चालबाजियों में नहीं है जीवन का सुख

asiakhabar.com | July 15, 2020 | 4:15 pm IST
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सुरेंदर कुमार चोपड़ा

अगर हम खुद को श्रेष्ठ और बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं तो हमारे दिमाग में कई तरह की चालबाजियां
आने पर भी हम उनमें भाग नहीं लेते। हम ईमानदारी से जीवन जीते हैं। चालाकियों के साथ हम दूसरों को
प्रभावित तो कर सकते हैं लेकिन ये हमें सुकून नहीं दे सकतीं।
जब एक बच्चा गिरता है और पाता है कि कोई भी आसपास नहीं है तो वह खड़ा होकर आगे बढ़ जाता है। लेकिन
अगर कोई आसपास है तो बच्चा उसका ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए रोना शुरू कर देता है। यह रैकेट है।

रैकेट एक तरह से चालबाजी ही है ताकि धोखे से कुछ पाया जा सके। जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं तो इस तरह
की चालबाजियों वाले खेल खेलने लगते हैं।
हम चोट से बचे रहें इसलिए हम गुस्सा दिखाते हैं, हम रोने लगते हैं ताकि दूसरों की सहानुभूति प्राप्त कर सकें,
एक आकर्षक युवती दूसरों को प्रभावित कर सकती है लेकिन जब कोई युवक उसके समक्ष प्रस्ताव रखता है तो वह
अस्वीकार कर देती है और इस प्रक्रिया में मजबूती का एहसास करती है। किसी भी व्यक्ति को इन रैकेट्स के प्रति
सतर्क रहना चाहिए। इसे और गहराई में समझते हैं।
एक धोबी अपने गधे पर नमक लादकर ले जा रहा था। गधा कई तरह की चालबाजियां कर रहा था। जब वह एक
पोखर से गुजरा तो वह पानी में बैठ गया और चूंकि पीठ पर नमक लदा था तो वह गल गया। अचानक उसका पूरा
भार कम हो गया। धोबी गधे की इस चालाकी को समझ गया और उसे एक सबक सिखाना चाहता था।
अगली बार, उसने गधे पर कपास लाद दिया और जब गधे ने वही चालाकी दोहराई तो वह चकित रह गया कि
बोझ पहले के मुकाबले ज्यादा भारी हो गया था। कथा का सार यही है कि हमारी चालाकियां हमारी मदद नहीं कर
पाती हैं, हमें इनके प्रति सतर्क रहना चाहिए।
सवाल यह भी है कि हम इस तरह की चालबाजियां या दिमागी कसरत कैसे बंद कर सकते हैं?
तरीका यह है कि अपने जीवन के लक्ष्य के प्रति बहुत स्पष्ट रहो। तय करो कि बदलाव के लिए प्रयास कर रहे हो
या फिर अपने ईगो के लिए? अगर हम जीवन में बदलाव के लिए काम कर रहे हैं, खुद को श्रेष्ठ बनाने के लिए
काम कर रहे हैं तो हमारे दिमाग में इस तरह की चालाकी आती भी है तो हम उसमें भाग नहीं लेते। जब भी कभी
आपके दिमाग में इस तरह की चालाकियां आएं तो उन्हें ना कहें और ईमानदार होने के आनंद को जिएं। आपके
व्यक्तिगत एजेंडे और ईगो के खेल के बीच चुनाव ही जीवन या बदलाव है। जब आप अपने जीवन को बेहतर बनाने
के लिए आगे बढ़ते हैं तो आप किसी भी तरह के ईगो से मुक्त होते जाते है।
हम अक्सर अप्रसन्ना क्यों रहते हैं?
प्रसन्नाता हमारा स्वभाव है। जब भी हम किसी चीज की आशा या अपेक्षा करते हैं और वह नहीं मिलती है तो हम
नाखुश रहेंगे। क्या आपने कभी अनुभव किया कि जब आप अपेक्षा नहीं करते तो स्वाभाविक रूप से प्रसन्न रहते
हैं? गहरी नींद में हम खुश होते हैं क्योंकि हमारी कोई इच्छा नहीं होती, कोई अपेक्षा नहीं होती। क्या ऐसा नहीं है?
मैं आपसे यह नहीं कह रहा हूं कि जीवन में कोई अपेक्षा न हो। लेकिन अपेक्षा के साथ यह भ्रम न पैदा हो जाए
कि मैं भविष्य में खुश रहूंगा और वर्तमान में मैं खुश नहीं हूं। यही अप्रसन्नाता का बड़ा कारण है।
खुश रहते हुए आपकी अपेक्षाओं को सामने आने दो। इस स्पष्टता को पाने के लिए ध्यान और गुरु आपकी सहायता
करते हैं। अप्रसन्नता को अधिक प्रयास की आवश्यकता होती है जबकि प्रसन्नाता आपका स्वभाव है। हमारा ईगो ही
यह भ्रम पैदा करता है कि जब हमारी अपेक्षाओं की पूर्ति हो जाएगी तो हम खुश हो जाएंगे। एक बुद्धिमान व्यक्ति

तो वही होता है जिसके पास ऐसा कोई ईगो नहीं होता। बुद्धिमान व्यक्ति किसी भी तरह के तर्क से परे जाकर
अपने आनंद की खोज करता है।
पैसे के प्रति किसी भी व्यक्ति का रुख कैसा होना चाहिए?
इस पर मैं मानूंगा कि पैसा उपयोगी है, वह जरूरी है। लेकिन उसे अपना भगवान मन बनाओ। उसके मालिक बनो
उसके दास नहीं। जब आपके पास पैसा नहीं है तो बिना धन के आनंद की तलाश करो। गरीबी में भी एक तरह की
अमीरी है जो अमीरी में भी नहीं है। इसी तरह अमीरी में भी एक तरह की गरीबी है जो गरीबी में नहीं होती। जब
आपके पास पर्याप्त पैसा है तो उसका आनंद लें और दूसरों की मदद करें।
इसी कारण पैसे को करंसी कहा जाता है कि वह करंट की तरह बहती रहे। ऐसी अर्थव्यवस्था जहां पैसा बहता रहता
है वह अच्छी है। जहां लोग धन को पकडकर रखते हैं वह अर्थव्यवस्था अमीर नहीं हो सकती। जब आप गरीब थे,
तब यह सत्य है कि आप महल में नहीं रह रहे थे लेकिन आप पेड़ के नीचे रह रहे थे और पेड़ की अपनी सुंदरता
थी। तब आप आकाश के नीचे थे और आकाश का अपना सलोनापन था। वह व्यक्ति जो भीतर से अमीर है वह
अच्छा जीवन जीता है।
मैं जीवन में अक्सर बोर क्यों होता हूं?
जीवन तो हमेशा ही आपके सामने रहता है और दिमाग ही आपको बताता है कि वह सामने है। भ्रम आपको
अप्रसन्न बनाता है आप महसूस करेंगे कि सूरज वही है, चंद्रमा वही है और आपके सारे रिश्तेदार वैसे ही हैं। लेकिन
आपका मन या कहें कि दिमाग भ्रम में है तो कुछ भी रोमांचक नहीं लगेगा। तो सूर्य, चंद्रमा और अपने रिश्तों में
कुछ नया खोजने का प्रयास करें। दूसरों में कुछ नया देखने या खोजने का प्रयास ही आपकी ऊब को खत्म करेगा।


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