-योगेंद्र योगी-
जोर-शोर से विपक्षी एकता की कवायद में जुटी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता को सुप्रीम कोर्ट ने तगड़ा झटका दिया है। पंचायत चुनाव से पहले हो रही हिंसा को लेकर केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले में दखल देने से मना कर दिया है। इस मुद्दे पर ममता सरकार की याचिका खारिज कर दी। भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार पर लोकतंत्र को खतरे में डालने की दुहाई देने वाले विपक्षी दलों के लिए चुनावी हिंसा पर ममता के खिलाफ दिए इस फैसले को पचाना आसान नहीं होगा। ममता बनर्जी को मिली इस शिकस्त को विपक्षी दलों की एकता के प्रयासों को तगड़ा झटका लगना निश्चित है। भाजपा इस मामले को विपक्षी दलों के खिलाफ भुनाए बगैर नहीं रहेगी। भाजपा भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर पहले ही विपक्षी दलों पर हमलावर रही है। अब चुनाव जीतने के लिए हिंसा का सहारा लेने के आरोप का मौका ममता बनर्जी ने भाजपा को दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने जो तल्ख टिप्पणी की है वह भी विपक्षाी दलों के लिए परेशानी का सबब बनेगी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि चुनाव के बीच जो हिंसा हो रही है वो सही नहीं है। निष्पक्ष रूप से चुनाव कराना ही लोकतंत्र की पहचान है। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल का चुनाव आयोग और ममता सरकार दोनों ने ही हाई कोर्ट के फैसले पर ऐतराज जताया था। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों से ये सवाल भी किया है कि जब आप अपने पड़ोसी राज्यों से फोर्स मांग रहे हैं तो फिर आपको केंद्रीय सुरक्षा बलों से क्या परेशानी है। ममता बनर्जी के वर्ष 2011 से सत्ता में आने के बाद पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का तांडव जारी है। तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार के दौरान हिंसा की पीड़ा झेल चुकी ममता बनर्जी की सरकार भी चुनावी हिंसा को लेकर लगातार कटघरे में है। विगत विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद पश्चिम बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में 12 लोग मारे गए थे।
ऐसी चुनावी हिंसा के लिए कभी बिहार और उत्तर प्रदेश बदनाम थे। टीएन शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद इन दोनों राज्यों में चुनावी हिंसा पर काफी हद तक लगाम लगी थी। दूसरे शब्दों में कहें तो शेषन ने अपने मजबूत इरादों से देश में चुनावी हिंसा को लगभग इतिहास का विषय बना दिया। इसके बावजूद पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का दौर खत्म नहीं हो सका। पश्चिम बंगाल में चाहे पंचायत चुनाव हों या फिर लोकसभा या विधानसभा चुनाव, यहां हिंसा अपरिहार्य बन चुकी है। नेशनल क्राइम रिकाड्र्स ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 2018 की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में होने वाली 54 राजनीतिक हत्याओं के मामलों में से 12 बंगाल से जुड़े थे। उसी साल केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार को जो एडवाइजरी भेजी थी, उसमें कहा गया था कि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा में 96 हत्याएं हुई हैं और लगातार होने वाली हिंसा गंभीर चिंता का विषय है। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 1999 से 2016 के बीच पश्चिम बंगाल में हर साल औसतन 20 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2018 के पंचायत चुनाव के दौरान 23 राजनीतिक हत्याएं हुई थीं। वर्ष 1998 में ममता बनर्जी की ओर से टीएमसी के गठन के बाद वर्चस्व की लड़ाई ने हिंसा का नया दौर शुरू किया। उसी साल हुए पंचायत चुनावों के दौरान कई इलाकों में भारी हिंसा हुई। ममता बनर्जी सरकार सिर्फ चुनावी हिंसा ही नहीं बल्कि भ्रष्टाचार और राज्य में हुए गंभीर अपराधों के आरोपों से भी घिरी रही है। देश में पश्चिम बंगाल एकमात्र ऐसा राज्य है जहां एनआईए सर्वाधिक मामलों की जांच कर रही है। इनमें सांसद अर्जुन सिंह के घर बम विस्फोट कांड, मोमिनपुर हिंसा के दो मामले, बीरभूम में 81 हजार जिलेटिन की छड़ें बरामद होने का मामला, रामनवमी में हिंसा के 6 मामले, लश्कर आतंकवादी तान्या परवीन का मामला (लंबित मुकदमा), जेएमबी के कई मामले, खजूर ब्लास्ट केस, भूपतिनगर विस्फोट मामला, नैहाटी विस्फोट कांड, मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में स्कूल के पास बम धमाका, मालदा के टोटो में धमाका और छत्रधर महतो मामले का कोर्ट में ट्रायल चल रहा है। ईडी के पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग भर्ती घोटाले के संबंध में एक्शन से टीएमसी कार्यकर्ताओं के एक कथित नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ। कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग को स्कूलों में ग्रुप सी के पदों पर कार्यरत 785 लोगों की भर्ती को रद्द करने के निर्देश दिए थे। वामपंथियों के 34 साल के राज को खत्म कर 2011 में बंगाल की सत्ता पाने वाली ममता बनर्जी के करीब 25 विधायक ईडी और सीबीआई के राडार पर हैं। इनमें तृणमूल के वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं।
पार्टी के लिए वर्ष 2017 में कोलकाता हाईकोर्ट में वकील बिप्लव रॉय चौधरी ने जनहित याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने कहा था कि 2011 से 2016 के बीच तृणमूल के 19 विधायकों की प्रॉपर्टी बेहिसाब बढ़ी। इसकी जांच होनी चाहिए। इनमें ममता के सबसे खास कहे जाने वाले और कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम का नाम भी है। बिप्लव रॉय चौधरी की याचिका का 5 साल से निपटारा नहीं हुआ। पार्थ चटर्जी की सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के पास से 50 करोड़ रुपए और 5 किलो सोना मिलने के बाद चौधरी फिर हाईकोर्ट पहुंच गए। उन्होंने हाईकोर्ट में पार्थ से मिले कैश के विजुअल्स दिखाए और कहा कि 19 विधायकों की प्रॉपर्टी की जांच भी जल्दी होनी चाहिए। बंगाल में शिक्षक भर्ती, कोयला व मवेशी तस्करी कांड के बाद लाटरी का घोटाला भी सामने आ चुका है। इसके तार दूसरे घोटालों से जुड़े बताए जा रहे हैं। दरअसल यह घोटाला करने का नया तरीका है। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय में तृणमूल के कई नेताओं व उनके रिश्तेदारों को भारी-भरकम रकम वाली लाटरी लगी है। मवेशी तस्करी कांड में गिरफ्तार होकर आसनसोल की जेल में बंद तृणमूल के बाहुबली नेता व उनकी बेटी सुकन्या को कुल पांच लाटरी लग चुकी हैं। अनुब्रत को गिरफ्तारी से कुछ समय पहले ही एक करोड़ की लाटरी लगी थी। अनुब्रत ने तीन साल पहले भी लाटरी में 10 लाख रुपए जीते थे। सीबीआई का दावा है कि मवेशी तस्करी की काली कमाई को लाटरी के जरिए सफेद किया जाता है। सवाल यही है कि भाजपा पर भ्रष्टाचार और सरकारी तंत्र के दुुरुपयोग करने का आरोप लगाने वाला विपक्ष ममता बनर्जी पर लगे चुनावी हिंसा और भ्रष्टाचार के नए-पुराने आरोपों को कैसे पचा पाएगा। विपक्ष जब तक अपना दामन ऐसे मामलों में साफ नहीं रखेगा, तब तक न सिर्फ चुनावी एकता कठिन है, बल्कि आम लोगों का विश्वास भी जीतने में वह सफल नहीं हो पाएगा।