-निर्मल रानी-
गौपालन को हमारे देश में शताब्दियों से 'गौधन ' अथवा 'पशुधन ' के रूप में देखा जाता रहा है। खेती किसानी
करने वालों के लिये तो गौपालन कृषि के सहयोगी व्यवसाय का एक प्रमुख हिस्सा माना जाता था। परन्तु खेती
बाड़ी में भी आधुनिक व उन्नत कृषि साधनों के बढ़ते प्रयोग के चलते धीरे धीरे गाय-बैलों का इस्तेमाल कम होता
गया। हल-बैल की जगह ट्रैक्टर्स ने ले ली, बैलगाड़ी की जगह ट्रैक्टर ट्रॉलियां चलने लगीं,तो ज़ाहिर है गोवंश के
महत्व व उसकी उपयोगिता में कमी आ गयी। परन्तु इसी के साथ साथ गोवंश का हिन्दू धर्म में धार्मिक महत्व
होने के चलते यहाँ तक कि हिन्दू धर्म में गाय को 'माता ' के रूप में स्वीकार किये जाने के चलते इसके प्रति आम
हिन्दुओं की धार्मिक भावनायें भी जुड़ी हुई हैं । और भावनाओं की राजनीति करने में देश की सबसे माहिर भारतीय
जनता पार्टी इस तरह के मुद्दों को न केवल भुनाती आई है बल्कि गौवंश की सुरक्षा के नाम पर अपने विपक्षियों
पर भी हमलावर होती रही है।
परिणाम स्वरूप जिस तरह पिछले दिनों भोपाल के निकट बैरसिया तहसील में कथित रूप से एक भाजपा नेत्री की
गोशाला में व इसके इर्द गिर्द के खुले मैदान एवं खेतों में सैकड़ों गायों के सड़ते हुये शव व गोवंश के कंकाल पाये
गये हैं इसी तरह की अनेकानेक घटनायें भाजपा व सत्ता के संरक्षण में चलने वाली अनेक गौशालाओं में पहले भी हो
चुकी हैं।सत्ता संरक्षण में चलने वाली इन गौशालाओं में पाई जाने वाली अनियमिता,भ्रष्टाचार व क्रूरता के बावजूद
सरकार पर ऐसे गौशाला संचालकों को बचाने व इनका सहयोगी बनने का भी आरोप लगता रहा है। इसका केवल
एक ही कारण है कि गौमाता का बखान करने व इसे गौमाता के रूप में आम लोगों की भावनाओं से जोड़ने वाली
भाजपा व इसकी सरकारों में गौवंश संरक्षण के लिये न तो कोई स्पष्ट नीति है न ही नीयत। देश के अधिकांश
राज्यों विशेषकर उत्तर भारत के राज्यों में किसान छुट्टा व बेलगाम घूमने वाले इन पशुओं से कितना परेशान हैं यह
वही जानते हैं। एक तरफ़ तो घाटे की खेती बाड़ी करता किसान,बीज,बिजली,तेल, खाद आदि की आसमान छूती
क़ीमतों के बावजूद केवल खेती की परंपरा निभाता छोटा व मध्यम किसान अपनी फ़सल को इन बेलगाम छुट्टा
पशुओं से बचाने के लिये दिन-रात कैसे अपनी फ़सल की रखवाली करता है यह उस राजनैतिक वर्ग को नहीं पता
जो गाय के नाम का प्रयोग केवल हिन्दू समाज के लोगों की भावनाओं को भड़काने के लिये करते हैं। छुट्टा गौवंश
से जो किसान दुखी हैं या जिनकी तैयार फ़सलें ये पशु चर जाते हैं वे भी तो अधिकांशतः हिन्दू ही हैं? वे भी तो
गाय को माता ही मानते हैं ?
सरकार की गौवंश के प्रति अदूरदर्शी नीतियों का ही परिणाम है कि आज प्रतिदिन पूरे देश में सैकड़ों दुर्घटनायें इन्हीं
छुट्टे जानवरों के कारण हो रही हैं। कई बार भीड़ भरे चौराहों व सड़कों पर सांडों का संघर्ष होते व इसके कारण
कारों व अन्य वाहनों को दुर्घटनाग्रस्त होते व टूटते देखा गया है। सड़कों व चौराहों के बीचोबीच बैठना इन जानवरों
की फ़ितरत है जिसका ख़ामियाज़ा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। कई राज्यों में सरकार ने बिजली के मीटर घरों
के बाहर और अधिकांशतयः बिजली के खंबों पर ही लगवा दिये हैं। प्रायः गोवंश इन बिजली मीटरों से अपनी सींग
व सिर रगड़ते दिखाई देते हैं। नतीजतन बिजली के मीटर तो क्षतिग्रस्त होते ही हैं साथ साथ इन पशुओं को करेंट
लगने का ख़तरा भी बना रहता है।परन्तु तथाकथित गौवंश प्रेमियों की नज़र इस ज़मीनी हक़ीक़त की ओर कभी
नहीं जाती। देश और राज्यों की राजधानियों में बैठ कर गाय के प्रति प्रेम दर्शाने वालों को उन करोड़ों किसानों से
इस समस्या को लेकर भुक्तभोगी देशवासियों से भी तो संवाद स्थापित करना चाहिये।
वैसे भी केंद्र सरकार का गोवंश प्रेम उस समय और भी हास्यास्पद प्रतीत होता है जब गौमाता के संरक्षण का दावा
करने वाली इसी सरकार के गृह राज्य मंत्री किरण रिजुजू गौ भक्षण की पैरवी करते हों और स्वयं भी गौमांस खाने
की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हों। ग़ौर तलब है कि जब केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास ने संभवतः अपने
आक़ाओं को ख़ुश करने के लिये अपने एक बयान में यह कहा था कि-' अगर कुछ लोग बीफ़ खाने के लिए मरे जा
रहे हैं तो यहां (भारत में ) उन्हें यह नहीं मिलेगा। वे पाकिस्तान, किसी अरब देश या दुनिया के अन्य किसी भी
हिस्से में जाकर बीफ़ खा सकते हैं।' नक़वी के इसी 'निर्देश ' का जवाब इसी मंत्रिमंडल के गृह राज्य मंत्री किरण
रिजुजू ने इन शब्दों में दिया था कि – 'मैं गोमांस खाता हूं, क्या कोई मुझे ऐसा करने से रोक सकता है' । गृह राज्य
मंत्री ने उसी समय यह भी कहा था कि -'हमें एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि
देश में सभी लोगों की संस्कृति, परंपराओं, आदतों और भावनाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। इस मुद्दे को
लेकर ज़्यादा संवेदनशील होने की ज़रूरत नहीं है। हमारा देश लोकतांत्रिक है, कभी-कभार कुछ लोग ऐसे बयान देते
हैं, जो स्वीकार्य नहीं'। नक़वी को दिये गये किरण रिजुजूके इस जवाब से तो यह स्पष्ट हो ही जाता है कि राष्ट्रीय
गौनीति को लेकर ही सरकार में मतभेद स्पष्ट है।
पिछले दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय से संबध दिल्ली के प्रसिद्ध व प्रतिष्ठित हंसराज कॉलेज के सैकड़ों छात्रों द्वारा
केंद्र सरकार की नीतियों के विरुद्ध इसलिये प्रदर्शन किया गया क्योंकि सरकार हंसराज कॉलेज में महिला छात्रवास
हेतु चिन्हित किये गये स्थान पर गौशाला व गौ अनुसन्धान केंद्र खोलने की योजना बना रही है। प्रदर्शनकारी छात्रों
का कहना है कि सरकार की प्राथमिकता छात्राओं के लिये छात्रावास होना चाहिये न कि विश्वविद्यालय परिसर में
गौशाला व गौ अनुसन्धान। परन्तु सरकार की योजनाओं में गौशाला व गौ अनुसन्धान केंद्र व साथ साथ गऊ से
प्राप्त सामग्री से हवन-पूजा आदि करने जैसे प्रावधान भी शामिल हैं। सरकार द्वारा गौवंश प्रेम का ढिंढोरा पीटना
और साथ ही इसे लेकर दोहरी नीति अपनाना साथ साथ गाय के नाम पर लोगों की भावनाओं को भड़काकर उसका
राजनैतिक लाभ उठाना और गोशाला व गौपालन के नाम पर राष्ट्रव्यापी लूट करने वालों को कथित रूप संरक्षण
देना इस नतीजे पर पहुँचने के लिये काफ़ी है कि यह सब धर्म के नाम पर हो रहा अधर्म का व्यवसाय मात्र ही है ?