ग्वालियर चम्बल इलाके की ब्रांडिंग नहीं हो पायी…

asiakhabar.com | July 9, 2021 | 5:05 pm IST

अर्पित गुप्ता

ग्वालियर चम्बल इलाके की अच्छी तरह से मार्केटिंग होना अभी भी बाकी है। ये इलाका प्राचीन इतिहास में
गौरवशाली माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण से लेकर उनके भाई बलराम, उनकी बुआ कुंती से लेकर महावीर कर्ण
का इतिहास यहाँ से जुड़ा है। कुंतलपुर में काफी कुछ अवशेष जुड़े हैं महारानी कुंती से पर फिर भी हमारे सरकारी
मेहकमों ने इस तरफ खास तवज्जो नहीं दी।
इस मामले में 1987 में हमने एक छोटा सा प्रयास अमर गायक के मकबरे की दुर्दशा की तरफ तत्कालीन गुना-
शिवपुरी के सांसद महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा से किया था। वो मामले में काफी गम्भीर हो गये और उन्होंने अप्रैल 1987
में लोकसभा में एक सप्ताह में ही दो-दो बार काफी आक्रामकता से सवाल दागे और फिर अमर गायक तानसेन व
उनके गुरु हज़रत मोहम्मद गोस साहब के मकबरे को पुरातत्व सर्वेक्षण के मुख्यालय ने जरूर महत्व दिया और यहाँ
1990 से 2006 तक लगातार 15-16 बरस तक काम पुरातत्व सर्वेक्षण के भोपाल वृत्त ने कराया पर तत्कालीन
सर्वेक्षण के महानिर्देशक रहे अजय शंकर ने माधवराव सिंधिया के पीछे लग-लगकर 8-10 सालों तक चम्बल-
ग्वालियर के आयुक्त पद पर रहकर खूब मौज उड़ाई पर यहाँ के पर्यटन, पुरातत्व विकास को वो गति नहीं दिलाई
जो पूर्व रेल राज्यमंत्री सिंधिया चाहते थे। मुझ से एक डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म सिंधिया जी ने बनाने का प्रस्ताव पुरातत्व
सर्वेक्षण को भी भेजा महज एक लाख पैंतालीस हजार रुपये का उसे 2 साल तक रोक कर रखा गया जिस पर
महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा व सिंंिधया खूब नाराज हुये थे। तत्कालीन सर्वेक्षण के डायरेक्टर डॉ. अग्रवाल को बुलाकर
घंटों खड़ा रखकर उन्हें फटकारा था 1994-95 में पर सिंधिया के बाद इस तरफ किसी अन्य सियासतदां ने ध्यान
नहीं दिया।
इसी तरह ग्वालियर-चम्बल इलाके में 200 से भी ज्यदा प्राचीन स्मारक 2-3 सदी से पवाया भितरवार इलाके में
मिलते रहे हैं जिन्हें हमने भारत सरकार के सांस्कृतिक मेहकमे की बड़ी-बड़ी अलबमों में देखा जो निवेशियों को भेंट
की जाती रही हैं पर ग्वालियर-डबरा में उसे कोई नहीं जानता। 16 अगस्त 1988 को तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ.
शंकरदयाल शर्मा से मेरी ग्वालियर विरासत नामक पुस्तक के विमोचन अवसर पर हुई लम्बी चर्चा पर मैने पवाया
इलाके में भवभूति नामक विद्वान की चर्चा की तब उन्होंने मुझे खूब शाबाशी दी पर 1988 तक भवभूति को डबरा,
ग्वालियर व भोपाल में किसी ने कोई महत्व नहीं दिया था जबकि अशोक बाजपेयी उस दौर में भारत भवन बनवा
रहे थे। अजयशंकर व अशोक बाजपेयी ने कला संस्कृति के नाम पर खुद को स्थापित भर किया, नौकरशाहों की
चापलूसी ने ग्वालियर अंचल का कफी नुकसान किया। शिवराज सिंह उस दौर के कलेक्टर ने जरूर हमारे सुझावों
पर केन्द्र सरकार को 1987-88 में दर्जनभर खत लिखे पर कालूखेड़ा जी के लोकसभा में सवालों के दम पर अमर
गायक तानसेन के मकबरे का विकास हो सका। गत 3-4 सालों से ग्वालियर में कलेक्टर साहेबान पुरातत्व संघ की
बैठक नहीं ले सके हैं और ना ही माननीय हाईकोर्ट का 2019 में किया गया किले परिक्षेत्र से अतिक्रमण हटाने का
आदेश देख पाये हैं।


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