क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू बनती कांग्रेस

asiakhabar.com | January 3, 2020 | 3:23 pm IST
View Details

शिशिर गुप्ता

कांग्रेस पार्टी के सभी बड़े नेता इन दिनों खुशी से बम बम हो रहे हैं। पहले महाराष्ट्र फिर झारखंड में भाजपा की
हार से कांग्रेस कार्यकर्ता ऐसे खुशी मना रहे हैं मानो कांग्रेस पार्टी ने बरसों से खोया अपना जनाधार फिर से हासिल
कर लिया हो। कांग्रेसजनों के चेहरे पर इन दिनो किसी जंग जीतने वाली मुस्कान देखने को मिल रही है। हालांकि
महाराष्ट्र व झारखंड दोनों ही प्रदेशों की सरकार में कांग्रेस पार्टी जूनियर पार्टनर की भूमिका में हैं। इन दो प्रदेशों की
सरकार में शामिल होकर कांग्रेस हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली हार व कर्नाटक में बड़ी बेअदबी से सत्ता से
बेदखली के गम को भी भुलाने का प्रयास कर रही है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। जिसमें
वहां की जनता ने इनके गठबंधन को पूरी तरह से नकार दिया था। लेकिन चुनाव के बाद भाजपा शिवसेना गठबंधन
में खटपट होने से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व कांग्रेस ने मिलकर शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनवा
दिया। वहां मुख्यमंत्री रहे अशोक चौहान को तो मंत्री बनाया गया है। मगर शरद पवार के विरोध के चलते पूर्व
मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान को मंत्री पद से महरूम रहना पड़ा।
झारखंड विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने झारखंड मुक्ति मोर्चा व राष्ट्रीय जनता दल के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन
कर चुनाव लड़ा था। भारतीय जनता पार्टी को अपने पुराने सहयोगी आजसू से गठबंधन टूट जाने के कारण अकेले
चुनाव लडऩा पड़ा था। चुनाव परिणामों में झारखंड मुक्ति मोर्चा को 30 कांग्रेस को 16 व राष्ट्रीय जनता दल को
एक सीट मिली। वहीं भारतीय जनता पार्टी के हिस्से में 25 सीटें आई। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमेंत सोरेन
मुख्यमंत्री बन गए। उनके साथ कांग्रेस के दो व राजद का एकमात्र विधायक झारखंड सरकार में मंत्री बना। हालांकि
कांग्रेस नेता सुबोध कांत सहाय की मांग थी कि कांग्रेस को उप मुख्यमंत्री का पद मिले मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं।
महाराष्ट्र व झारखंड की जीत में कांग्रेस अपनी कर्नाटक की हार को छुपाने का असफल प्रयास कर रही है। कर्नाटक
में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भाजपा की सरकार बनने से रोकने के लिये कांग्रेस ने अपने धुर विरोधी जनता
दल सेक्यूलर से समझौता कर कुमार स्वामी को मुख्यमंत्री बनवा दिया था। कुमार स्वामी सरकार में कांग्रेस जूनियर
पार्टनर के रूप में शामिल हुयी थी। लेकिन एक साल के अंदर ही कुमारस्वामी सरकार गिर गई और भारतीय जनता
पार्टी के एस. येदुरप्पा फिर से मुख्यमंत्री बन गए। विधानसभा अध्यक्ष द्धारा अयोग्य ठहराए गए कांग्रेस के 15
विधायकों के क्षेत्रों में सम्पन्न हुये उप चुनाव में भाजपा को 12 व कांग्रेस को दो सीट ही मिल पायी। एक सीट पर
भाजपा का बागी चुनाव जीत गया। कर्नाटक जैसा बड़ा प्रदेश हाथ से फिसलने के उपरांत भी कांग्रेस पार्टी द्धारा
खुशी मनाना लोगों की समझ से परे हो रहा है।
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उस वक्त के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस महासचिव प्रियंका
गांधी, सोनिया गांधी सहित सभी बड़े नेताओं ने केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ एक बड़ा देशव्यापी
अभियान चलाया था। विरोधी दलों के बहुत सारे नेता भी कांग्रेस के उस अभियान को अपना समर्थन दिया था।
लेकिन लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दूसरी बार भरोसा करते हुये भाजपा को
303 लोकसभा सीटों पर जिताकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार केंद्र में सरकार बनवाई। लोकसभा चुनाव में
कांग्रेस मात्र 52 सीटों पर ही सिमट कर रह गई। यहां तक कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी खुद अपनी
पारंपरिक सीट अमेठी से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए थे।
लोकसभा चुनाव में केरल, पंजाब और तमिलनाडु ने जरूर कांग्रेस की लाज रख ली। कांग्रेस केरल में 15 पंजाब में
8 तमिलनाडु में 8 सीटें जीतने में सफल रही। इसके अलावा तेलंगाना में तीन, पश्चिम बंगाल व छत्तीसगढ़ में दो-
दो, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, मेघालय, अंडमान निकोबार दीप
समूह, पांडिचेरी में कांग्रेस का एक-एक सांसद ही जीत पाया। जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा,

दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, आंध्रप्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, चंडीगढ़
सहित 14 प्रदेशों में तो कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को देश भर
में 19.49 प्रतिशत मत मिले थे जबकि लोकसभा में उनके सांसदो का प्रतिनिधित्व मात्र 9.58 प्रतिशत है।
राज्यसभा में भी कांग्रेस के सदस्यों की संख्या घटकर मात्र 46 रह गई है।
2014 में कांग्रेस पार्टी की जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक,
केरल, झारखण्ड, असम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम सहित कुल 16 प्रदेशों में सरकार
थी। वहीं 2019 में कांग्रेस पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पांडिचेरी में अकेले अपने बल पर व महाराष्ट्र
तथा झारखंड में क्षेत्रीय दलों के छोटे पार्टनर के रूप में सत्तारूढ़ है। महाराष्ट्र में तो जोड़ तोड़ कर कांग्रेस, शिवसेना
व एनसीपी के साथ मिलकर सरकार में शामिल हो गई। लेकिन हरियाणा विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस लगातार
दूसरी बार सरकार बनाने से रह गई। हरियाणा में 40 सीटें जीत कर भाजपा ने वहां दुष्यंत चौटाला व निर्दलियों के
साथ मिलाकर सरकार बना ली।
दिग्विजय सिंह की नाकामयाबी के चलते कांग्रेस गोवा में भी सबसे बड़ी पार्टी होने के उपरांत सरकार बनाने से चूक
गई थी। 13 विधायक होने के बावजूद भाजपा गोवा में सरकार बनाने में सफल रही थी। गोवा में आज कांग्रेस के
मात्र 5 विधायक रह गए हैं जबकि भारतीय जनता पार्टी के विधायकों की संख्या 13 से बढ़कर 27 पर पहुंच गई
है। बिहार विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस पूर्व में जीती हुयी अपनी किशनगंज सीट को भी नहीं बचा सकी। इसी
तरह पश्चिम बंगाल की 3 व उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भी कांग्रेस के सभी प्रत्याशियों की
जमानत तक जब्त हो गयी। जबकि उत्तर प्रदेश में तो प्रियंका गांधी ने खुद उपचुनावों की कमान संभाल रखी थी।
महाराष्ट्र, झारखंड में क्षेत्रीय दलों की जूनियर पार्टनर बन कर खुश होने के बजाय कांग्रेस को कर्नाटक, गोवा,
हरियाणा, गुजरात विधानसभा चुनाव व 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के कारणों पर गंभीरता से
चिंतन-मनन करना चाहिये। वैसे भी कांग्रेस पार्टी के नेताओं को ज्यादा खुशी नहीं मनानी चाहिये क्योंकि महाराष्ट्र
में तो कांग्रेस विपरीत विचारधारा वाली शिवसेना के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में काम कर रही है जो समय-समय पर
अपने हिंदूवादी एजेंडे को आगे करते रहते हैं। शिवसेना के नेता कभी भी पलटी मार सकते हैं। मध्य प्रदेश की
कांग्रेस सरकार भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर हैं। जहां भाजपा मात्र 5 सीटो के अंतर से सरकार बनाने से रह
गयी थी। कांग्रेस के असंतुष्ट नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया कर्नाटक की तरह कब कोई नया धमाका कर दे इसका
किसी को कुछ पता नहीं है।
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा, बिहार में आरजेडी, महाराष्ट्र में एनसीपी, झारखण्ड में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, पश्चिम
बंगाल में कभी ममता बनर्जी तो कभी वामपंथी दल, कर्नाटक में जेडीएस, तमिलनाडु में कभी अन्ना द्रुमक कभी
द्रुमक, जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, दिल्ली में आप जैसे क्षेत्रीय दलों की समय-समय पर पिछलग्गू बन कर
कांग्रेस पार्टी इन बड़े प्रदेशों में अपना जनाधार खो चुकी है। अपने बूते कांग्रेस इन प्रदेशों में खाता तक खोलने की
स्थिति में नहीं हैं।
कांग्रेस पार्टी को अपने संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। पार्टी में जमीन से जुड़े लोगों को
आगे लाना चाहिए। राज्यसभा के रास्ते वर्षों से सत्ता का सुख भोगने वाले बड़बोलों से पार्टी को पीछा छुड़ाना चाहिए।
साफ छवि के नेताओं को नेतृत्व की अग्रिम पंक्ति में भागीदारी देनी चाहिए जिससे कांग्रेस जमीनी स्तर पर मजबूत
होकर अपना पुराना जनाधार हासिल कर सके। यदि आने वाले समय में भी कांग्रेस पार्टी क्षेत्रीय दलों के सहारे

गठबंधन की राजनीति में ही उलझी रहेगी तो उसका रहा सहा जनाधार भी खिसक जायेगा। फिर कांग्रेस नेता राहुल
गांधी का प्रधानमंत्री बनना सपना बनकर ही रह जायेगा।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *