भारत और चीन के बीच लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण पर गतिरोध अभी बना हुआ है। भारत के सख्त रुख के
बाद अब चीनी सैनिक दो किमी पीछे चले गए हैं। लद्दाख में भारतीय सरजमीं पर कब्जा करने की फिराक में लगे
चीन को अपने कदम पीछे हटाने पड़े हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हजारों सैनिकों की तैनाती के बाद अपने
मंसूबों में कामयाबी नहीं मिलने के बाद चीनी ड्रैगन करीब दो किलोमीटर पीछे हट गया है। यही नहीं अब तक
आक्रामक रुख अख्तियार करने वाली चीनी सेना कुछ दिनों से शांत है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या
हुआ कि चीन पीछे हटने को क्यों मजबूर हुआ।
विशेषज्ञों का कहना है कि लद्दाख समेत भारतीय सीमा के सभी प्रमुख स्थानों पर चीन इंच-इंच आगे बढऩे की
रणनीति पर काम कर रहा है। चीन की ताजा हरकत भी इसी से जुड़ी हुई है। डोकलाम की तरह से इस बार भी
चीन को उम्मीद थी कि वह भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लेगा लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। चीन के अपने
कदम वापस खींचने के पीछे तीन प्रमुख वजहें हैं। पहली वजह भारतीय सेना की जोरदार जवाबी तैयारी। लद्दाख में
पिछले महीने की 5 तारीख को और फिर सिक्किम में चार दिन बाद 9 तारीख को चीनी और भारतीय सैनिकों के
बीच हिंसक झड़प हुई। सिक्किम का विवाद तो नहीं बढ़ा, लेकिन लद्दाख में गलवान और प्योंगयांग शो लेक के
पास एलएसी पर चीन ने आक्रामकता दिखाई और दबाव की रणनीति के तहत अपने सैनिक बढ़ाने शुरू कर दिए।
बताया जा रहा है कि चीन ने एलएसी पर 5 हजार सैनिक भेजे हैं। चीन की नापाक हरकत के जवाब में भारत ने
भी एलएसी पर अपने सैनिक बढ़ा दिए और चीन की बराबरी में हथियार, टैंक और युद्धक वाहनों को भी इलाके में
तैनात कर दिया। इस तैयारी के बाद भी भारत ने संयम के साथ बातचीत का रास्ता भी नहीं छोड़ा है। चीन के
साथ हमेशा से यह रहा है कि उसके साथ अगर कोई देश नरमी से आता है तो वह चढ़ जाता है और अगर आप
सख्त रवैया अपनाते हैं तो वे पीछे हट जाते हैं। चीन की गीदड़ भभकी देने की पुरानी आदत रही है। हालांकि ड्रैगन
के साथ सख्ती दिखाने पर वह सही रहते हैं। चीन अपनी विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ाने में लगा हुआ है। चीन
जो भारत के साथ कर रहा है, वही वह जापान, ताइवान और वियतनाम जैसे अन्य पड़ोसी देशों के साथ भी कर
रहा है।
चीन के पीछे हटने की दूसरी वजह उसका आंतरिक संकट है। कोरोना वायरस संकट की वजह से चीन की
अर्थव्यवस्था भीषण मंदी के दौर से गुजर रही है। दुनिया की फैक्ट्री कहे जाने वाले चीन से निर्यात कम हो गया है,
इससे वहां नागरिकों में बेरोजगारी और असंतोष बढ़ रहा है। इसे दबाने के लिए चीनी नेतृत्व राष्ट्रवाद का कार्ड खेल
रहा है। अमेरिका की वजह से वह ताइवान और साउथ चाइना सी में कुछ कर नहीं पा रहा है तो उसने भारत के
खिलाफ दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। चीनी राष्ट्रपति के सपने को पूरा करने के लिए चीन ने अरबों डॉलर खर्च
करके बेल्ट एंड रोड परियोजना शुरू की लेकिन उससे उसे कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है। इससे चीन पर
आंतरिक स्तर पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
चीन के रुख में नरमी की तीसरी वजह दुनिया की ओर से बढ़ता चौतरफा दबाव है। साउथ चाइना सी, कोरोना और
व्यापार के मुद्दे पर अमेरिका के साथ उसकी जंग चल रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया के
ताकतवर देशों के ग्रुप-7 का विस्तार कर भारत को शामिल करने के संकेत दिए हैं। यही नहीं जापान, वियतनाम,
ऑस्ट्रेलिया और ताइवान चीन की विस्तारवादी नीति का लगातार विरोध कर रहे हैं। चौतरफा घिरा चीन इस समय
दुनिया की सबसे बड़ी सेना रखने वाले भारत से जंग का खतरा मोल नहीं ले सकता है। चीन भारतीय बाजार को
भी नहीं खोना चाहता है, इसी वजह से उसे लद्दाख में अपने रुख में नरमी लानी पड़ी है।