-आर.के. सिन्हा-
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मसले पर सदियों से विवाद चला आ रहा था। यह तो सब जानते ही हैं। लेकिन
यह बात कम ही लोग जानते हैं कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मसले पर सुप्रीम कोर्ट में जब सुनवाई शुरू हुई तो
प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कोशिशें होती रही कि इस विवाद पर फैसला किसी तरह टल जाए।
यानी अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो ही नहीं, या फिर इस मामले में विलंब होता रहे। अब जब अयोध्या में
राम मंदिर निर्माण का श्रीगणेश हो चुका है तो यह सनसनीखेज रहस्योद्घाटन हो रहा है कि राम मंदिर का निर्माण
कुछ तत्वों को पसंद नहीं था।
यह खुलासा खुद उस शख्स ने किया है, जो राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की
बैंच का सदस्य होने के साथ-साथ देश की सर्वोच्च अदालत का मुख्य न्यायाधीश भी था। हम बात कर रहे हैं देश
के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की। रंजन गोगोई की हाल ही में लिखी एक किताब छप कर आई है। इसका
नाम है 'जस्टिस फॉर जज।' इसमें रंजन गोगोई बहुत साफगोई और निर्भीकता से बताते हैं कि रामजन्म भूमि
मामले में मुसलमानों के पक्ष के वकील राजीव धवन बार-बार इस तरह की बेतुकी मांगें करते रहे ताकि केस की
सुनवाई किसी बहाने टलती रहे। उनका मकसद यह था कि कम से कम रंजन गोगोई के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य
न्यायाधीश पद पर रहते हुए इस मसले का कोई फैसला ना आए। जब वे रिटायर हो जायेंगे, तब अगले से कैसे
निपटा जाये, यह तय किया जायेगा।
रंजन गोगोई ने यह घोषणा कर दी थी कि सुप्रीम कोर्ट रामजन्मभूमि विवाद मामले की हर हफ्ते सोमवार से
शुक्रवार तक सुनवाई करेगा। जिससे यह साफ हो गया था कि सुप्रीम कोर्ट इस संवेदनशील मामले का फैसला नवंबर
2019 के दूसरे हफ्ते से पहले देना चाहता है। मतलब मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के 17 नवंबर 2019 को
सेवानिवृत्त होने से पहले इस केस में फैसला देश के सामने आ जाएगा।
गोगोई के फैसले का यह भी अर्थ था कि रोजाना सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ के पास 48
दिनों का कार्य समय होगा। यह समय पर्याप्त भी था, क्योंकि इस मामले में एक पक्ष निर्मोही अखाड़ा अपनी बहस
पूरी कर चुका था। सुप्रीम कोर्ट ने भी साफ कर दिया था सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद उन्हें एक और मौका
प्रत्युत्तर के लिए मिलेगा।
देखा जाए तो इस फैसले से केस के सभी पक्षकारों को खुश होना चाहिए था कि चलो एक लटके हुए मामले में
फैसला आ रहा है लेकिन यह नहीं हुआ। राजीव धवन पहले से ही कहने लगे कि वे लगातार पांच दिनों तक जिरह
नहीं कर सकेंगे। उन्हें बीच में अवकाश चाहिए। तब सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि वह बुधवार को अवकाश ले
सकते हैं। पर उस दिन उनके बदले कोई अन्य वकील आकर जिरह करेगा। सुप्रीम कोर्ट हर हालत में तय समय में
सुनवाई पूरी करना चाहता था। इसी के चलते उसने अपने रोज के कामकाज के समय को पहले शाम चार बजे और
फिर शाम 5 बजे तक के लिए बढ़ा दिया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का काम दिन में आमतौर पर तीन बजे तक
समाप्त हो जाता है।
एक बात और। इस तथ्य से सारा देश वाकिफ है कि जब राम मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी
तब मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर उनकी पूर्व जूनियर असिस्टेंट ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगा दिए। यह
इसलिए हुआ या करवाया गया ताकि किसी तरह इस मामले को लटकाया जा सके। यौन उत्पीड़न के आरोप पर
रंजन गोगोई का कहना था कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता गंभीर ख़तरे में है और यह न्यायपालिका को अस्थिर
करने की 'बड़ी साजिश' है।
कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला के पीछे कुछ बड़ी ताक़तें थीं।
मोटी रकम का खेल भी बताते हैं। आरोप लगाने वाली महिला ने एक चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट के सभी 22 जजों को
भेजी थी, जिसमें जस्टिस गोगोई पर यौन उत्पीड़न करने, इसके लिए राज़ी न होने पर नौकरी से हटाने और बाद
में उन्हें और उनके परिवार को तरह-तरह से प्रताड़ित करने के आरोप लगाए गए थे। ये सब राम जन्म भूमि विवाद
पर फैसले को प्रभावित करने के लिए ही तो हो रहा था।
बहरहाल, 6 अगस्त से 16 अक्टूबर, 2019 तक इस मामले पर 40 दिनों की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने
अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने एक लंबी सुनवाई के बाद अयोध्या में
मंदिर-मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाया। 100 सालों से ज्यादा समय से चले रहे इस विवाद को तत्कालीन प्रधान
न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में संवैधानिक पीठ ने सर्व सम्मत फैसला सुनाया कि विवादित जमीन
पर हक हिंदुओं का है। इस तरह देश के इतिहास के सबसे अहम और पांच सदी से ज्यादा पुराने विवाद का अंत हो
गया।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। इसके
तहत अयोध्या की 2.77 एकड़ की पूरी विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए दे दी गई। जानने वाले जानते
हैं कि कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व और मात्र कुछ खैरख्वाहों की तरफ से हरसंभव कोशिशें होती रहीं कि कोर्ट का
फैसला न आए। इसलिए सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही में लगातार व्यवधान डाला जाता रहा। अब उसी कांग्रेस के नेता
राहुल गांधी हिंदू और हिंदुत्व पर ज्ञान दे रहे हैं। उनसे देश यह जानना चाहता है कि अगर वे हिंदू हैं, तो वो इस
बात के सबूत तो दें। क्या उनकी माता सोनिया जी ने उनके पिता का धर्म और नाम परिवर्तन के बाद ही ईसाई
रीति से विवाह नहीं किया था ?
अगर उनके खानदान के लोगों ने हिंदुओं का कोई तीज-त्योहार मनाया हो तो वह बताएं। राहुल गांधी हिंदुओं में
विभाजन करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। वे बताएं कि क्या वे अयोध्या में कभी राम मंदिर के दर्शन करने
के लिए भी जाएँगे ? राहुल गांधी यह जान लें कि जो हिंदू हैं, वो ही हिंदुत्ववादी हैं। जिसके माता-पिता ही हिंदू
नहीं, वह कब का हिंदू हो गया? क्या कांग्रेस ने राम मंदिर का निर्माण कराया? या मंदिर निर्माण में कोई सहयोग
किया? यदि नहीं तो उन्हें हिंदू और हिंदुत्व पर बात करने का हक ही क्या है?