शिशिर गुप्ता
पिछले कुछ वर्षों से चुनाव दर चुनाव कांग्रेस को झटके लगते जा रहे हैं। 2014 में मोदी की जबरदस्त
जीत के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी को उससे भी बड़ी जीत मिली और कांग्रेस अपनी स्थिति
में कोई सुधार नहीं कर पाई। उसकी सीटें 44 से 56 तक पहुंची किंतु पार्टी में जान आ पाई हो, ऐसा
नहीं लगा। राहुल गांधी के त्यागपत्रा देने से स्थिति और भी खराब हो गई क्योंकि कुछ मास का समय
उन्हें मनाने के प्रयास और फिर उनका स्थान कौन ले, इस मंथन में निकल गया। फिर भी उनकी जगह
ले सकने योग्य कोई नेतृत्व नहीं मिल पाया और घूम फिर कर पार्टी को सोनिया गांधी के पास जाना
पड़ा जो कार्यकारी अध्यक्ष बनने को तैयार हो गई।
लोकसभा चुनाव के बाद हुए हाल के महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस कुछ
विशेष नहीं कर पाई है। हरियाणा जैसे छोटे राज्य में जहां विधानसभा में मात्रा 90 सीटें हैं, कांग्रेस ने
अपनी स्थिति में कुछ सुधार अवश्य किया है किंतु महाराष्ट्र में वह चौथे नंबर पर पहुंच गई है और
उसकी जूनियर पार्टनर शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी उससे आगे निकल गई है। भाजपा की बढ़ती
शक्ति के मद्देनजर बहुत से कांग्रेस नेता यह मानने लग गए हैं कि कांग्रेस में शायद अब कुछ विशेष
जान नहीं बची है। कहीं कहीं हरियाणा जैसी प्रगति दिखाई देती है किंतु वह भी पार्टी को सरकार बनाने
के पास ले जाने में समर्थ नहीं होती। इसलिए बहुत से कांग्रेसजन कांग्रेस छोड़कर भाजपा और अन्य
पार्टियों में शामिल होते जा रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस बिलकुल शांत बैठी है। कांग्रेस नेता समय-समय पर सरकार की नीतियों के
विरूद्ध हल्ला मचाते रहते हैं। पिछले दिनों भी कांग्रेस ने देश में बेरोजगारी, मंदी और जीडीपी वृद्धि दर
में कमी को लेकर कई बयान दिए हैं लेकिन पार्टी मात्रा बयानबाजी तक ही सीमित रह जाती है। यह तो
भला हो मीडिया का कि कांग्रेस के पुराने इतिहास के कारण वे पार्टी नेताओं और उनके बयानों को टीवी
पर दिखाते रहते हैं किंतु बयानों से हटकर कोई अन्य काम नहीं हो रहा है। कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने
के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है। यदि कुछ योजनाएं बनती भी हैं तो वह कार्य रूप में परिणित नहीं
हो पाती। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी कोमा में चली गई है और आने वाले वर्षों में
मात्रा एक पार्टी शासन ही रहने वाला है।
यदि देश में लोकतंत्रा को बचाए रखना है तो एक मजबूत विरोधी दल का होना अनिवार्य है जो बनने की
संभावना पुरानी कांग्रेस में दिखाई नहीं देती। कांग्रेस पूरी तरह से गांधी परिवार पर आश्रित है और इनके
अतिरिक्त अन्य किसी नाम पर सहमति नहीं कर पाती। उधर राहुल गांधी, सोनिया गांधी या प्रियंका भी
इस लायक नहीं दिखाई दे रहे कि वे कांग्रेस को कभी बुलंदी की ओर ले जा पाएंगे। वास्तव में गांधी
परिवार से जुड़ाव ही कांग्रेस को आगे बढ़ने से रोक रहा है क्योंकि यह जुड़ाव ही किसी नए नेतृत्व को
उभरने नहीं देता। जब तक नए विचारों और नई दृष्टि वाला कोई नया नेतृत्व पार्टी को चलाने को आगे
नहीं आता तब तकं पार्टी यूंही घिसटती रहेगी। पुराने नेता आपस में लड़ते रहेंगे और एक दूसरे की टांग
खींचते रहेंगे। देश के बुद्धिजीवियों को चाहिए कि वे भाजपा की आलोचना करने और प्रधानमंत्राी को पत्रा
लिखने के स्थान पर कांग्रेस को पुनः खड़ा करने का ढंग सोचें और कांग्रेस अध्यक्ष को बार-बार पत्रा
लिखे। वे उन्हें कहें कि कांग्रेस कोई युवा नया और योग्य नेतृत्व लेकर आए।
यह नया नेता एक अच्छा वक्ता होना चाहिए जो जनता को अपनी वक्तृत्व कला द्वारा प्रभावित कर
सके और उन्हें कांग्रेस के साथ जोड़ सके। कांग्रेस द्वारा हर बात पर मोदी और भाजपा का विरोध करने
के स्थान पर कांग्रेस का पुनः निर्माण कर सके। कांग्रेस का एक अच्छा इतिहास रहा है और कई योग्य
नेता रहे हैं किंतु आज वही नेता आगे हैं जो परिवार के निकट दिखाई देते हैं। अन्य किसी नेता को
अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर नहीं मिलता। यदि कांग्रेस को कोई ऐसा नेतृत्व मिल पाया तो कांग्रेस
में पुनः जान आ पाएगी अन्यथा रसातल में तो वह जा ही रही है।