विनय गुप्ता
इक्कीसवीं शताब्दी का वर्ष 2020 पूरी दुनिया को असहनीय दुःख तथा अपनों के बिछुड़ने का ग़म दे गया। इस
वर्ष कोरोना जैसा महादानव वैश्विक महामारी के रूप में पैदा होकर विश्व के सभी देशों, राज्यों, महानगरों,
गांवों तथा घर-घर में पहुंचा। इस मनहूस अप्रत्याशित बीमारी ने करोड़ों लोगों को वायरस संक्रमण का शिकार
बना कर लाखों लोगों के जीवन को असमय मृत्यु के आगोश में समा दिया। अपने प्रियजनों के बिछुड़ने के दर्द
तथा चीखो-चिल्लाहट ने मनुष्य को झकझोर कर रख दिया। दुनिया के इतिहास में यह अप्रत्याशित, अभूतपूर्व,
अकल्पनीय एवं अविश्वसनीय घटना है। वर्ष 2020 वैश्विक लॉकडाउन, कोविड-19, कर्फ्यू, जनता कर्फ्यू,
कोरोना टैस्ट, पॉजि़टिव, नेगेटिव, क्वारंटाइन, कन्टेनमेंट एरिया, सोशल डिस्टैंसिंग, मास्क, सेनेटाइज़र, गाइड
लाइन्स, प्रोटोकॉल, थाली बजाओ, दीप जलाओ, एसओपी, ऑनलाइन, वर्चुअल मीटिंग, गूगल मीट, ज़ूम
मीटिंग, वैश्विक आर्थिक मंदी, रोजगार से छुट्टी, वेतन में कटौती, आंदोलन, धरना-प्रदर्शन, वुहान और चीन
आदि की शब्दावली एवं चर्चाओं में बीत गया। कोरोना ने समाचार प्रस्तुतिकरण, डिजिटल मीडिया, समाचार
पत्रों की संपूर्ण कार्यप्रणाली को पूर्ण रूप से बदल कर रख दिया। शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत, लोक कलाकारों
ने फेसबुक तथा यू-ट्यूब चैनलों का रुख़ किया।
कविता पाठ, मुशायरे, विभिन्न विषयों पर चर्चा, सेमिनार, वर्चुअल मीटिंग, रैलियां शिक्षण-प्रशिक्षण तथा
दुनिया भर का ज्ञान ऑनलाइन माध्यमों से बांटा गया। कोरोना ने मनुष्य की पूरी जीवन शैली तथा रंग-ढंग को
बदल दिया। मानवीय इतिहास में इस वैश्विक महामारी के महादानव के भय एवं आतंक के कारण लोग अपनी
जान बचाने के लिए अपने-अपने घरों में दुबक कर बैठ गए। दुनिया की सभी हवाई सेवाएं, रेलगाडि़यां, परिवहन
तथा सभी छोटे वाहन बंद हो जाना, सभी उद्योग धंधे, कारोबार, पर्यटन, शिक्षण संस्थान तथा सभी तरह की
आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं सृजनात्मक गतिविधियों का पूरी तरह से ठप हो जाना विश्व के इतिहास
की कोई सामान्य घटना नहीं है।
इस क्रूर घटना ने सभी मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारे तथा सभी धार्मिक संस्थान बंद करवा दिए। शिक्षा
के सरस्वती मंदिर कहे जाने वाले शिक्षण संस्थानों पर ताले लटक गए। इस महामारी से दुनिया की कई बड़ी-
बड़ी राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक हस्तियों को मौत के आगोश में समा लिया। इस संक्रमण से लाखों
लोगों की अप्रत्याशित मृत्यु ने उनके करोड़ों परिजनों को पीड़ा एवं वेदना दी। कभी भी न भूलने वाली इस दुखद
त्रासदी ने शिक्षा प्राप्त कर रहे वाले विद्यार्थियों, जीवन की उड़ान भर रहे युवाओं के रास्ते में रोड़े अटका कर
विघ्न पैदा करने की कोशिश की है। इस मनहूस कोरोना के कारण बैंकों का लोन लेकर अनेकों कारोबार चलाने
वाले उद्यमियों, शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों, परिवहन चालकों तथा छोटा-मोटा, व्यापार, उद्योग
चलाने वाले लोगों को बर्बाद करने की कोशिश की है।
कोरोना ने कई मानसिक अवसादों, शारीरिक रोगों, चिंताओं तथा आशंकाओं को दावत दी है। इस प्राकृतिक
आपदा ने दुनिया के प्रकृति प्रेमियों, पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों तथा शिक्षाविदों तथा राजनीतिज्ञों को
दहला कर आत्मचिंतन के लिए विवश कर दिया है। कोरोना वायरस संक्रमण की घटना विश्व के मानवीय
इतिहास की सबसे दुखद एवं पीड़ादायक घटना है। इस त्रासदी ने यह सोचने पर मजबूर किया है कि जीवन के
सभी प्रिय संबंध भौतिक, क्षणिक, लेन-देन के व्यवहार तथा स्वार्थ पर आधारित हैं। कोरोना से असमय हुई
मौतों ने अपने बिलखते प्रियजनों को स्पर्श, अंतिम दर्शनों, अंतिम रस्मों, दाह संस्कार, अस्थि-विसर्जन, क्रिया
कर्मों से भी महरूम होते हुए देखा है।
मां-बाप, भाई-बहन, सगे संबंधी, मित्र तथा दुनियावी संबंधों की इस सांसारिक यात्रा में मनुष्य को पहली बार
अकेले ही जीवन विचरण करने का एहसास हुआ है। यह घटना मानव इतिहास में कोई सामान्य और साधारण
घटना नहीं है। कोरोना वायरस संक्रमण काल ने मनुष्य को बहुत कुछ सोचने-समझने एवं आत्मचिंतन के लिए
मजबूर किया है। जीवन निरंतर चलता रहेगा, लेकिन बुद्धि के स्वामी तथा सर्वश्रेष्ठ मनुष्य को यह सोचना
चाहिए कि कोरोना जैसी अकल्पनीय घटना के लिए कौन दोषी है? कहीं इसके पीछे हमारी स्वार्थी मनोवृत्तियां
तथा मानसिक विकृतियां दोषी तो नहीं हैं? क्या यह मनुष्य जनित परिस्थिति है या एक प्राकृतिक आपदा है?
क्या यह ईश्वर के द्वारा लोभी और स्वार्थी मनुष्य के लिए सजा है? क्या मनुष्य के जीव-जंतुओं को उपयोग
और भोग का माध्यम समझने के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ चुका है? क्या यह प्राकृतिक वनस्पति एवं
जीव-जंतुओं के शोषण की घोर एवं भीषण प्रतिक्रिया है? क्या मनुष्य भी भौतिकवादी विकृतियों का शिकार
होकर दानव बन चुका है?
वैसे तो 30 दिसबर 2019 को चीन के वुहान से पैदा हुए कोविड-19 रूपी महादानव की बरसी भी है, लेकिन
असमय एवं अकाल मृत्यु वर्ष के अंत में सभी जीवित सौभाग्यशाली मनुष्यों के लिए अब समय आ गया है कि
वे इस कोरोना काल का सामूहिक दाह संस्कार कर अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित करें। ईश्वर से प्रार्थना है कि वे
दिवंगत क्रूर कोरोना वर्ष को शांति प्रदान कर अपने चरणों में स्थान दें। निश्चित रूप से 2020 को कोरोना
वायरस वर्ष के रूप में ही याद रखा जाएगा।
जहां इस वर्ष ने लोगों को तकलीफ, पीड़ा तथा वेदना दी, वहीं पर सभी क्षेत्रों में नए अवसरों, नई संभावनाओं
के द्वार भी खुले। यह वर्ष मनुष्य के लिए बहुत से प्रश्न छोड़ रहा है जिस पर हमें गंभीरतापूर्वक विचार करना
होगा अन्यथा भविष्य में भी हमें कोरोना वायरस जैसे दानवों की चुनौतियों से आशंकित रहना होगा। आशा है
कि नव वर्ष 2021 का नव सूर्योदय पिछले साल द्वारा दिए गए सभी दुखों को मिटाकर मरहम लगाने की
कोशिश करेगा। कामना के सिवाय कुछ कर भी नहीं सकते।