हमारे मित्र ढोंगी लाल ने काफी हाउस में चुस्कियां लेते हुए चुटकी ली। "अरे भाई! सुना है बापू यानी गांधी जी ने
पुनः सत्याग्रह करने का ऐलान किया है। उन्हें दुःख है कि कुछ लोग उनके सत्याग्रह और आजादी मार्च का पेटेंट
करना चाहते हैं, जिसकी वजह से यह ऐलान करना पड़ा है। मीडिया में नया विमर्श छिड़ गया। गांधीवादी चिंता में
पड़ गए हैं कि, ऐसे कैसे हो सकता है। यह जिम्मेदारी तो वे लोग भलीभाँति निभा रहे थे। सब कुछ अच्छा था।
गांधीवाद की दुकान अच्छी चल रहीं थी लेकिन अब उनका क्या होगा कालिया! सरकार ने बाकायदा इस तरह की
अफवाह से बचने का इश्तहार जारी कर दिया है। सोशलमीडिया पर बापू के सत्याग्रह की ऐसी हवा फैली कि उसे
रोकना मुश्किल हो गया है।टीवी वाले डिबेट चलाने लगे। दूसरे मित्र चोंगी लाल ने कहा "अरे भाई! ख़बर तो बासंती
है। इसमें सच और झूठ की कोई गुंजाइश भी नहीं है।" दूसरे मित्र ढोंगी लाल ने कहा " भाई! चोंगी लाल, आपौ
सठियाइ गए हो का- – -! " देखो! मित्र चोंगी लाल! कहते हैं कि जिसके विचार जिंदा हैं, वह मर कर भी जिंदा है।
अपने बापू ऐसे ही हैं। ख़बर सौ फीसदी सच है। क्योंकि , हमारे जीन में गांधी और गोड्से जिंदा हैं। वह कभी मर
नहीं सकते। अगर वह मर गए तो गांधी और गोड्सेवाद मर जाएगा। सत्ता और सिंहासन के साथ सियासत मर
जाएगी।
देखिए! हमारे यहाँ एक कहावत है 'महाजनों गतेन ते संपथा' यानी हमारे महापुरुष जिस रास्ते का अनुसरण करें,
उसी मार्ग पर हमें भी चलना चाहिए। तभी तो हम आजादी के सत्तर दशक बाद भी गांधी और गोड्से के अनुगामी
हैं। क्योंकि हम लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं। हमारा संविधान समता- समानता की वकालत करता है। आजकल
संविधान की प्रस्तावना पर अधिक जोर है। इसलिए हम गांधी और गोड्से में कोई फ़र्क नहीं रखते। मित्र! डोंगी
लाल, जरा चिंतन की चाशनी में डुबो और फ़िर बाहर आओ। देखो! देश आज़ भी गांधी और गोड्से का ऋणी है।
हमें आजादी दिलाते- दिलाते बापू शहीद हो गए। अभी हमने उनका सहादत दिवस भी मनाया है। चौराहों पर बुतों
की धूल- मिट्टी को धोया है। राजघाट पर अदब से पुष्प अर्पित कर शीश झुकाया है। गांधी दर्शन को जनजन तक
पहुँचाया है। साथ में गोड्से को भी खाद- पानी दिया है। कुछ गांधी नामधारियों ने तो बाकायदा 'गोड्से' का
नामकरण भी कर दिया। जामिया सत्याग्रह में एक नया गोड्से अवतरित हुआ है। किसी ने सच समाजवादी ने सच
कहा था , जब विचार मर जाते हैं तो इंसान जिंदा लाश बन जाता है। शायद इसीलिए हमने गांधी और गोड्से को
मरने नहीं दिया।
गीता में भगवान कृष्ण ने युद्धभूमि में अर्जुन को उपदेश देते हुए स्वयं कहा है। आत्मा अजर अमर है। इसका
कभी विनाश नहीं होता। वह केवल शरीर त्यागती है। यानी गांधी और गोड्से ने केवल शरीर का त्याग किया है।
उनकी आत्मा तो हमारे बीच है। तभी तो गांधी के बताए मार्ग पर चलते हुए हम आजादी- आजादी की रट लगाए
हुए हैं। आजकल अपने मुलुक में कई बाग तैयार हो रहे हैं। हमारी पंथी मीडिया और सत्याग्रही नई आजादी को
लेकर गजबै पॉपकार्न हो रहे हैं। अमीरबाग, ख़ुशरोबाग के बाद हमने 'शाहीनबाग' भी तैयार कर लिया है। अपन का
यह गांधीवाद इतना पॉपुलर हो चुका है कि इसकी तर्ज़ पर पूरे मुलुक को 'शाहीनबाग' का क्लोन बनाने की तैयारी
चल रहीं है। गांधी और गोड्सेवाद में बड़ा घालमेल हो गया है। गांधीवादी और गोड्सेवादी पूरी तरह अपने को साबित
करने में नाकाम दिख रहे हैं। दोनों मध्यमार्ग अपनाते दिखते हैं। लेकिन आजकल 'आजादी मार्च' में दोनों का
प्रतिबिंब खूब दिखा और बिका है।
देखो मित्र! ढोंगी लाल, आजकल सबकुछ पीछे छूट गया है। अपन का पूरा मुलुक जाम, जामिया, बाग के साथ
गांधी और गोड्से में उलझ गया है। हर रोज एक नया गोड्से विमर्श में मौजूद है। सुना है जामिया नगर के आजादी
मार्च में एक बार फ़िर किसी गोड्से का पुनर्जन्म हुआ है। हमारी मीडिया में वह खूब सुर्ख़ियां बटोर रहा है। गांधी
और गोड्से वादियों में जंग छिड़ गई है। यह सिलसिला फिलहाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। मुझे तो इस
बासंती खबर में सच दिखता है। शायद! इस विवाद को ख़त्म करने के लिए गांधी और गोड्से पुनः पुनर्जन्म लेंगे।
उन्हें एक दूसरे से माफी मांगनी पड़ेगी कि भाई, आप लोग यह लड़ाई ख़त्म कीजिए। हम दोनों ने मिलकर यह
झगड़ा निपटा लिया है। देश को और कितनी आजादी चाहिए और कितने टुकड़े चाहिए।