वैश्विक राजनीति में शुचिता और नैतिकता के उच्च मानदंड स्थापित करते हुए न्यूजीलैंड की न्याय मंत्री किरी एलन ने एक कार को टक्कर मारने के आरोप में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह हादसा वेलिंग्टन में हुआ। इतना ही नहीं घटना के बाद पुलिस ने मंत्री को हिरासत में ले लिया। स्वच्छता की राजनीति की सिक्के का एक उज्जवल पहलू न्यूजीलैंड में देखने को मिला। इस सिक्के का दूसरा काला पहलू भारत की राजनीति में देखा जा सकता है, जहां जनप्रतिनिधियों पर हत्या, बलात्कार, लूट, डकैती और अपहरण जैसे संगीन मामले होने के बावजूद वह संसद और विधानसभाओं में जमे हुए हैं।देश में वर्तमान में कुल 4001 विधायक हैं। जिसमें से 1,777 यानी 44 फीसदी नेता हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसे अपराधों में लिप्त रहे हैं। वहीं वर्तमान लोकसभा में भी 43 फीसदी सांसद आपराधिक मामलों में घिरे हैं। देशभर में माननीयों के खिलाफ कुल 5097 मुकदमे लंबित हैं। इनमें 40 फीसद पांच साल से ज्यादा पुराने हैं। नौ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि सांसदों-विधायकों के खिलाफ मामलों का निपटारा त्वरित गति से कर एक साल के अंदर निपटाया जाना है। यहां तक कहा गया था कि अगर निचली अदालतें ऐसा करने में असफल रहती हैं तो हाईकोर्ट के समक्ष स्पष्टीकरण देना होगा। इसके लिए विशेष अदालतों का भी प्रावधान हो गया। लेकिन स्थिति यह है कि वर्तमान में पांच हजार से ज्यादा ऐसे केस लंबित हैं और 40 फीसद केस पांच से ज्यादा वक्त से लटके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त 2021 को सांसदों विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों की जल्द सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिया था कि इन विशेष अदालतों के जजों का ट्रांसफर सुप्रीम कोर्ट की इजाजत के बगैर नहीं किया जाएगा। इसके बाद से हाई कोर्ट समय-समय पर अर्जी दाखिल करते हैं और प्रशासनिक आवश्यकता या अन्य आधार पर जज को ट्रांसफर करने की इजाजत मांगते हैं। इसे देखते हुए न्यायमित्र हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल 18वीं रिपोर्ट में 10 अगस्त 2021 के आदेश में संशोधन का सुझाव दिया था। न्यायमित्र की रिपोर्ट में एडीआर की जुलाई 2022 की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि लोकसभा के 44 फीसद सांसद और राज्यसभा के 31 फीसद सांसदों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे लंबित हैं।अपराधों के मामलों में सांसदों के साथ राज्यों के विधायक भी पीछे नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट की एक शर्त के मुताबिक किसी भी नेता को विधायक बनने से पहले एक स्वघोषित हलफनामा फाइल करना होता है, जिसमें उस पर कितने आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं इसकी विस्तृत जानकारी दी जाती है। इसी हलफनामे के अनुसार भारत के कुल विधायकों में से 44 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। देश में वर्तमान में कुल 4001 सिटिंग विधायक हैं। जिसमें से 1,777 यानी 44 फीसदी नेता हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसे मामलों के आरोपों का सामना करना रहे हैं। नेताओं पर लगे कुछ आरोप तो मामूली या राजनीतिक हैं, लेकिन ज्यादातर विधायकों के खिलाफ हत्या की कोशिश, सरकारी अधिकारियों पर हमला और चोरी जैसे गंभीर आरोप हैं। सन 2004 में जनप्रतिनिधियों पर आपराधिक मामलों की संख्या 22 फीसदी थी, जोकि अब दोगुनी हो गई है। ये आंकड़े बताते हैं कि राजनीति को अपराध मुक्त बनाने की लाखों कोशिशों के बावजूद ऐसे विधायकों, सांसदों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, जिनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। आपराधिक मामलों का सामना कर रहे इन 1,777 नेताओं पर कोई छोटे-मोटे आरोप नही हैं। ये ऐसे मामले हैं जिनकी जांच पूरी हो चुकी है और पुलिस कोर्ट में चार्जशीट भी दायर कर चुकी है, लेकिन बावजूद इसके इन मामलों पर अब तक कोई फैसला नहीं सुनाया गया है।
नेताओं के आपराधिक मामले निपटाने के मामले में मध्य प्रदेश के साथ तेलंगाना और आंध्र प्रदेश ऐसे तीन राज्य हैं, जिनमें पिछले 5 सालों में एक भी मामले का निपटारा नहीं किया गया है। विधायकों के ऊपर लगे गंभीर आपराधिक मामलों को देखें तो कुल आपराधिक मामले वाले विधायकों में से 1,136 या 28 प्रतिशत मामले ऐसे हैं जिनमें दोषी पाए जाने पर आरोपी को पांच साल या उससे ज्यादा की जेल की सजा हो सकती है। भाजपा शासित राज्यों में भाजपा के विधायकों पर सर्वाधिक आपराधिक मुकदमें दर्ज हैं। भारतीय जनता पार्टी की भारत के 15 राज्यों में बीजेपी की सरकार है। इनमें बीजेपी बहुमत के साथ 6 राज्यों में और सहयोगी पार्टियों के साथ 9 राज्यों में सरकार चला रही है। इन राज्यों में बीजेपी में कुल 479 विधायक हैं, जिनमें से 337 विधायकों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। आपराधिक मामले वाले विधायकों की सूची में दूसरा स्थान कांग्रेस का है। कांग्रेस के 334 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं जिनमें से 194 विधायकों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। अन्य पार्टियों में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके), तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, भारत राष्ट्र समिति (पूर्व में तेलंगाना राष्ट्र समिति), राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और बीजू जनता शामिल हैं। इन दलों में ऐसे तो विधायकों की संख्या कम है, लेकिन अपराध का प्रतिशत ज्यादा है। आपराधिक मामले वाले ज्यादातर नेताओं को न्यायालयों के फैसलों की चिंता इसलिए भी नहीं है, क्योंकि जब तक कोर्ट दोषी पाए जाने का फैसला नहीं सुनाता है तब तक इन नेताओं को चुनाव लड़ने से कोई नहीं रोक सकता है, यहां तक की जेल में रहते हुए भी चुनाव लड़ा जा सकता है। राजनीतिक दलों के लिए जनप्रतिनिधियों का दागदार होना चिंता का विषय नहीं हैं। इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दल एक जैसे नजर आते हैं। सिर्फ अपनी पार्टी को दूसरी से स्वच्छ दिखाने मात्र को एक-दूसरे पर अपराधों का बढ़ावा देने के आरोप लगाते हैं। जब सवाल राजनीति से अपराध की गंदगी साफ करने का आता है तो सभी एक-दूसरे की संख्या गिनाने लगते हैं। ऐसे में देश में स्वच्छ और समृद्ध लोकतंत्र की कल्पना भी अभी कोसों दूर है।