अर्पित गुप्ता
कोरोना की चपेट में आने के बाद देश की अर्थ व्यवस्था चौपट होने की स्थिति में आ चुकी है। वर्तमान में उद्योगों
को आरंभ कराने के पहले कृषि के विकास को पहली प्राथमिकता पर रखे जाने की जरूरत है। इसके लिए किसानी
को पहली प्राथमिकता पर रखना होगा उसके बाद हल्के उद्योग फिर भारी उद्योगों को आरंभ कराने पर बल देना
होगा। वर्तमान समय में खेती किसानी पर कोरोना का असर साफ दिखाई दे रहा है। किसानों को देश की
अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना गया है, किसान की ही कमर अगर आर्थिक रूप से टूटी रहेगी तो देश की अर्थव्यवस्था
को पटरी पर किस तरह लाया जा सकेगा। टोटल लॉक डाउन पार्ट 02 में कुछ जोखिम उठाते हुए केंद्र सरकार के
द्वारा छूट देने के लिए गाईड लाईन जारी की है।
इसमें किसानों को छूट प्रदाय की गई है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। इसके साथ ही साथ बार बार इस
बात को दोहराते रहने की जरूरत है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कड़ाई से किया जाए। इसके लिए जिलों में
दस्ते गठित किए जाकर औचक निरीक्षण की व्यवस्था भी करने की जरूरत है। आज देश भर में टोटल लॉक डाउन
क्या है आम जनता को इस बात को समझने में समय लग गया है। आज भी लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन
नहीं कर पा रहे हैं। इसके लिए पुलिस और प्रशासन की पेट्रोलिंग वाहनों से लगातार ही इसकी उदद्योषणा कराए
जाने की जरूरत है, ताकि इस तरह की हेमरिंग से लोगों के दिमाग में यह बात बेहतर तरीके से बैठ सके। देश की
अर्थ व्यवस्था की रीढ़ किसान ही है। देश में विकास का पैमाना किसानों की मेहनत पर बहुत ज्यादा निर्भर करता
है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। किसान ही है जो देश की एक सौ 30 करोड़ जनता के उदरपूर्ति के
रास्ते प्रशस्त करता है। इसलिए इसको पहली प्राथमिकता पर होना चाहिए।
इसके अलावा यह बात भी लगातार ही तीन दशकों से सामने आती रही है कि कृषि उत्पादन के द्वारा राष्ट्रीय
अर्थव्यवस्था को हर बार प्रभावित ही किया है। जब भी फसल खराब हुई है उसके बाद उद्योग चाहे वे हल्के हों या
भारी सभी में उत्पादन में कमी दर्ज की गई है। इस लिहाज से कृषि को ही सबका मूल आधार माना जा सकता है।
सरकारों को चाहिए कि कृषि के विकास और उसे किस तरह आधुनिक बनाएं इस दिशा में अभी से प्रयास आरंभ
किए जाएं, अन्यथा एक माह की पूर्ण बंदी से निकलने में देश को बहुत समय लग सकता है। इसके लिए सबसे
पहले कृषि, फिर हल्के उद्योग और उसके बाद भारी उद्योगों को आरंभ कराए जाने की जरूरत है।
देश में आज भी किसानी का काम अधिकांश जगहों पर मानसून पर ही पूरी तरह निर्भर है। कभी सूखे की मार तो
कभी अतिवर्षा या बाढ़ का संकट, किसान कभी खाद के संकट से जूझता है तो कभी कीट पतंगों और अन्य कीड़ों
से वह परेशान हो उठता है। कभी उसे मोटर के लिए डीजल के संकट से दो चार होना पड़ता है।
आज समय इस बात के संकेत दे रहा है कि अब वह समय आ चुका है कि खेतों में ज्यादा उत्पादन किस तरह हो
इस बारे में विचार किया जाए। देश भर में गेंहूं, चावल के साथ ही साथ अन्य चीजों के उत्पादन के साथ ही साथ
फलों और सब्जियों के विपुल उत्पादन पर बल देने की महती जरूरत है। किसानी के लिए पशुओं की नस्ल भी
सुधारने की जरूरत है। दुनिया भर में पाई जाने वाली भैंसों का सत्तावन फीसदी तो गाय बैलों का चौदह फीसदी
भारत में है। इसके लिए भी शोध किए जाने की जरूरत है। खेतों में इस तरह के कीटनाशकों का उपयोग हो जो
मानव के लिए हानिकारक न हों। इसके साथ ही प्रतिबंधित रसायनों और दवाओं पर भी नजर रखे जाने की जरूरत
महसूस की जा रही है।