क्या मात्र धुआं बनकर रह जाएगी जजपा में फूट की चिंगारी?

asiakhabar.com | January 3, 2020 | 3:19 pm IST
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विनय गुप्ता

प्रदेश में चल रही शीत लहर के माहौल में वर्ष 2019 जाते जाते हरियाणा की राजनीति में चिंगारी सुलगाकर
गर्माहट दे गया. हरियाणा विधान सभा चुनाव के मात्र दो माह भीतर ही हरियाणा की राजनीति में विष्फोट होने
प्रारम्भ हो गए हैं. नारनौंद से जन नायक जनता पार्टी (जजपा) के विधायक रामकुमार गौतम ने पार्टी के राष्ट्रीय
उपाध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफा दे दिया है और अपने नेता के खिलाफ तीखी बयानबाजी भी की है. इस घटना से
जजपा में अंदरखाने उबल रही फूट सामने आ गई है. यह तो बाद में ही पता चलेगा कि पार्टी के भीतर पनप रहा
यह ज्वालामुखी कितना लावा उगलता है.
लोग जहां क्रिसमस दिवस का आनंद ले रहे थे वहीँ हरियाणा की नवगठित एवं भाजपा के संग सत्ता में सांझीदार
जन नायक जनता पार्टी के वयोवृद्ध ब्राह्मण नेता एवं नारनौंद से विधायक राम कुमार गौतम कड़ाके की सर्दी में
अपने ही नेता एवं प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री दुष्यन्त चौटाला के खिलाफ आग उगल रहे थे. वे कह रहे थे कि पार्टी के
सर्वे-सर्वा दुष्यंत अकेले ही सत्ता सुख भोग रहे हैं और उनके अन्य विधायक उपेक्षित महसूस कर रहे हैं.गौतम ने
आरोप लगाया कि अकेले दुष्यंत ग्यारह विभागों का मंत्री बने बैठा है, वह भूल गया है की उसके नो अन्य विधायक
भी हैं. गौतम इतने खफा दिख रहे थे कि उन्होंने दुष्यंत को लपेटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
उल्लेखनीय है कि हाल में हुए विधान सभा चुनावों में पिचहतर पार का टारगेट रख कर चुनाव में उतरी ओवर
कॉंफिडेंट भाजपा को उस समय भारी झटका लगा था जब उसे विधान सभा की 90 सीटों में से केवल 40 सीटें ही
हाथ लगी थी, जो उसकी पिछली सीटों से भी सात कम थी. कांग्रेस 31 सीट लेकर दूसरे नंबर पर रही तथा पूर्व
उप-प्रधान मंत्री दिवंगत चौधरी देवीलाल के प्रपोत्र दुष्यंत चौटाला की पार्टी जजपा अपने ही दादा पूर्व मुख्यमंत्री एवं
जेल में दस वर्ष की सजा काट रहे ओम प्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल पार्टी से बगावत कर 10 सीट
जीतकर किंग मेकर बन गयी तथा चुनाव के दौरान पानी पी पी कर भाजपा को भ्रष्ट एवं प्रदेश के लिए घातक
बताने वाले दुष्यंत ने भाजपा के विरोध में वोट बटोरकर अपनी पार्टी की दसों सीटों को भाजपा की झोली में उंडेल
दिया और खुद के लिए उप- मुख्यमंत्री का पद सुनिश्चित कर लिया. नो सीट अन्य तथा निर्दलियों को मिली. छः
निर्दलियों को भाजपा कोई न कोई पद देकर पेसिफाई कर चुकी है.
हरियाणा में विधान सभा चुनाव में बहुमत से चूकी भाजपा ने 27 अक्टूबर को चुनाव के दौरान धुर विरोधी रहे
दुष्यंत चौटाला की पार्टी से गठबंधन कर सरकार बनाई थी. फिर नवंबर में पहला कैबिनेट विस्तार होने से पहले
जजपा के कोटे से सबसे वरिष्ठ विधायक और पार्टी के संस्थापक सदस्य राम कुमार गौतम का मंत्री बनना तय
माना जा रहा था, मगर छह कैबिनेट और चार राज्य मंत्रियों की सूची में उनका नाम नहीं रहा. जजपा ने अपने
तीन मंत्री पद के कोटे के विरुद्ध एक उप- मुख्यमंत्री पद तथा एक मंत्री पद स्वीकार कर एक मंत्री पद खाली रख
लिया ताकि अपने अन्य बचे विधायकों को आशान्वित रखा जा सके और वे पार्टी से बंधे रहें. परन्तु सत्ता के फल
चखने हेतु राजनीतिज्ञ भला कितने दिन टिकते हैं? मंत्री पद के लिए प्रारम्भ से ही अपना दावा मजबूत मानकर
चल रहे गौतम खुद को पार्टी में उपेक्षित मान रहे थे. आखिरकार पच्चीस दिसम्बर को गौतम ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
का पद छोड़कर सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी जाहिर कर बगावत कर ही दी.

क्या कहा गौतम ने?
गौतम ने स्वीकार किया कि दुष्यंत चौटाला की पार्टी ने मुझे एम एल ए बनाया है, जाटों का इतना बड़ा वोट बैंक
मुझे इसी कारण से मिला है, परन्तु दुष्यंत को डिप्टी चीफ मिनिस्टर भी तो हमने ही बनाया है. हम नौ विधायकों
के सहयोग से ही दुष्‍यंत डिप्‍टी चीफ मिनस्टिर बना है, नहीं तो कहां बनने वाला था? गौतम ने दुष्‍यंत चौटाला
पर निशाना साधते हुए कहा – 11 महकमे लेकर खुद बैठा है, अकेले जीम रहा है, अरे भलेमानस और भी विधायक
हैं पार्टी में.
उन्‍होंने कहा कि मैं जजपा के संस्‍थापकों में शामिल हूं और पार्टी नहीं छोड़ूंगा. जिस दिन विधायक पद से
इस्‍तीफा दूंगा तभी पार्टी छोडूंगा. यहां पार्टी छोड़ने पर विधायक पद जाने की तरफ भी इशारा किया और कहा कि
लोगों ने मुझे विधायक बनाया है और उनकी भलाई के लिए काम करता रहूंगा. यहां यह तो स्पष्ट हो ही गया कि
गौतम किसी भी सूरत में विधायकी नहीं गंवाना चाहते, उन्हें पता है कि दुष्यंत की सपोर्ट के बिना वे जाट बाहुल्य
क्षेत्र में जीत का दामन न ओढ़ सकते हैं न बिछा सकते हैं.
गौतम ने खुद को मंत्री पद ना मिलने का दर्द बयां करते हुए कहा –“ मुझे मंत्री बनाते तो मुझे क्या फायदा था?
हलके के लोगों के हित में होता ये, लोगों के काम होते, अगर मुझे मंत्री बनाते तो बड़ी उड़ान भरते, पर अब क्या
है -खेल ख़तम, पैसा हज़म.” गौतम ने आरोप लगाया कि दुष्यंत ने अपने रिश्तेदार (कैप्टेन अभिमन्यु) से समझौता
कर लिया और मुझे मंत्री नहीं बनाया.
राजनैतिक गलियारों में खुले आम चर्चाएँ हैं कि नारनौंद विधान सभा क्षेत्र से भाजपा के पराजित उम्मीदवार एवं पूर्व
वित्त मंत्री कैप्टेन अभिमन्यु के दवाब के चलते गौतम को मंत्री पद से वंचित रखा गया है. कैप्टेन को डर था कि
यदि गौतम को मंत्री पद दिया जाता है तो वे हलके में अपनी पकड़ मजबूत करके उनके (कैप्टेन के) भविष्य के
लिए घातक हो सकते हैं. यही स्थिति टोहाना से भाजपा के प्रदेश प्रमुख सुभाष बराला को पराजित कर विधायक
बने देवेंदर बबली के साथ है. कहा जा रहा है कि दुष्यंत चौटाला इन दोनों क्षेत्रो (टोहाना एवं नारनौंद) से जीते
अपनी पार्टी के विधायकों (देवेंदर बबली तथा राम कुमार गौतम) को मंत्री बनाना चाहते थे परन्तु इन हलकों से
भाजपा के पराजित धुरंधरों के दवाब के चलते भाजपा ने दुष्यंत की बात को नहीं माना.
क्या होगा गौतम की बगावत का परिणाम?
कुछ राजनैतिक विश्लेषक यह निष्कर्ष भी निकाल रहें हैं कि गौतम इतना वरिष्ठ राजनीतिज्ञ है कि बिना किसी दम
व शय के इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा नहीं करेगा, उसे जरूर कहीं ना कहीं से सपोर्ट मिल रही है. गौतम द्वारा दुष्यंत
के राजनैतिक विरोधी जाट नेताओं की प्रशंसा करना भी कुछ ना कुछ संकेत तो दे ही रहा है. दुष्यंत के दादा ओम
प्रकाश चौटाला के छोटे भाई और निर्दलिये चुनाव जीत कर वर्तमान खट्टर सरकार में अपने दम पर मंत्री बने
रणजीत सिंह चौटाला की तारीफ करते हुए गौतम ने कहा –“रणजीत का अपना स्थान है, वह चौधरी देवीलाल के
बेटे हैं और पहले भी मंत्री रह चुके हैं. काबिल व पढ़ा लिखा है. रणजीत कोई इनके (दुष्‍यंत चौटाला के) बनाने से
मंत्री थोड़े ही बना है.”
कांग्रेस नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंदर सिंह हूडा के खिलाफ भी दुष्यंत चौटाला की भाजपा के साथ सांठ – गांठ का
खुलासा करते हुए गौतम ने कहा –“ दुष्यंत जाट बिरादरी में अपने से बड़ा नेता किसी को देखना ही नहीं चाहता.
मैंने इनको कहा था कि आप हुड्डा के खिलाफ दिग्विजय को क्यों खड़ा कर रहे हो? दुष्यंत बोला कि नहीं तो हुड्डा
बन जाएगा. मैंने कहा कि हम तो नहीं जीत रहे और अगर ये जीत जाता तो हमे क्या तकलीफ है?” रामकुमार

गौतम के आरोपों का समर्थन करते हुए कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंदर हूडा के पुत्र एवं पूर्व सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने
कहा कि “जेजेपी शुरू से ही बीजेपी के लिए एजेंट के तौर पर काम कर रही थी. लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने
मिलकर सोनीपत सीट से भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हराने का षड्यंत्र रचा था”.
दीपेंदर ने आरोप लगाया कि “अब जेजेपी विधायक भी दुष्यंत चौटाला की नीतियों को समझ चुके हैं, क्योंकि दुष्यंत
चौटाला ने अपने विधायकों को बीजेपी के हाथों बेचने का काम किया है. हरियाणा की जनता ने बीजेपी शासन के
खिलाफ वोट देकर जेजेपी के विधायकों को जिताने का काम किया है, लेकिन जेजेपी प्रमुख ने सभी विधायकों के
साथ धोखा करते हुए बीजेपी की गोदी में बैठा दिया.”
अपने एक ट्वीट में दीपेंदर ने लिखा कि “सरकार में शामिल जेजेपी विधायकों के बग़ावती बयान इस बात का
प्रमाण है कि जब आप वोट भाजपा-खट्टर सरकार को सत्ता से बाहर करने के लो, और फिर सौदा कर सपोर्ट उन्ही
को करो -तो यह स्थाई नही स्वार्थी गठबंधन साबित होगा”.
परन्तु पार्टी सुप्रीमो दुष्यंत चौटाला विद्रोही विधायक राम कुमार गौतम की इस बगावत को बड़े ही चतुर राजनैतिक
बयान से खारिज कर रहे हैं और इस चिंगारी को आग बनने से पहले ही राख बना देना चाहते हैं. वे मुस्कराहट के
साथ कहते हैं कि राम कुमार गौतम पार्टी में सबसे बुजुर्ग व विधायकों की टीम में सबसे वरिष्ठ हैं, अगर उन्हें पार्टी
से कोई शिकायत है या कोई अन्य बात है तो वे संगठन प्लेटफार्म पर उठाएं. गौतम हमारे बड़े हैं और उनकी कही
हुई बातों का हम बुरा नहीं मानते हैं. दुष्यंत ने कहा कि संगठन के विस्तार में रामकुमार गौतम का सहयोग रहा है.
परन्तु साथ ही दुष्यंत ने गौतम को एक कड़ा संकेत भी दे दिया है कि यदि जरूरी हुआ तो पार्टी गौतम के खिलाफ
कारवाई भी कर सकती है. दुष्यंत मीडिया के सामने बोले –“ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व वरिष्ठ नेता हर विषय पर
गौतम से चर्चा करेंगे और अगर पार्टी को किसी तरह के नुकसान का विषय हुआ तो कार्रवाई करने का अधिकार
प्रदेश अध्यक्ष के पास है”.
अगर वर्तमान राजनैतिक हालात का विवेचन करें तो इतना तो स्पष्ट है कि फिलहाल भाजपा –जेजेपी सरकार को
कोई खतरा नहीं है. भाजपा ने आठ निर्दलिये विधायकों में से छः को कोई ना कोई पद देकर शांत कर रखा है, जे
जे पी के पास भी खुद दुष्यंत,उसकी माँ नैना चौटाला तथा एक विश्वस्त एवं मंत्री पद पा चुके विधायक अनूप
धानक का तो दुष्यंत के खिलाफ जाना किसी भी अवस्था में सम्भव नहीं लग रहा है. इंडियन नेशनल लोक दल के
एकमात्र विधायक अभय सिंह चौटाला का कांग्रेस को समर्थन देना अपने आप को ख़त्म करना है. अतः कांग्रेस के
31 विधायकों को यदि सात जेजेपी तथा दो निर्दलिये मिल भी जाएँ तो भी संख्या चालीस से पार नहीं पहुंचती है.
विधान सभा में नब्बे में से छियालीस का आंकड़ा किसी भी सूरत में मुनासिब नहीं है. इसलिए भाजपा की खट्टर
सरकार निश्चिन्त है, बल्कि जे जे पी की इस फूट का उसे फायदा ही होगा,अब जेजेपी का नेतृत्व अपने बाड़े की
तारबंदी करने में लग जाएगा और भाजपा पर उसका प्रेशर कम हो जाएगा. हो सकता है जेजेपी की इस फूट के
कारण उसे कोटे में मिले तीसरे मंत्री पद को भी भाजपा अपने कोटे में ट्रान्सफर कर किसी निर्दलिये को समायोजित
कर अपनी स्थिति और पुख्ता कर ले. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला का यह बयान भाजपा की मजबूती का
उद्घोष करता है -“ राम कुमार गौतम का विरोध स्वर जे जे पी का आंतरिक मामला है, इसका भाजपा-जजपा
सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.”
रामकुमार गौतम के इस बगावती कदम का निकट भविष्य में कोई चिंगारी से आग का गोला बनना दूर दूर तक
परिलक्षित नहीं हो रहा है और लगता है यह चिंगारी मात्र धुआं बनकर ही रह जाएगी. अध्यापक एम एस धनखड़
की यह टिपण्णी काफी कुछ कह जाती है -“ दादा गौतम बेरोजगारी से परेशान है जब भी पार्टी द्वारा उनके रोजगार
का इंतजाम कर दिया जाएगा वो बिल्कुल शांत हो जायेंगे, हर बेरोजगार की मानसिकता ऐसी ही होती है.”


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