खो गया गांव (कहानी संग्रह), लेखक: डॉ. (श्रीमती) अपर्णा शर्मा, प्रकाशक: माउण्ट बुक्स, दिल्ली, संस्करण-
2011, पृष्ठ: 112, मूल्य: रुपया 220
खो गया गांव की कहानियां मानवीय सम्बन्धों से अपने को जोड़ कर आगे बढ़ती हुई स्त्री संवेदना के अन्तरमन
तक पहुंचने की कोशिश में पूरी तरह सफल हैं। मध्यमवर्ग के संस्कारों से प्रभावित महिला सोच की सम्वेदनाएं
निम्न वर्ग की मजबूरियों के साथ जुड़कर एक मानवीय चेहरे को सामने लाने की कोशिश करती हुई प्रतीत होती हैं।
खो गया गांव की अधिकांश कहानियां स्त्री सरोकारों से जड़ी होने के कारण महिलाओं की लोक चेतना को स्पष्ट
करती हुई दिखाई देती हैं।
खो गया गांव की कहानियां अस्मिताओं का एक जीवित दस्तावेज हैं। पहचान का संकट पूरी कहानी में किसी भी
पात्र के सामने नहीं आ रहा है संकट अगर है तो वह केवल और केवल लोगों (पात्रों) के अन्तर्मन में, और यह
कहानियों की सार्थकता को बढ़ाने का कार्य करती नजर आ रही है।
खो गया गांव के पात्रों की अगर बात की जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं कि इसके अधिकांश पात्र स्त्री हैं किन्तु ये
स्त्रियां हर वर्ग और हर उम्र की प्रतिनिधित्व करती हुई अपनी सामान्य समस्याओं को उद्घाटित करने में पूरी तरह
सफल हैं। मध्यवर्ग की महिला पात्र जहां आधुनिक फैशनपरस्ती को अपनाने में मानवीय संबंधो की हत्या करने की
कोशिश कर रही हैं वहीं निम्न वर्गीय पात्र किसी भी कीमत पर मानवीय मूल्यों को सुरक्षित कर रहे हैं और यही
इस संकलन की मुख्य विशेषता भी है। कुछ कहानियों में मध्यमवर्ग की परेशानियां स्पष्ट रूप से सामने आकर
मानवीय संवेदना की एकदम समाप्त करके कर्तव्यों के विजय की घोषणा करती है जो समयानुकूल नहीं है।
कुल मिलाकर खो गया गांव पाठकों के लिए एक संतुलित और रूचिकर कहानी प्रदान करने की अपनी कोशिश में
सफल है।