घाटी में अमन

asiakhabar.com | July 10, 2021 | 4:55 pm IST

सुरेंदर कुमार चोपड़ा

जम्मू-कश्मीर के राजौरी में सेना के जवानों ने आतंकियों की घुसपैठ की एक बड़ी कोशिश नाकाम कर दी। सुंदरबनी
इलाके में घुसपैठियों और जवानों के बीच हुई फायरिंग में दो पाकिस्तानी आतंकी ढेर हो गए। घटना में दो जवान
भी शहीद हो गए। इससे पहले सेना ने कुलगाम और पुलवामा में छह आतंकियों को मार गिराया। मारे गए आतंकी
लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए थे। पिछले एक सप्ताह में 10 से ज्यादा आतंकी मारे जा चुके हैं। जम्मू-कश्मीर में बीते
30 साल से जारी आतंक को खत्म करने के लिए सेना और पुलिस ने एक नया पैटर्न अपनाया है। वह है-किसी भी
घटना या हमला होने से पहले ही आतंकियों को मार गिराना। इसका नतीजा यह हुआ कि आतंकी घटनाएं कम हुईं
और आतंकियों के मरने की संख्या ज्यादा। आंकड़े भी इस बात की गवाही देते हैं। वर्ष 2020 में जम्मू-कश्मीर में
100 से ज्यादा ऑपरेशन चलाए गए। इनमें 90 कश्मीर और 13 जम्मू में हुए। इस दौरान कुल 225 आतंकी मारे
गए। जिनमें से 207 कश्मीर और 18 जम्मू में मारे गए। इस दशक में तीसरी बार ऐसा हुआ है, जब सालभर में
200 से ज्यादा आतंकी मारे गए। इससे पहले 2018 में 257 और 2017 में 213 आतंकी मारे गए थे। हालांकि,
2020 में आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई में 62 जवान शहीद हुए। इनमें 44 जवान पैरामिलिट्री फोर्स के थे और 16
जवान पुलिस के थे।

जम्मू-कश्मीर में 1990 से आतंकवाद पनपना शुरू हुआ। 1990 में 4 हजार 158 आतंकवादी घटनाएं हुईं और 564
आतंकी मारे गए। सुरक्षाबलों के भी 155 जवान शहीद हुए। तब से अब तक यहां 71 हजार 410 आतंकी घटनाएं
हो चुकी हैं। 25 हजार 137 आतंकी मारे गए हैं। 2020 में जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 143 आतंकी घटनाएं हुईं। ये
आंकड़ा 30 साल में सबसे कम है। 2020 इसलिए भी याद किया जाएगा, क्योंकि ये पहला साल था, जब आतंकी
घटनाएं कम हुईं और आतंकी ज्यादा मरे। साल 2020 में जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की 255 घटनाएं सामने
आईं। ये 2019 की तुलना में 87 फीसदी कम है। 2019 में पत्थरबाजी की एक हजार 999 घटनाएं हुई थीं। इनमें
भी एक हजार 193 घटनाएं अनुच्छेद 370 हटने के बाद दर्ज हुई थीं। एक समय था जब जवानों पर पथराव की
घटनाएं आम बात थीं। हर शुक्रवार को नमाज के बाद युवाओं का बाहर आना और पाकिस्तान के झंडे के साथ
प्रदर्शन करना देखा जाता था। मगर मोदी सरकार ने आने के बाद अलगाववादियों पर जो शिकंजा कसा, उसका
असर अब दिखने लगा है। आंकड़े खुद गवाही दे रहे हैं कि घाटी का माहौल किस हद तक सुधर चुका है।
घाटी में सेना को फ्री हैंड करने के बाद न सिर्फ आतंकियों के हौसले पस्त हुए, बल्कि उनकी रहनुमाई करने वाले
भी छिप गए। आतंकियों को मदद मिलनी बंद हो गई, तो पाक से आने वाले आतंकियों को यहां जमीन तलाशना
भारी पडऩे लगा। जो घुसपैठ करके आए, वे मंसूबे पूरे करने से पहले ही मारे गए। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह
से बड़े आतंकी एक के बाद एक मारे गए, उससे घाटी के युवाओं में भी डर बैठा औैर उनका आतंक की तरफ से
रुझान हटा। हालांकि, अब भी चुनौती बाकी हैै। कुछ लोग हैं जो आतंक को पालने-पोषने की फिराक में बैठे हैं, उनसे
संभल कर रहना होगा। अब केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में फिर से लोकतंत्र की बहाली की ओर कदम बढ़ा रही है।
चुनाव आयोग का एक दल वहां पहुंचा है। उम्मीद जताई जा रही है कि अगले कुछ माह में चुनाव कराए जा सकते
हैं। मगर यह तभी संभव है, जब आतंकियों पर पूरी तरह लगाम लगे।


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