अशोक कुमार यादव मुंगेली
गुरु बड़ा है जग में सबसे, सुमिरन करूँ मैं नाम।
भवसागर से पर लगाए, बना देता बिगड़े काम।।
गुरुवाणी अनमोल रे हंसा, ज्ञान को करो धारण।
पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति, अज्ञान हो अवदारण।।
दिव्य प्रकाशमान आत्मा, भटक रही बन निर्जीव।
गुरु सत्संग जिसको मिले, बन जायेगा वो सजीव।।
दुनिया माया जाल में बंधे, गुरु की बात नहीं माने।
कर रहा कुकर्म, दुराचार, स्वयं अँधा बन अभिमाने।।
जब त्याग दोगे सर्वनाशी घमंड, धन-दौलत की मोह।
तब गुरुवर बचाने आयेंगे, उबारने जगत दुर्गम खोह।।
धोकर सभी मन का मैल, ज्ञानी गुरु का ध्यान लगाओ।
गुरु कर्म के लिखा बदल देंगे, सत्कर्म से सुख पाओ।।
गुरु मिलने आएगा एक दिन, ढूँढते तुझे तुम्हारे द्वार।
सरल, सुगम पथ बताने, मिट जाएगा मन अँधकार।।
शरणागति में मोक्ष प्राप्ति, बार-बार करो गुरु के वंदन।
गुरु के पैरों की धूल को, तिलक लगाओ समझ चंदन।।