विकास गुप्ता
भारत-चीन के बढ़ते तनाव के बाद देशभर में चीनी उत्पादों का बहिष्कार लगातार जारी है। लोग बिल्कुल भी परवाह
न करते हुए अपने घरों का महंगा सामान तक तोड रहे हैं और यह आइटम सौ-दौ सौ रुपये का नही बल्कि हजारों
का हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम वीडियो वायरल हो रहे हैं। लेकिन सवाल यह ही है कि जनता के बहिष्कार
करने का असर कितने दिन होगा और इससे चीन को किस प्रकार का नुकसान हो सकता है। अगर आप यह
समझते हैं कि हमारे कुछ दिनों के लिए चीन के सामान का त्याग करने से कोई प्रभाव पडेगा तो यह निश्चित तौर
पर गलत है। चूंकि चंद लोगों के कुछ समय के लिए नकारने से कुछ नही होने वाला।जब तक सरकार चाइना के हर
प्रोडेक्ट को पूर्ण रुप से प्रतिबंध नही कर देती तब तक बात नही बनेगी। लेकिन वहीं इसके विपरित यह भी
समझना होगी कि, क्या यह इतना आसान होगा जितनी बडी हमें तस्वीर दिखाने की कोशिश की जाती है।
हम चीन से बडे स्तर पर कार व मोटरसाइकिल के पुर्जे, खिलौने, कंप्यूटर एंटीबायोटिक्स दवाईयों के अलावा कुछ
अन्य महत्वूर्ण चीजों का उत्पाद करते हैं। वहीं दूसरी ओर हम चीन को स्टील, कॉपर, हस्तशिल्प उत्पाद, कृषि
उत्पाद, सूती वस्त्र के अलावा कई अन्य अहम वस्तुओं के साथ हम हीरे का करीब चालीस प्रतिशत निर्यात करते हैं।
बीती फरवरी में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, चीन के साथ भारत का व्यापार 2017-18 में 90 बिलियन डॉलर
से घटकर 2018-19 में 87 बिलियन रह गया था। चीन से भारत का आयात 2018-19 में सत्तर बिलियन
डॉलर था जबकि भारत का चीन को निर्यात 2018-19 में 17 बिलियन था। आंकडों के गणित के आधार पर
2018-19 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 54 प्रतिशत था। इससे स्पष्ट हो जाता है कि चीन घाटे की
कोई गुंजाइश नही छोडता। इस आधार पर चीन व हमारे कुछ चीजें जिस तरह करार के तहत आदान-प्रदान होती हैं
उसके करार को खत्म करना आसान नही है। लेकिन साथ में यह भी कहा जाता है कि दृड निश्चय जीत का संकल्प
होता है और उस आधार पर हम चीन से पूर्ण रुप से बायकट कर भी दें तो क्या हम वहां से आने वाली वस्तुओं की
पूर्ति करने में सक्षम हैं और जो चीजें हम वहां भेजते हैं उसको अपने या अन्य किसी देश में खपाने के लिए कितने
तैयार हैं। जो हरकत चीन ने करी उस घटना को लेकर कोई दोराय नही हैं कि उसका बहिष्कार न किया जाए
लेकिन तकनीकी रुप व धरातल पर हम इसके लिए कितने तैयार हैं? यह अहम है। कुछ समय पहले भारत ने
सिन्धु जल समझौते को तोडने के लिए कहा था तो चीन ने तुरंत प्रभाव के जबाव में कहा था कि वो भी ब्रह्मपुत्र
नदी की सहायक नदी को बंद कर देगा। जिस वजह से भारत के अरुणाचल प्रदेश, असम व सिक्किम के अलावा
अन्य एक दो राज्य में पानी की कमी आ जाती। यहां मानव जीवन पर संकट आ सकता था।
यह बात हमें समझनी होगी कि हम सभी पडोसी देश से कुछ न कुछ आयात व निर्यात जरुर करते हैं। इसलिए
किसी भी करार को तोडना उतना आसान नही जितना समझा जाता है। यदि हम चीन को मुनाफा देते हैं तो उससे
लेते भी हैं। चीन ने बहुत चालाकी से अपने पडोसी देशों पर जिस तरह कब्जा करता जा रहा है वो दिन दूर नही कि
कुछ देश पूर्ण रुप से उसकी गिरफ्त में होंगे। यदि पाकिस्तान व श्रीलंका की बात करें तो यह बहुत जल्दी वो दिन
आने वाले हैं कि चीन ही इनको संचालित करेगा। श्रीलंका में तो लगभग सारे डेवलेपमेंट के काम में चाइना कूद
गया और पाकिस्तान ने इतना कर्जा ले रखा है कि वो सब कुछ बेचकर भी शायद ही उतार पाए। और यदि भारत
की बात करें तो यहां ऐसी स्थिति नही हैं लेकिन हमारे यहां बाजार को बडे स्तर पर कवर लिया।हालांकि हमारे पास
अभी समय है कि हम इससे बाहर आ सकते हैं। चूंकि चाइना अभी केवल प्रोडेक्टों तक ही सीमित है और रियल
स्टेट व अन्य किसी बडे क्षेत्र में नही कूदा है। लेकिन हमें चीन की हर चाल से सतर्क रहना होगा। कोरोना काल में
चाइना की हरकतों से उसके गलत मंसूबों का पता चल गया। भारत जैसे देश का मेक इन इंडिया व डिजिटल इंडिया
के दम पर बडी हुंकार भरता है तो उसके आधार पर चीन के उन सभी उत्पादों पर लगाम लगानी जो भारत में बडे
स्तर पर पैर पसार रहे हैं। इसमें मुख्य इलैक्ट्रानिक सामान की संख्या अधिक है। मोबाइल जगत में बढ़ते कदमों
को रोकना भी अनिवार्य है। भारत सरकार को चीन आने आयात करने वाले सभी उत्पादों का विकल्प अपने ही देश
में खोजना चाहिए। अब वो समय आ चुका है कि हम अपने तकनीकी क्षेत्र को बढ़ावा दें। इससे हमें दो प्रकार का
फायदा है। पहला तो इससे हमारे यहां रोजगार बढ़ेगा व दूसरा इस क्षेत्र में किसी अन्य देश पर निर्भरता खत्म
होगी। यहां केन्द्र सरकार को आत्म मंथन की जरुरत है। चूंकि चीन पहले तो वो ऐसा हितैशी बनकर दिखाएगा कि
जैसे कि उससे बडा कोई मीत न हों लेकिन उसके बाद पीठ में छुरा घोप देता है।