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विकास गुप्ता
पश्चिम बंगाल में कथित हमले को लेकर ममता बनर्जी की ही वैसी ही आलोचना हो रही थी जैसी कि आलोचना
दिल्ली के मुख्य मंत्री केजरीवाल होती रही है। भाजपा के बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी कहा कि ये
सियासी पाखंड है। चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने इस तरह की नौटंकी करने का प्लान बनाया,जिसकी स्क्रिप्ट
पहले ही लिखी जा चुकी थी। उन्हें नंदीग्राम के नतीजों का पहले से ही एहसास हो गया है। गौतलब है कि हर
चुनाव के पहले केजरीवाल ने वो सारे चुनावी हथकंडे अपना रखें थे,जो झूठ और फरेब पर आधारित होते थे। पहली
बार एक जब वे लोगों का अभिवादन स्वीकर कर रहे थे तभी एक शख्स उनके प्रचार वाहन पर चढ़ा और थप्पड़
मार दिया। इससे पहले 4 अप्रैल 2014 को केजरीवाल जब चुनाव प्रचार कर रहे थे तभी एक ऑटो ड्राइवर ने
केजरीवाल को कई थप्पड़ जड़ दिए थे। केजरीवाल ने इसके पश्चाताप के लिए राजघाट में जाकर घंटों सामाधि
लगाई थी और फिर आरोपी के घर जाकर उसके गुलदस्ता देकर उसे माफ कर दिया था। केजरीवाल को थप्पड़
मारने की दूसरी घटना है जबकि इससे पहले कई और अन्य हमले भी हो चुके थे। वाराणसी में लोकसभा चुनाव
प्रचार के दौरान कुछ लोगों ने केजरीवाल पर स्याही फेंक दी थी। यहां उनपर लोगों ने अंडे भी फेंके थे। एक सभा के
दौरान हरियाणा के भिवानी में एक शख्स ने केजरीवाल पर हमला किया था। हमलावर शख्स खुद को सामाजिक
कार्यकर्ता अन्ना हजारे का समर्थक बताया था। 2018 – दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ऑड इवन पर केजरीवाल
लोगों को संबोधित कर रह थे तभी एक युवती ने केजरीवाल पर स्याही फेंक दिया था। युवती केजरीवाल पर
सीएनजी घोटाले का आरोप लगा रही थी। नवंबर 2018- एक शख्स ने दिल्ली सचिवालय में केजरीवाल का चश्मा
छीनकर आखों में लालमिर्च पाउडर डाल दिया था। राजनितिक जानकारों का मानना है की वो ऐसा सस्ता प्रचार व
मतदाताओं की सहानभूति पाने के लिए किया करते थे।अरविन्द केजरीवाल व ममता बेनर्जी की बहुत नजदीकी रही
है इस कारण सोशल मीडिया पर यह मजाक शुरू से छाया हुआ था कि क्या केजरीवाल की राह पर चल रही है
ममता !
अब तो ममता बनर्जी के विगत जख्मी हो जाने के मामले को चुनाव आयोग ने एक दुर्घटना या हादसा बता कर
साफ कर दिया है कि इस घटना को किसी साजिश से जोड़ कर देखना सर्वथा अनुचित है। हां जहां तक ममता दी
की सुरक्षा का मामला है तो उसमें अवश्य चूक हुई है। वैसे भी किसी मुख्यमन्त्री द्वारा अपने ऊपर चुनावी माहौल
में हमले का आरोप लगाना लोकतन्त्र में असामान्य घटना ही कही जायेगी। क्योंकि चुनावी प्रचार के दौरान किसी
भी रूप में हिंसा का प्रयोग पूर्णतः वर्जित है किन्तु बिना ठोस प्रमाणों के विपक्षी पार्टी के ऊपर हिंसा फैलाने का
आरोप लगाना भी लोकतन्त्र में सर्वथा अनुचित है। इसे राजनीति से प्रेरित भी कहा जा सकता है। अतः ममता दीदी
की पार्टी की तरफ से जिस तरह अपने नेता के जख्मी होने के मामले को साजिश बताया गया और पहले से सोची-
समझी रणनीति का हिस्सा कहा गया वह विभिन्न शंकाओं के घेरे में आता था। इसमें कोई दो राय नहीं कि ममता
दी जख्मी हुई और उनके पैर में गंभीर चोट भी आयी जिसकी वजह से वह अब व्हीलचेयर पर चुनाव प्रचार कर रही
हैं परन्तु यह भी हकीकत है कि 10 मार्च को ममता दी जब एक मन्दिर में पूजा करने के लिए जा रही थीं तो भीड़
ने उन्हें कार से उतरते समय ही घेर लिया था और इस धक्का-मुक्की में उनकी कार का दरवाजा जबरन बन्द करने
के चक्कर में उनका पैर बुरी तरह जख्मी हो गया। इसे एक साजिश बताना या भाजपा द्वारा सुनियोजित हमला
बताना किसी भी तर्क से गले नहीं उतरता था। चुनावी युद्ध में वह पक्ष हमेशा नुकसान में रहता है जिस पर
उत्पीड़न करने का आरोप लगता है जबकि उत्पीड़ित पक्ष लाभ में रहता है। अतः तर्क कहता है कि भाजपा ऐसा
खतरा मोल लेकर अपना नुकसान स्वयं क्यों करेगी? यही वजह रही कि रेलमन्त्री पीयूष गोयल के नेतृत्व में भाजपा
के एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग को ज्ञापन देकर मांग की कि मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाये। वहीं
दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस का भी एक प्रतिनिधिमंडल सांसद श्री सौगत राय के नेतृत्व में चुनाव आयोग से मिला
और उसने साजिश का आरोप लगाते हुए जांच कराने की मांग की। चुनाव आयोग ने इस मामले की जांच कराई
और अपने दो पर्यवेक्षक भेजे तथा राज्य के मुख्य सचिव से भी घटना की रिपोर्ट मांगी।
पर्यवेक्षकों व मुख्य सचिव की रिपोर्ट के आधार पर चुनाव आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि यह सुरक्षा में चूक का
मामला ज्यादा बनता है जिसकी वजह से ऐसा हादसा नन्दीग्राम में हुआ। अतः सम्बन्धित जिला प्रशासन के कुछ
अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। सुरक्षा में लापरवाही बरतने का निष्कर्ष इसलिए और भी ज्यादा
विश्वनीय लगता है कि चुनाव आयोग ने जो दो पर्यवेक्षक भेजे थे, उनमें से एक पुलिस पर्यवेक्षक था। मगर
पर्यवेक्षकों ने एक और महत्वपूर्ण पक्ष की तरफ भी ध्यान दिलाया कि ममता दी के नन्दीग्राम के मन्दिर में जाने के
कार्यक्रम के बारे में चुनाव आयोग को कोई सूचना नहीं दी गई थी जिसकी वजह से इस कार्यक्रम का वह सर्वेक्षण
नहीं कर सका। यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि उसी दिन ममता दी ने नन्दीग्राम विधानसभा क्षेत्र से अपना
नामांकन पत्र दाखिल किया था। अतः ममता दी चुनावी जोश में इस मन्दिर यात्रा की औपचारिकताएं पूरी नहीं कर
पाईं और यह दुखद घटना हो गई। तृणमूल कांग्रेस ने इस घटना को राज्य के पुलिस महानिदेशक के स्थानान्तरण
से भी जोड़ने की कोशिश की। ममता दी की पार्टी ने चुनाव आयोग पर ही आरोप लगा दिया था कि कि उसने
राजनीतिक दबाव में पुराने पुलिस महानिदेशक का तबादला किया। इसे चुनाव आयोग ने ऐसा आरोप माना जिस पर
कोई प्रतिक्रिया देना उसने उचित नहीं समझा। चुनावी प्रतियोगिता में आरोप भी बहुत सोच-समझ कर लगाये जाने
चाहिए क्योंकि भारत का लोकतन्त्र चुनाव घोषित हो जाने के बाद किसी भी राज्य की पूरी प्रशासन प्रणाली व
व्यवस्था संवैधानिक तौर पर चुनाव आयोग के सुपुर्द कर देता है। ऐसा इसीलिए है जिससे चुनाव पूरी तरह निष्पक्ष
व निर्भीक माहौल में हो सकें। यह व्यवस्था हमारा संविधान लिखने वाले पुरखे इसीलिए कायम करके गये हैं जिससे
किसी भी राजनीतिक दल की किसी भी राज्य में काबिज सरकार अपने अधिकारों का बेजा इस्तेमाल न कर सके।