संयोग गुप्ता
अब यह आश्चर्य नहीं है कि भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 10 लाख को लांघ चुकी है।
इसी माह के अंत तक यह आंकड़ा 20-25 लाख तक भी पहुंच सकता है। सितंबर में अनुमान जताया जा रहा है
कि यह गिनती 35 लाख को पार कर सकती है। हाल ही में एक शोध ने यह निष्कर्ष दिया है कि नवंबर तक
भारत में एक करोड़ से ज्यादा संक्रमित मरीज होंगे! अब ये आंकड़े आम आदमी और विशेषज्ञों को भयभीत नहीं
करते, क्योंकि हम बीते छह माह से कोरोना से उपजे यथार्थ को देख और झेल रहे हैं। हम 20-25 लाख के आंकड़े
का विश्लेषण कर चुके हैं, लेकिन जो शोध एक करोड़ से ज्यादा संक्रमितों की भविष्यवाणी कर रहा है, फिलहाल
वह भारत के लिए सार्वजनिक नहीं है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय शोध-पत्रिकाओं में छपा है। बीते गुरुवार को एक ही दिन
में 36,429 मरीजों और 690 मौतों की संख्या सामने आई, तो एक और कोरोना कीर्तिमान स्थापित हो गया।
भारत में कोरोना नियंत्रण के आसार दिखाई ही नहीं दे रहे। शहरों में संक्रमण बढ़ता ही जा रहा है, तो वह किसी
भी गिनती तक पहुंच सकता है। इसी दौरान साइबर सुरक्षा पर हैकर्स ने बहुत बड़े हमले की कोशिश की है, तो
आशंका जताई जा रही है कि रूस समर्थित हैकर्स ने अमरीका, ब्रिटेन, कनाडा आदि देशों में कोरोना वायरस के
वैक्सीन का फार्मूला चोरी करने की हरकत की है। हालांकि ऐसे शोधात्मक फार्मूलों तक साइबर के डकैतों की पहुंच
अभी तक संभव नहीं हुई है, लिहाजा विश्लेषण किए जा रहे हैं कि अगली जंग साइबर संप्रभुता को लेकर ही होगी।
बहरहाल अब भारत कोरोना के संदर्भ में अमरीका और ब्राजील के बाद तीसरे स्थान पर है, जहां 10 लाख से
अधिक संक्रमित लोग हैं। बेशक ठीक होने वालों का आंकड़ा बहुत अच्छा है, लेकिन संक्रमण तो फैल रहा है और
लोगों को जकड़ भी रहा है। कोरोना से बीमार लोगों की गिनती बढ़ रही है, तो वैक्सीन की अच्छी खबरें भी सुर्खियां
बन रही हैं। सबसे सुखद सूचना यह है कि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने 1000 मनुष्यों पर परीक्षण पूरा कर लिया
है, जो 100 फीसदी सफल रहा है। परीक्षण में एक निष्कर्ष हासिल हुआ है कि यह टीका कोरोना के खिलाफ
दोहरी सुरक्षा मुहैया करा सकता है। इस संभावित टीके से मानव-शरीर में एंटीबॉडी और टी-सेल दोनों ही बनते हैं।
एंटीबॉडी तो अधिकतम तीन महीने के लिए बनी रहती है, जबकि टी-सेल कई सालों तक बने रहते हैं और कोरोना
वायरस को मारने में सक्षम होते हैं। प्रख्यात विज्ञान जर्नल ‘द लांसेट’ अब ऐसे परीक्षणों पर रपट छापेगा कि
संभावित टीका लंबे वक्त तक, कोरोना वायरस के खिलाफ, मानव को प्रतिरक्षा देने में सक्षम साबित होगा अथवा
किस हद तक इनसान की जिंदगी को सुरक्षित कर पाएगा! बहरहाल ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के मानव-परीक्षण के
संदर्भ में गौरतलब यह है कि भारत मूल के दो व्यक्तियों के शरीर पर भी टीके का परीक्षण किया गया है। यह
निर्णय स्वेच्छा के आधार पर और तमाम स्वास्थ्य संबंधी जांचों से गुजरने के बाद लिया गया है। उन व्यक्तियों में
से एक हैं-दीपक पालीवाल। खुद एक ब्रिटिश फार्मा कंपनी में कंसल्टेंट दीपक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भारतीय
मीडिया के सामने आए हैं और कोरोना के संभावित इलाज को लेकर उन्होंने अपने अनुभव साझा किए हैं। दीपक
आज ब्रिटिश नागरिक हैं, लेकिन उनकी मां और बड़ा भाई अन्य परिजनों के साथ जयपुर में रहते हैं। मानवीय
कल्याण और प्रतिरक्षा का यह प्रयास, बेशक, दुर्लभ और मानवता से सराबोर है। हमें और भारत को अपने मूल
निवासी पर गर्व और गौरव का एहसास हो रहा है, क्योंकि ऐसे प्रयास में जिंदगी भी दांव पर लगी होती है। दीपक
ने यह निर्णय अपनी पत्नी और दोस्तों के विरोध के बावजूद लिया। उसका चयन सैकड़ों स्वयंसेवकों में से किया
गया था। इसके लिए कोई आर्थिक फायदा भी प्रस्तावित नहीं था। सिर्फ विश्व की करोड़ों आबादी को कोरोना
वायरस से बचाने की एक कोशिश का हिस्सा बनने की मानवीय इच्छा थी। अंततः दीपक और परीक्षण सफल रहे।
संबद्ध कंपनी ने टीके का उत्पादन भी शुरू कर दिया है, ताकि स्वीकृति मिलते ही टीका दुनिया के बाजार में
उपलब्ध हो सके। ऑक्सफोर्ड अब तीसरे चरण के मानवीय परीक्षणों की औपचारिकता भी पूरी कर रहा है। अमरीका
की मॉडर्ना कंपनी भी परीक्षण के इसी चरण में है। संभावना है कि इस साल के अंत या 2021 के आरंभ में
कोरोना का असरकारक टीका हमारे सामने होगा।