम है, क्योंकि चीन पलट कर कई बार पीठ में वार कर चुका है। सबसे गहरा
आघात तो 1962 का है, जब समझौता करने और ‘हिंदी-चीनी, भाई-भाई’ का नारा बुलंद करने के बावजूद चीन के
करीब 2000 सैनिकों ने गलवान घाटी में हमला कर दिया था। अंततः युद्ध पूरा ही हुआ, जिसमें भारत को करारी
हार झेलनी पड़ी। बहरहाल 1962 और 2020 में गहरे अंतर हैं। आज हमारी सेनाएं भी वैश्विक स्तर की हैं।
बहरहाल युद्ध की बात न करें, तो सेनाओं की इस वापसी का विश्लेषण भी किया जाएगा। उसी के बाद भारत
किसी निष्कर्ष तक पहुंच सकता है।