-भूपिंद्र सिंह-
हिमाचल प्रदेश का अधिकांश भूभाग पर्वतीय होने के कारण यहां शिक्षा संस्थानों के पास खेल मैदानों का अभाव है।
यही सबसे बड़ा कारण है कि हम पहाड़ी दमखम में अव्वल होते हुए भी खेलों में वह सब नहीं कर पाए हैं जो कर
सकते हैं। प्रदेश के पास आज से दो दशक पहले तक खेल ढांचे के नाम पर सैकड़ों साल पहले राजा-महाराजाओं
द्वारा मेले व उत्सवों के लिए बनाए गए चंद मगर बेहतरीन मैदान चंबा, मंडी, नादौन, सुजानपुर, जयसिंहपुर, कुल्लू,
अनाडेल, रोहडू, रामपुर, सोलन, चैल, नाहन आदि जगहों पर थे। इन मैदानों पर हिमाचल प्रदेश की खेल गतिविधियां
कई दशकों से मेलों, उत्सवों व राजनीतिक रैलियों से बचे समय में चलती रही हैंं। वैसे तो हिमाचल प्रदेश की
तरक्की में विभिन्न सरकारों का योगदान रहा है, मगर हिमाचल प्रदेश में पहली बार नई सदी के शुरुआती वर्षों में
प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल की सरकार ने राज्य में अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल ढांचे को खड़ा करने की शुरुआत की
और आज हिमाचल प्रदेश में कई खेलों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड एथलेटिक्स, क्रिकेट, हाकी, तैराकी व
इंडोर खेलों के लिए उपलब्ध है।
क्रिकेट में अनुराग ठाकुर के प्रयासों ने हिमाचल प्रदेश को क्रिकेट के अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर लाकर खड़ा कर
दिया है जो काबिले तारीफ है। बिलासपुर के लुहणू का खेल परिसर पूर्व मंत्री व वर्तमान में कोट कहलूर के
विधायक ठाकुर रामलाल के प्रयत्नों से सामने आया है। एथलेटिक्स सभी खेलों की जननी है। इसी से सब खेल
निकले हैं और इसके प्रशिक्षण के बिना किसी खेल में दक्षता नहीं मिल सकती है। हिमाचल प्रदेश में आज हमीरपुर,
बिलासपुर व धर्मशाला में तीन सिंथेटिक ट्रैक बन कर तैयार हैं। शिलारू के साई सैंटर में दो सौ मीटर का प्रैक्टिस
ट्रैक बन कर तैयार है। सरस्वतीनगर में काम हो रहा है। किसी किसी राज्य के पास अभी तक एक भी ट्रैक नहीं है।
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर व धर्मशाला सिंथेटिक ट्रैकों पर लोग टहलते नजर आते हैं। इनमें हमीरपुर के ट्रैक का तो
हाल ही बहुत बुरा है। खेल विभाग वहां पर न तो नियमित चौकीदार दे पाया है और न ही मैदान कर्मचारी। यह
करोड़ों की संपत्ति लावारिस बर्बाद हो रही है। दो साल पहले दीपावली के अवसर पर तो ट्रैक पर मोमबत्तियां जला
कर क्षतिग्रस्त कर दिया था।
खेल विभाग तब भी कुंभकर्णी नींद से जागा है। धर्मशाला की तरह हमीरपुर में भी खिलाडि़यों के लिए पहचान पत्र
बनाना होगा। भर्ती के लिए बाहर कच्चे पर केवल ट्रायल के लिए स्वीकृत किया जा सकता है। शेष ट्रेनिंग बाहर के
अन्य मैदानों व सड़कों पर हो सकती है। सिंथेटिक ट्रैक पार्क बन चुके हैं। वहां आम लोगों का प्रवेश वर्जित कर देना
चाहिए, केवल एथलीट के लिए ही प्रवेश रखना चाहिए। तभी इन प्ले फील्ड को लंबे समय तक खिलाडि़यों के लिए
उपलब्ध करवाया जा सकता है। कल जब हिमाचल प्रदेश के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर के एथलीट होंगे और प्रशिक्षण
के लिए उखड़ा हुआ ट्रैक होगा तो फिर पहाड़ की संतान को पिछड़ने का दंश झेलना पड़ेगा। इसलिए इस बर्बादी को
अभी से रोकना होगा। तभी हम अपनी आने वाली पीढि़यों से न्याय कर सकेंगे। इस कॉलम के माध्यम से इस
विषय पर बार-बार लिखने के बाद भी हिमाचल सरकार इन विश्व स्तरीय खेल सुविधाओं पर ध्यान नहीं दे रही है।
प्रदेश को भी हिमाचल में ट्रेनिंग कर पहाड़ की संतानें राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए कुछ
लोगों के जुनून ने बिना सुविधाओं के मिट्टी पर ट्रेनिंग कर राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
दस्तक दी थी। तभी यह अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधा आने वालों को मिल पाई है। हिमाचल प्रदेश में इस समय हर
जिला स्तर सहित कई जगह उपमंडल स्तर पर भी इंडोर स्टेडियम बन कर तैयार हैं, मगर उन स्टेडियमों में बनी
प्ले फील्ड का उपयोग प्रशिक्षण के लिए खिलाडि़यों को ठीक से करना नहीं मिल रहा है। वहां पर अधिकतर शहर के
लाला व अधिकारी अपनी फिटनेस करते हैं। ऊना व मंडी में तरणताल बने हैं, मगर वहां पर भी कोई प्रशिक्षण
कार्यक्रम आज तक शुरू नहीं हो पाया है। हिमाचल प्रदेश में तैराक ही नहीं हैं।
यहां पर भी प्रशिक्षण न हो कर गर्मियों में मस्ती जरूर हो जाती है। ऊना में हाकी के लिए एस्ट्रो टर्फ बिछी हुई है,
मगर उसकी तो पहले ही दुर्गति हो गई है। हिमाचल प्रदेश सरकार का युवा सेवाएं एवं खेल विभाग अभी तक
करोड़ों रुपए से बने इस खेल ढांचे के रखरखाव में नाकामयाब रहा है। उसके पास न तो चौकीदार हैं और न ही
मैदान कर्मचारी, पर्याप्त प्रशिक्षकों की बात तो बहुत दूर की बात है। नई खेल नीति में लिखा है कि सरकार विभिन्न
खेल संघों, पूर्व खिलाडि़यों व प्रशिक्षकों से इन सुविधाओं का उपयोग कराने के लिए खेल अकादमियों का गठन
कराएगी। हिमाचल प्रदेश के कई पूर्व खिलाड़ी जो खेल आरक्षण से सरकारी नौकरी में हैं, अपनी ड्यूटी को ईमानदारी
से करने के बाद सबेरे व शाम उभरते खिलाडि़यों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। हैंडबाल में स्नेहलता, कुश्ती में जौनी चौधरी
सहित और भी कई खेलों में कई सरकारी नौकर जो पूर्व खिलाड़ी रहे हैं, ईमानदारी से प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए हुए
हैं। क्या सरकार ऐसे जुनूनी शौकिया प्रशिक्षकों को खेल विभाग में कम से कम पांच वर्षों के लिए प्रतिनियुक्ति पर
लाकर या उन्हीं के विभाग में उन्हें खेल प्रबंधन व प्रशिक्षण देने का अधिकार देकर हिमाचल प्रदेश की इस करोड़ों
रुपए से बनी खेल सुविधाओं का सदुपयोग कर राज्य में खेलों को गति नहीं दे सकती है। अभी भी समय है, सरकार
को चाहिए कि इन विश्व स्तरीय प्ले फील्ड का रखरखाव ठीक ढंग से करवाए ताकि देर तक हिमाचल प्रदेश के
खिलाड़ी इन सुविधाओं का प्रयोग कर सकें।