क्यों उठा मैं ब्रह्माण्ड लूँ

asiakhabar.com | August 1, 2023 | 5:03 pm IST
View Details

गोपाल बघेल ‘मधु’
टोरोंटो, ओंटारियो, कनाडा
क्यों उठा मैं ब्रह्माण्ड लूँ,
चींटी सरिस क्यों ना चलूँ;
रख अण्ड या कण अन्न लूँ,
धरिणी पै चल धर प्राण लूँ।
यात्रा किये बढ़ता चलूँ,
ख़तरा हरेक मैं भाँप लूँ;
क्षत्री की गति तंत्री बनूँ,
मैं चरित्रों की धुनि बनूँ।
चित्रित कोई क्या करेगा,
मैं विचित्रित बन रहूँगा;
संकल्प से सृष्टि चला,
दृष्टि विहंगम करूँगा।
जाने कोई ना जानता,
पहचानता ना हर कोई;
क्या फ़र्क़ पड़ता बृह्म को,
जाने जोई माने सोई।
उर जान लूँ सुर समझ लूँ,
मंथर गति जग टहल लूँ ;
‘मधु’ की महक पहचान लूँ,
मृदु की महर का मर्म लूँ।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *