गंगा यमुना से कम पावन नहीं नर्मदा नदी

asiakhabar.com | September 11, 2021 | 4:27 pm IST
View Details

-डॉ राघवेंद्र शर्मा-
इसे जीवंतता मिली तो जीव मात्र का कल्याण
मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार द्वारा नर्मदा नदी को जीवंत इकाई का दर्जा देने संबंधी संकल्प सराहनीय है। यदि
यह संकल्प कानून में परिवर्तित होता है तो केवल मनुष्य ही नहीं, वरन इससे जीव मात्र का कल्याण होने वाला है।
क्योंकि यह पावन नदी मध्यप्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा है तथा महाराष्ट्र को छूते हुए लक्ष्य को प्राप्त होती
है। इसके किनारों पर अनेक संस्कृतियां संरक्षित और संवर्धित हैं। यदि नर्मदा नदी की व्यापकता पर नजर डालें तो
मध्य प्रदेश के अमरकंटक से उद्भव होने वाली नर्मदा गुजरात स्थित खंभात की खाड़ी तक पहुंचकर समुद्र में
समाहित हो जाती है। इसकी लंबाई की बात की जाए तो यह मध्य भारत में बहने वाली सबसे बड़ी नदी होने का
गौरव रखती है। यही नहीं, भारतीय उपमहाद्वीप में बहने वालीं महानतम नदियों में नर्मदा नदी को पांचवा स्थान
प्राप्त है। जहां तक भारत में प्रवाहमान नदियों का सवाल है तो इसे कृष्णा और गोदावरी के बाद सबसे बड़ी नदी के
रूप में मान्यता प्राप्त है। इसकी भौतिक लंबाई नापी जाए तो यह 1 हजार 312 किलो मीटर तक अविरल बह रही
है। नर्मदा नदी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उद्गम स्थल से लेकर सागर में समाहित होने के बीच लगभग
20 उप नदियां इस से मिली हुई हैं। या फिर यूं कहा जाए कि नर्मदा नदी इन 20 नदियों से रास्ते में मिलते हुए
समुद्र तक पहुंचती है। इन नदियों के नाम बरनार, बंजार, शेर, शक्कर, दूधी, तवा, गंजाल, छोटी तवा, कुंदी, देव,
गोई, हिरन, तिन्दोली, बरना, चंद्र केसर, कानर, मान, ऊटी और हथनी बताए जाते हैं। जिन बड़े शहरों से होकर
नर्मदा नदी गुजरती है, उनकी संख्या भी कम नहीं है। अमरकंटक के अलावा डिंडोरी, मंडला, जबलपुर, होशंगाबाद,
महेश्वर, बड़वानी, झाबुआ, ओमकारेश्वर, खंडवा, बड़ोदरा, राजपीपला, धर्मपुरी और भरूच ऐसे शहर हैं, जिन्हें स्पर्श
करती हुई नर्मदा नदी अपना रास्ता तय करती है। नर्मदा नदी के धार्मिक महत्व पर गौर करें तो इसकी यश कीर्ति
पतित पावनी गंगा नदी से किसी मायने में कम नजर नहीं आती। उदाहरण के लिए- इसका वर्णन चारों वेदों में

पढ़ने को मिलता है। स्कंद पुराण के रेवा खंड में नर्मदा को रेवा नदी के नाम से वर्णित किया गया है। धर्म ग्रंथ
बताते हैं कि इसका तो प्राकट्य यही आसुरी शक्तियों के सर्वनाश के लिए भगवान शंकर के हाथों हुआ था। नर्मदा
का कंकर भी शंकर के समान पूजित है और इसके पत्थर से निर्मित शिवलिंग को प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता
नहीं होती। नर्मदा नदी को प्राप्त वरदान के अनुसार इसके तट पर भगवान शंकर और माता पार्वती सहित सभी
प्रमुख देवी देवता अदृश्य रूप में निवास कर रहे हैं। नर्मदा नदी के धार्मिक महत्व की इससे बढ़कर प्रतिष्ठा और
क्या होगी कि इसके तट पर श्री राम, श्री लक्ष्मण, श्री गणेश, श्री कार्तिकेय और श्री हनुमान जैसे महानतम देवता
भी तपस्या करके सिद्धियां प्राप्त करते रहे हैं। लिखने का आशय यह कि नर्मदा नदी का भौतिक, सामाजिक और
धार्मिक महत्व किसी भी रूप में सर्वोत्कृष्ट ही है। यह मध्य प्रदेश महाराष्ट्र और गुजरात के अनेक गांव शहरों और
महानगरों को पेयजल उपलब्ध कराने का महत्वपूर्ण स्रोत बनी हुई है। इसके दोनों किनारों पर स्थित घने जंगल
जीव मात्र को प्राणवायु देने का काम कर रहे हैं। यही नहीं, इन जंगलों में संरक्षित व संवर्धित अनेक पशु पक्षी
प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करते हैं। 1000 किलोमीटर से भी अधिक लंबी नर्मदा नदी में कोटि कोटि जलचर भी
आश्रय पाते हैं, इसमें संशय नहीं है। कुल मिलाकर नर्मदा नदी धार्मिक दृष्टि से पूजित तो है ही, जीव मात्र की
जीवंतता के लिए भी उसका अस्तित्व अपरिहार्य बना हुआ है। बड़े दुख की बात है कि इतना सब ज्ञात होने के बाद
भी हम इस पावन नदी को लगातार प्रदूषित कर रहे हैं। खनन माफिया इस के गर्भ से रेत और कीमती पत्थरों का
अनियंत्रित व असंतुलित खनन करके इसे प्रलयंकारी बनाने पर तुले हुए हैं। आम आदमी ने भी इसे गंदगी का
दरिया बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी है। क्या शहर और क्या गांव, हर जगह से इस पुण्य सलिला में
अपशिष्ट पदार्थ, गंदे नालों का दूषित पानी छोड़ा जा रहा है। बड़े बड़े कारखानों के विषाक्त व रासायनिक जहरीले
तरल पदार्थ भी नर्मदा में समा रहे हैं। प्लास्टिक ने तो कोढ़ में खाज की स्थिति उत्पन्न कर दी है। इन
परिस्थितियों का छिद्रांवेषण करें तो समझ में आएगा कि जब नर्मदा नदी दूषित होती है तो उन 20 उप नदियों को
भी प्रदूषित होना ही पड़ता है, जो या तो इसमें समा जाती हैं या फिर नर्मदा इनसे मिलती हुई सागर की ओर बढ़ती
चली जाती है। ऐसे में यह निश्चित हो जाता है कि नर्मदा सहित उन सभी नदियों से संबंधित गांव, नगर और
महानगर भी शुद्ध पेयजल तो नहीं पा रहे होंगे‌। अंत में सागर को भी नर्मदा के माध्यम से प्रदूषित होना पड़ता
है। क्योंकि यह सारा कचरा, अपशिष्ट पदार्थ, जहरीले रसायन, इस महान नदी के माध्यम से सागर में ही समाहित
हो रहे हैं। दावे के साथ कहा जा सकता है कि यदि नर्मदा नदी साक्षात नारी स्वरूपा होती तो अपनी क्षीण होती
पवित्रता के चलते चीत्कार उठती। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने शायद नर्मदा नदी की इसी पीड़ा को समझने
का प्रयत्न किया है और उसे जीवंत इकाई का दर्जा प्रदान करने हेतु संकल्प पारित किया है। यदि यह संकल्प
कानून में परिवर्तित हो पाया तो नर्मदा नदी को बचाने के अधिकतम और गंभीरतम प्रयास किए जा सकेंगे। यही
नहीं, खुद नर्मदा नदी की ओर से देश और प्रदेश की सरकार के समक्ष संरक्षण और संवर्धन की गुहार लगाई जा
सकेगी। जिस प्रकार एक जीवित नारी पर मानहानि, अत्याचार, हत्या का प्रयास अथवा हत्या जैसे अपराध होने पर
दोषी को कठोरतम दंड का प्रावधान है, उसी प्रकार नर्मदा नदी के साथ विधि विरुद्ध आचरण करने वालों को भी
दंडित किया जा सकेगा। मध्य प्रदेश की भाजपा शासित शिवराज सरकार के जैव और पर्यावरण हितैषी संकल्प को
कानूनी मान्यता प्रदान करने में विपक्षी दलों का भी सकारात्मक सहयोग मिलेगा, ऐसी कामना।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *