विकास गुप्ता
जम्मू-कश्मीर सरकार ने 2001 में जे एंड के स्टेट लैंड्स (वेस्टिंग ऑफ ऑनरशिप टू दि ऑक्यूपेंट्स) एक्ट-2001
के नाम से एक अधिनियम पारित किया था। इस अधिनियम में प्रावधान था कि लोगों ने 1990 तक जिन्होंने
सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया है, वह जमीन उन्हें ही दे दी जाएगी। अलबत्ता कब्जाधारियों को उस जमीन की
कीमत देनी पड़ेगी। लेकिन कीमत राज्य सरकार को खुद ही तय करनी थी। राज्य सरकार की गणना थी कि इससे
पच्चीस हजार करोड़ रुपए सरकारी खजाने में आएंगे। लेकिन सरकार इतने रुपए का क्या करेगी? सरकार का कहना
था कि राज्य सरकार को जलविद्युत उत्पादन के लिए बहुत से प्रकल्पों को निष्पादित करना है। कुछ प्रकल्प केंद्र
सरकार के अभिकरणों द्वारा निष्पादित किए जा रहे हैं। लेकिन उनकी बिजली केंद्र सरकार ले लेती है। राज्य
सरकार को केवल कुछ प्रतिशत रॉयल्टी ही मिलती है। अब राज्य सरकार राज्य की जमीन गैर कानूनी कब्जाधारियों
के हवाले कर देगी और उनसे जो पैसा मिलेगा उससे बिजली बनाएगी जिसकी घर-घर में रोशनी हो जाएगी। लोगों
ने कहा कि यह तो रोशनी एक्ट हुआ।
केवल रिकार्ड के लिए बता दिया जाए कि इस रोशनी एक्ट का जन्मदाता अब्दुल्ला परिवार था और 2001 में
उनके दिमाग में इस एक्ट ने रोशनी की थी। उस समय राज्य के मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला थे। जिस वक्त
अब्दुल्ला परिवार ने यह कानून बनाया उस वक्त 27 लाख कनाल सरकारी भूमि पर लोगों ने नाजायज कब्जा कर
रखा था। जब लोगों ने देखा कि जिन्होंने सरकारी जमीन पर गैर कानूनी कब्जा कर रखा था, अब सरकार वह
जमीन उन्हीं के हवाले कर रखी है तो जिन्होंने अभी तक सरकारी जमीन पर कब्जा नहीं किया था, वे भी इस काम
में जुट गए। उस वक्त यह प्रश्न जरूर उठा कि अब जमीन पर कब्जा करने से कुछ नहीं होने वाला क्योंकि यह
लाभ केवल उन लोगों को मिलने वाला था, जिन्होंने सरकार को 1990 तक चूना लगा दिया था। लेकिन जम्मू-
कश्मीर के लोग बेहतर जानते थे कि वहां सरकार किस तरह काम करती है। अभी सरकारी जमीन पर नए सिरे से
कब्जा अभियान चल ही रहा था कि विधानसभा के चुनाव सिर पर आ गए। अब्दुल्ला परिवार के आमने-सामने
सोनिया कांग्रेस और सैयद परिवार की पीडीपी आ डटी। अब्दुल्ला परिवार लोगों को संकेत से समझाता रहा कि सब
सरकारी जमीनें आप के हवाले कर दी, अब और क्या चाहते हो?
लेकिन असली प्रश्न तो था कि आखिर जिन्होंने 1990 के बाद कब्जा किया है, उनके साथ भेदभाव क्यों? लोग
ऐसा भी कहते हैं कि सोनिया कांग्रेस और सैयद परिवार चुपचाप लोगों को समझाते रहे कि एक बार सत्ता तक
पहुंचा दो, यह भेदभाव भी खत्म कर देंगे। इस नई रोशनी की आशा में लोगों ने सचमुच सोनिया कांग्रेस और सैयद
परिवार की पीडीपी को जिता दिया। मुफ्ती मोहम्मद सैयद मुख्यमंत्री बने। अधिनियम में संशोधन किया गया कि
जिन्होंने 2004 तक भी सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया था, उनको भी वह जमीन दे दी जाएगी। इससे लोग
और जोश में आ गए। एक बार फिर सरकारी जमीनों पर कब्जे के अभियान ने तेजी पकड़ी। धैर्य का फल सदा ही
मीठा होता है। जैसे ही सोनिया कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद मुख्यमंत्री बने, एक बार फिर अधिनियम को
संशोधित किया गया। अबकी बार प्रावधान किया गया कि जिन्होंने 2007 तक सरकारी जमीन डकार ली है, वह
भी उनको दे दी जाएगी। किस्सा कोताह यह कि कांग्रेस परिवार, अब्दुल्ला परिवार और सैयद परिवार तीनों में
सरकार की जमीन को मुफ्त हड़पने की स्पर्धा में एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ लग गई। अब जरा यह देख लिया
जाए कि सरकारी जमीनों पर कब्जा किया किसने था?
श्रीनगर के मध्य में बना भवन जिसका नाम खिदमत ट्रस्ट है, सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाया गया था।
यह भवन कांग्रेस का था। कांग्रेस यानी सोनिया परिवार का ही मानना चाहिए। सरकारी जमीन पर गैर कानूनी
तरीके से अर्जित की गई करोड़ों की यह संपत्ति कौडि़यों के भाव कांग्रेस को मिलने वाली थी। लेकिन मामला केवल
कांग्रेस का ही नहीं था। पता चला कि अब्दुल्ला परिवार की पार्टी नेशनल कान्फ्रेंस के श्रीनगर व जम्मू के भवन भी
सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाए गए थे। रोशनी एक्ट की रोशनी में अब्दुल्ला परिवार ने इन्हें अब रोशनी
एक्ट में विधिवत आवंटित करवा लिया था। खिदमत और नेशनल कान्फ्रेंस के भवनों की इस स्थिति का खुलासा
जब आईएएनएस ने किया तो मानों राज्य में भूकम्प आ गया हो। अलबत्ता आईएएनएस ने चलते-चलते सरकारी
जमीन पर कब्जा करने वाले कुछ नामों का खुलासा भी कर दिया था। सैयद परिवार की सरकार में वित्त मंत्री रहे
हसीब द्राबु और उसका भाई। अब्दुल्ला परिवार के हमनिबाला रहे महबूब बेग, सोनिया कांग्रेस के वरिष्ठ नेता
मुश्ताक अहमद और कृष्ण आमला। जब हमाम में जाकर सभी नंगे हो ही जाते हैं तो नौकरशाह कैसे पीछे रहते?
खुर्शीद अहमद और तनवीर जहां भी जमीन हथियाने के हमाम में पाए गए। इसका अर्थ था पिछले छह दशकों से
वही लोग सरकारी जमीनों पर कब्जा करने के अभियान में लगे हुए थे जिनके जिम्मे इसकी रक्षा थी।
पैसा देकर सरकारी जमीन अपने नाम करवा ली जाती, तब भी कम से कम यह सुकून तो होता कि सरकारी खजाने
में पैसा आ जाएगा और उससे गरीब कश्मीरी के घर में रोशनी हो जाएगी। लेकिन इन लोगों ने जमीन पर भी
कब्जा कर लिया और नए अधिनियम यानी रोशनी एक्ट के तहत पैसा न देने के तरीके भी निकाल लिए। कब्जायी
गई सरकारी जमीन के प्रयोग को लेकर उसका वर्गीकरण कर दिया गया। यह नियम बनाया गया कि कब्जा करने
वाला यदि उस जमीन पर खेती करता है तो वह जमीन उसे मुफ्त ही दे दी जाएगी। प्रति कनाल एक सौ रुपया उसे
कागजों के खर्च का देना होगा। रातों-रात सभी लैंड माफिया कागजों में खेती करने लगे और मुफ्त में ही सरकारी
जमीन हजम कर गए। तब तक कैग की 2012-2013 की रपट आ गई। रपट में कहा गया कि अब तक राज्य
सरकार ने अवैध तरीके से कब्जायी गई 27 लाख कनाल सरकारी भूमि में से 348160 कनाल भूमि के मालिक
कब्जाधारियों को बना दिया है। सरकारी नियम के अनुसार इनसे भूमि की कीमत के तौर पर 317.54 करोड़
रुपया लिया जाना था। लेकिन सरकारी खाते में केवल 76.24 करोड़ ही आया। यह चमत्कार कैसे हुआ? सरकार
ने अपने रिकार्ड में दिखा दिया कि इस 348160 कनाल भूमि में से 340091 कनाल भूमि कृषि भूमि है। बाद
के दिनों में यह एक्ट ही रद कर दिया गया। अब कब्जाधारी लोग अपनी जमीन बचाने के प्रयास में हैं। इसी संकट
काल में गुपकार घोषणा निकली है। रोशनी एक्ट की रोशनी को एक बार फिर अनुच्छेद 370 के अंधकार में ले
जाने का प्रयास। खतरा इतना बड़ा है कि अब्दुल्ला परिवार इसके लिए चीन तक जाने को तैयार है। राजनीति और
भ्रष्टाचार के संयोग का दूसरा नाम गुपकार घोषणा कहा जा सकता है।