क्यों आक्रामक चीन

asiakhabar.com | June 18, 2020 | 5:19 pm IST
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संयोग गुप्ता

बॉर्डर पर चीन की गुस्ताखी का सेना ने मुंहतोड़ जवाब तो दिया ही। अब आर्थिक मोर्चे पर भी चीन को उसकी
हरकतों की सजा देने की शुरुआत हो गई है। भारत सरकार ने सरकारी टेलिकॉम कंपनियों से किसी भी चीनी कंपनी
के इक्विपमेंट्स का इस्तेमाल न करने को कहा है। भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनल) और महानगर
टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) के टेंडर को कैंसिल कर दिया गया है। साथ ही, प्राइवेट मोबाइल फोन
ऑपरेटर्स के लिए भी हुवाई और जेट जैसे चीनी ब्रैंड्स से दूर रहने का नियम बनाया जा सकता है। भारतीय
टेलिकॉम इक्विपमेंट का एनुअल मार्केट 12, 000 करोड़ रुपए है। इसमें से एक-चौथाई पर चीन का कब्जा है।
बाकी में स्वीडन की एरिक्सन, फिनलैंड की नोकिया और साउथ कोरिया की सैमसंग शामिल है। लेकिन इतने भर से
चीन मानने वाला नहीं है। उसे ऐसा आर्थिक झटका देना होगा, जो उसे हमेशा याद रहे। लद्दाख के गलवान घाटी
में भारत और चीन के बीच पिछले एक महीने से ज्यादा वक्त से चला आ रहा तनाव सोमवार को खूनी संघर्ष में
बदल गया। चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष में भारत के 20 जवान शहीद हो गए जबकि चीन के 40 जवान मारे
गए। इस घटना के बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है। भारत ड्रैगन को घेरने के लिए बड़ी तैयारी कर रहा

है। चीन ने भी एलएसी पर अपनी सेना बढ़ाई है खासतौर से गलवां, बेग ओल्डी, देपसान्ग, चुशुल और पूर्वी
लद्दाख के दूसरे इलाकों में। मगर ऐसा लग रहा है कि भारतीय सेना युद्ध के लिए पूरी तरह से अलर्ट पर है।
लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक एलएसी पर सेना किसी भी तरह की स्थिति का सामना करने के लिए
मुस्तैद है। पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर 15 हजार सैनिक फॉरवर्ड इलाकों में हैं और इससे भी ज्यादा उनके पीछे
खड़े हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह रही कि चीन ने लद्दाख में ये कदम उठाए और आने वाले
समय में दोनों देशों के बीच तनाव कहां तक जाएगा। यह तो तय है कि चीन पर भारत का रुख 21वीं सदी की
दिशा तय करेगा। अमेरिका के साथ भारत के मजबूत होते रिश्ते चीन की आंखों में खटक रहा है। लद्दाख में
मिलने वाला पानी और खनिज बहुत अहम है। लेकिन लद्दाख ऐसा इलाका नहीं है आप यहां आसानी से ये सब
हासिल कर पाएं। असल बात यह है कि लद्दाख में विवाद से चीन भारत पर दबाव बनाना चाहता है। मौजूदा विश्व
में यह काफी अहम होने वाला है। यही नहीं, चीन भारत के अमेरिका के साथ बढ़ते रिश्तों से भी बौखलाया हुआ है।
कोविड-19 से पहले से यहां पैसे की कमी के कारण निवेश घटा है। इसके अलावा कुछ बड़े प्रोजेक्ट के कारण भी ये
स्थिति बनी है। बीआरआई प्रोजेक्ट के आउटकम पर चीन और इसके देशों में उलझन रही है। हालांकि, बीआरआई
अभी बना हुआ है। अमेरिका से तनातनी के बीच चीन यह दिखाना चाहता है कि वह कई जगह एकसाथ काम कर
रहा है। बीआरआई में शामिल कई देश केवल निवेश ही नहीं बल्कि चीन के साथ संबंध को लेकर चिंतित हैं।
निश्चित तौर पर, यह भारत के लिए चेतावनी है कि वह अमेरिका के साथ नजदीकी रिश्ते न बनाए। भारत कई
वजहों से अमेरिका का रणनीतिक सहयोगी बनना चाहता है। इसलिए यहां बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। भारत
अपने लंबे भविष्य के लिए कुछ महत्वपूर्ण फैसले ले सकता है। अगर भारत चीन को कड़ा और सख्त जवाब देता है
तो इसका मतलब होगा कि वह अमेरिका के साथ करीबी रिश्ते जारी रखेगा। अमेरिका भी पिछले कुछ समय से यही
चाह रहा है। अच्छी बात यह है कि इस तनाव से भारत को मजबूती ही मिली है। अगर, भारत कोई अलग रास्ता
अख्तियार करता है तो 21वीं सदी कुछ अलग हो सकती है। अब दो विकल्प बचे हैं। पहला, या तो भारत चीन के
साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश करे। जिससे दोनों देशों के प्रमुख कह सके कि तनावपूर्ण वक्त में भी वे शांति
कायम कर सकते हैं और एशिया का दो सुपरपावर मिलकर समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। दूसरे विकल्प में
पहले से ही खराब रिश्तों और ज्यादा खराब होंगे। दोनों देशों के नेताओं ने पहले भी मतभेदों को भुलाने की इच्छा
जता चुके हैं। जैसा कि डोकलाम विवाद में हो चुका है। लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए लग रहा है कि पुराने
घाव फिर से सामने आ सकते हैं। ऐसे में किसी समझौते पर पहुंचे की स्थिति कमजोर होती जाएगी।


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