चौथे चरण में आज यूं तो नौ राज्यों की 71 लोकसभा सीटों पर वोट पड़ने हैं, लेकिन पूरे देश की नजरें
अगर किसी एक सीट पर टिकी हैं तो वह है बेगूसराय। जेएनयू कांड से उभरे युवा नेता कन्हैया कुमार
की मौजूदगी इस लड़ाई को विशिष्ट बना रही है। बीजेपी ने इस सीट पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को
टिकट दिया है तो आरजेडी की तरफ से तनवीर हसन मैदान में हैं।
बिहार में मतदान के ट्रेडिशनल पैटर्न में जाति और धर्म का अहम रोल होता है और इन दोनों कारकों के
मुताबिक बीजेपी और आरजेडी के बीच ही मुकाबला बताया जा रहा है। मगर बेगूसराय की इस लड़ाई की
खूबी ही यह है कि यहां इस बार सारे परंपरागत कारक पीछे पड़ते दिख रहे हैं। ऐसे में जीत संबंधी
परस्पर विरोधी दावों को दरकिनार करके अगर सिर्फ उन चीजों पर ध्यान दें जो इस लड़ाई को देश-
दुनिया की नजर में खास बना रही है तो बड़ी दिलचस्प तस्वीर उभरती है।
कुछ समय पहले तक बेगूसराय का जो अनजाना सा लड़का जेएनयू में पढ़ाई कर रहा था, उसे
विश्वविद्यालय के अंदर घटी एक घटना ने रातोंरात राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना दिया। वह मामला अभी
अदालत में लंबित है, इसलिए उससे जुड़े आरोपों पर कोई नतीजा न निकालते हुए यहां इतना याद कर
लेना काफी है कि उस पूरे प्रकरण ने कन्हैया और उनके साथियों के बारे में देशवासियों के एक बड़े हिस्से
में संदेह पैदा कर दिया। उन संदेहों की बाधा को पार करते हुए कन्हैया इस चुनावी लड़ाई तक पहुंचा है
और यही मूल तत्व है जो बेगूसराय की इस लड़ाई में पूरे देश की दिलचस्पी बनाए हुए है।
जिस तरह से जेएनयू की घटना कभी भी कुछ खास व्यक्तियों या छात्र-छात्राओं का मामला नहीं रही,
दोनों पक्ष इसे इसके पूरे वैचारिक संदर्भों के साथ उठाते रहे, वैसे ही यह चुनावी लड़ाई भी अपने पूरे
वैचारिक संदर्भों में लड़ी जा रही है। सीपीआई की तरफ से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करते हुए ही
कन्हैया ने यह भी साफ कर दिया था कि चाहे जितना उकसाया जाए, पर वे जाति और धर्म के आधार
पर वोट नहीं मांगेंगे। अपनी इस घोषणा पर वह प्रचार अभियान के आखिरी पल तक टिके रहे। चुनावी
राजनीति पर काला धन और बड़ी पूंजी की लगातार मजबूत होती गिरफ्त के मद्देनजर कन्हैया ने क्राउड
फंडिंग के सहारे चुनाव लड़ने की घोषणा की और इसमें भी ऑनलाइन पारदर्शी प्रक्रिया का पालन किया।
बेगूसराय में चला उनका चुनाव प्रचार कई और सकारात्मक प्रवृत्तियों को रेखांकित कर गया। यहां देश के
अलग-अलग हिस्सों से और अलग-अलग क्षेत्रों में सक्रिय सैकड़ों लोग कन्हैया के प्रचार के लिए आते रहे।
चाहे फिल्ममेकर हों या कवि, रंगकर्मी और इंजीनियर-डॉक्टर- सबको कन्हैया के लिए वोट मांगते घूमते
देखा जा सकता था। यहां जावेद अख्तर और प्रकाश राज आए तो गोरखपुर ऑक्सीजन केस से चर्चित हुए
डॉ. कफील और गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी भी दिखे। पिछले पांच वर्षों के दौरान देश
के अलग-अलग हिस्सों में कश्मीरियों को देशद्रोही कह कर पीटने की घटनाएं हुईं। मगर यहां देशविरोधी
करार दी जाने वाली एक कश्मीरी लड़की (शेहला राशिद) कन्हैया के पक्ष में गांव-गांव घूमती वोट मांगती
देखी गई और बेगूसराय ने उसका भी वैसा ही स्वागत किया जैसा देश के अन्य हिस्सों से आए दूसरे
लोगों का।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो देश की संसदीय राजनीति में सुधार का अजेंडा आगे बढ़ाने वाली विभिन्न
धाराएं बेगूसराय में कन्हैया कुमार के साथ एकाकार होती नजर आईं। इतना ही नहीं उनके चुनाव प्रचार
में स्थानीय युवकों की तरह युवतियां भी गली-गली घूम रही थीं। बेगूसराय जैसी जगह के लिए यह छोटी
बात नहीं है।
कुल मिला कर देखा जाए तो बहस इस बात पर तो हो सकती है कि बेगूसराय में कन्हैया कुमार का
प्रभाव मतदाताओं के कितने बड़े या छोटे हिस्से तक पहुंच पाएगा, इसमें दो राय नहीं हो सकती कि यह
प्रभाव देश की लोकतांत्रिक राजनीति को उन बुराइयों से मुक्ति की दिशा में ले जाने वाला है जो असाध्य
मानी जाती रही हैं।