शिशिर गुप्ता
कुछ तो कोरोना के सौजन्य से, कुछ बदलती हुई जीवनशैली व शिक्षा-पद्धति से ‘साइबर’ की दुनिया हमारे घरों में
भीतर तक प्रवेश कर गई है। स्कूली शिक्षा, कॉलेज शिक्षा व प्रोफेशनल पाठ्यक्रम, सब कुछ पिछले कुछ महीनों से
‘ऑनलाइन’ चल रहा है। कभी-कभी लगता है कि छह माह या सालभर में हालात सामान्य हो भी गए तो क्या
क्लासरूम में वापसी मुमकिन हो पाएगी? क्या फिर से बच्चे टिफिन और स्कूली बस्ते या बैग लेकर कक्षाओं में
लौट पाएंगे?
यह समस्या या चुनौती सिर्फ हमारी नहीं है। कुछेक पर्वतीय देशों को छोड़ दें या कुछ अति विकसित देशों को छोड़ें,
शेष कमोबेश पूरी दुनिया में ऑनलाइन का बाजार तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है। यह ऑनलाइन प्रणाली सिर्फ
शिक्षा के साथ ही नहीं जुड़ी, कमोबेश ज्यादातर खरीददारी भी ऑनलाइन होने लगी है। बाजार, विंडो शॉपिंग, मॉल
कल्चर, शोरूम आदि तेजी के साथ हाशिए पर सरक रहे हैं। कभी-कभी लगता है प्रदर्शनियां भी अब ऑनलाइन ही
लगेंगी। गत लगभग पांच माह से मुशायरे, कवि गोष्ठियां, सेमिनार, धरने, प्रदर्शन पूरी तरह से ठप हैं। जंतर-मंतर
का प्रदर्शन स्थल, शाहीन बाग, इंडिया गेट के कैंडल मार्च, सब फिलहाल हाशिए पर सरक गए हैं। राजनीतिक
जनसभाएं वर्चुअल रैली में बदल चुकी हैं। वर्चुअल रैली में नेता अपने-अपने कम्प्यूटर से जुड़ी श्रोता-दर्शक मंडली से
तालियां भी बजवा लेता है। न दिहाड़ीदार श्रोता, न लंगर, न ट्रांसपोर्ट का प्रबंध, न झंडे-झंडियां। गत पांच माह में
हम यह भी तय नहीं कर पाए कि विधानसभाओं और संसद के अधिवेशन क्या पुराने ढर्रे पर हो पाएंगे? तो क्या
संसद के बीचोंबीच आकर नारेबाजी करने या संसद-विधानसभा के फर्श पर ही धरना देने की बातें अब इतिहास बन
चुकी हैं? बिहार में, बंगाल में, फिर लगभग डेढ़ वर्ष बाद पंजाब में, दिल्ली में चुनाव होने हैं।
क्या ये चुनाव भी ऑनलाइन तौर-तरीके से ही लड़े जाएंगे? प्रकाशन-उद्योग फिलहाल ठप है और जल्दी-जल्दी
बहाली की कोई उम्मीद नहीं। मेरठ से एक प्रकाशक-मुद्रक ने बताया कि लगभग एक लाख लोग जो प्रिंटिंग मशीनों
पर या जिल्दबंदी, डिजाइनिंग, प्रूफ रीडिंग आदि का काम करते थे, कमोबेश बेकार हो गए हैं। अब किताबें
ऑनलाइन तैयार हो रही हैं, ऑनलाइन ही पढ़ी जा रही हैं। अभी प्रिंट मीडिया पर तात्कालिक ‘बंदी’ का खतरा नहीं
है, लेकिन देर-सवेर संकट तो गहराएगा। नहीं बदलेगी तो खेती नहीं बदलेगी। वहां श्रम चलेगा। पसीना बहेगा।
कपड़ा मिलें चलेंगी। वहां यद्यपि श्रमिक कम होंगे, मगर सिर्फ ऑनलाइन से काम नहीं चलेगा। डिजाइनिंग,
मार्केटिंग, वसूलियां, बिलिंग, ये सब ऑनलाइन ही चलेगा। इधर युद्ध के मोर्चे पर भी साइबर हैकर्स नाम की एक
शक्ति हावी हो रही है। विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना काल में तनाव के बीच कई देश हैकरों के जरिए साइबर हमला
प्रायोजित कर छद्म युद्ध छेड़ सकते हैं। परमाणु हथियार संपन्न या बड़ी सेनाओं से लैस देशों के बीच सीधी जंग
भले ही न हो, लेकिन साइबर आर्मी के जरिए प्रतिद्वंद्वी देश के डिजिटल ढांचे, सैन्य प्रणाली, संवेदना ग्रिड या
नेटवर्क को निशाना बना सकते हैं।
आज हर क्षेत्र को पूरी तरह डिजिटल करने की होड़ है, ऐसे में अगर सरकारें और नॉन स्टेट हैकर्स मिलकर हमला
करती हैं तो अर्थव्यवस्था के लिए कोरोना से भी बड़ी आपदा पैदा हो सकती है। चीन, उत्तर कोरिया, ईरान,
इजरायल जैसे देश पहले ही साइबर हमलों के जरिए दूसरों के लिए मुसीबत खड़ी कर चुके हैं। अमरीका ने कोरियाई
साइबर स्पेस हैकरों का पता लगाने के लिए 50 लाख डॉलर का इनाम रखा है। हर 39 सेकंड में एक हमला होता
है। कोरोना काल में छह गुणा साइबर हमले बढ़े हैं। 90 देशों में साइबर सुरक्षा का ढांचा ही नहीं, ऐसे में खतरा
काफी गंभीर है। कोरोना वायरस के पीछे भी साइबर हैकिंग का हाथ होने की रिपोर्ट आई है। येरुशलम वेंचर्स पार्टनर्स
के प्रमुख एरेल मार्गलिट ने जून 2020 में प्रकाशित एक रिपोर्ट संभव है कि हैकरों ने वुहान की लैब में डाटाबेस
हैक कर लिया हो और रसायनों की संरचना में बदलाव कर लिया हो, जिससे कोविड निकला और चीन से दुनिया
भर में फैला।
कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था को 30 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है। छह लाख करोड़ डॉलर हानि का अनुमान
वर्ष 2021 तक लगाया गया है। एक दैनिक द्वारा दिए गए विश्लेषण के अनुसार मगर बदलाव अभी और भी भी
आएंगे। गत दिवस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई के बीच वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए
वार्ता और तकनीकी क्षेत्र की इस दिग्गज कंपनी द्वारा गूगल फॉर इंडिया डिजिटलीकरण के जरिए भारत में अगले
पांच-सात साल में 75 हजार करोड़ रुपए यानी करीब 10 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की गई है। कोरोना
संकट के बीच आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र से बड़ी राहत तो है ही, चीनी कंपनियों पर अंकुश लगाने के तुरंत बाद
गूगल की यह पहल दूरगामी महत्त्व की भी है। यद्यपि इस साल के शुरुआत में अमेजन ने भारत में एक अरब
डॉलर के निवेश की बात कही थी, फिर अप्रैल में फेसबुक इंक ने रिलायंस जियो प्लेटफार्म में 5.7 अरब डॉलर का
निवेश कर जताया था कि भारत दिग्गज तकनीकी कंपनियों का पसंदीदा बाजार बनता जा रहा है।
गूगल इससे पहले देश में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से निवेश कर चुका है और आंकड़ों के लिहाज से गूगल का यह
निवेश बहुत बड़ा बेशक नहीं है, पर देश के डिजिटाइजेशन के मामले में यह बहुत महत्त्वपूर्ण साबित होने वाला है।
गूगल का यह निवेश मुख्यतः चार क्षेत्रों में लक्षित है- जैसे हर भारतीय तक उसकी भाषा में सस्ती पहुंच और
सूचनाएं उपलब्ध कराना, जरूरत के मुताबिक नए उत्पाद और सेवाएं उपलब्ध करना, कारोबारियों को डिजिटल
बदलाव के लिए सशक्त करना और स्वास्थ्य, शिक्षा एवं कृषि जैसे क्षेत्रों में सामाजिक भलाई के लिए कृत्रिम
बुद्धिमत्ता एवं प्रौद्योगिकी लाभ पहुंचाना। शिक्षा के क्षेत्र में गूगल ने सीबीएसई के माध्यम से इस साल के अंत तक
22 हजार स्कूलों के 10 लाख शिक्षकों को प्रशिक्षित करने की योजना बनाई है, वह देश के 2.6 करोड़ छोटे
कारोबारियों को गूगल के सर्च से जोड़कर उनकी मदद भी कर रही है। संकट यह है कि इतनी चुनौतियों व इतने
आमूल-चूल बदलावों से निपटना क्या आपके, हमारे लिए मुमकिन होगा?