कोरोना: दुनिया के लिए क़हर व तबाही तो कुछ लोगों के लिए 'लूट का अवसर'

asiakhabar.com | April 23, 2020 | 12:17 pm IST
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संयोग गुप्ता

कोरोना रुपी महामारी ने वैश्विक महासंकट खड़ा कर दिया है। पूरा विश्व अनिश्चितता के ऐसे दौर से गुज़र रहा है
जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। विभिन्न छोटे बड़े देशों द्वारा ऐसे अनेक फ़ैसले लिए जा रहे हैं जो
आम लोगों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। अमरीकी कच्चे तेल का दाम विश्व इतिहास के अब तक के
सबसे निचले स्तर अर्थात ज़ीरो से भी नीचे पहुंच गया है। लॉक डाउन के चलते दुनिया के पहिये रुकने की वजह से

कच्चे तेल की मांग घट गई तथा कच्चे तेल के भण्डारण में कमी आने की वजह से तेल की क़ीमत में इस हद तक
गिरावट आई है। इस महासंकट में पूरे विश्व में करोड़ों लोगों ने अपने रोज़गार गंवा दिए हैं। लॉक डाउन के चलते
करोड़ों लोग घर से बेघर रहते हुए दो वक़्त की रोटी और छत की समस्या से जूझ रहे हैं। अब तो भूख, लाचारी
तथा अवसाद के चलते लोगों के मरने की ख़बरें भी आनी शुरू हो चुकी हैं। कई दूर दराज़ के इलाक़ों में भुखमरी से
बचने के लिए लोग नई नई ग़ैर पारम्परिक ख़ुराकें लेने के लिए मजबूर हैं। ज़ाहिर है ऐसे में मानवीय हृदय रखने
वाला प्रत्येक अमीर व ग़रीब व्यक्ति अपने सामर्थ्य के अनुसार समाज में लोगों की मदद कर रहा है। भारत में भी
बेघर व बेरोज़गार हो चुके लोगों को कच्चा राशन, पका हुआ खाना, दवाइयां यहाँ तक कि कई जगहों पर रक्तदान
करने तक की अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं। देश के सैकड़ों उद्योगपतियों, विशिष्ट लोगों, कॉर्पोरेट जगत के
अनेक लोगों, फ़िल्मी हस्तियों ने तो बढ़ चढ़ कर दान दिया ही है, बल्कि दान को लेकर कई ऐसी ख़बरें भी आ रही
हैं जो बेहद भावुक करने वाली हैं। मिसाल के तौर पर जम्मू-कश्मीर की एक बुजुर्ग मुस्लिम महिला ख़ालिदा बेगम
ने हज पर जाने के लिए जमा की गई अपनी 5 लाख रुपये की रक़म दान कर दी। 87 साल की ख़ालिदा बेगम ने
हज यात्रा के लिए पांच लाख रुपये जमा किए थे लेकिन कोरोना वायरस महामारी की वजह से उनकी हज यात्री टल
गई.वे चाहती हैं कि उनकी 5 लाख रुपये की रक़म कोरोना महामारी से जंग के बीच लॉकडाउन में लोगों की मदद
के लिए ग़रीब और ज़रूरतमंद लोगों में इस्तेमाल की जाए। ऐसी अनेक मिसालें सुनने को मिल रही हैं। मशहूर
फ़िल्म निर्माता प्रकाश राज तो मुंम्बई में लॉक डाउन शुरू होने के पहले दिन से ही बेसहारा लोगों को इस हद तक
आर्थिक सहायता पहुंचा रहे हैं की उनकी अपनी आर्थिक स्थिति डांवाडोल होने लगी है। परन्तु सलाम है उनके
हौसलों को कि उन्होंने कहा है कि वे बेसहारा लोगों की मदद करना जारी रखेंगे चाहे उन्हें इस काम के लिए क़र्ज़ ही
क्यों न लेना पड़े। ज़ाहिर है मानवता की यह मिसालें आज इसी लिए देखने को मिल रही हैं क्योंकि सभी
मानवतावादी लोग इस बात को बख़ूबी समझ व महसूस कर रहे हैं की मानवीय इतिहास की ऐसी त्रासदी इसके
पहले कभी सुनी व देखी नहीं गयी। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि यह हालात पूरी दुनिया के सामने क़हर व
तबाही का दृश्य पेश कर रहे हैं।
परन्तु इसी दानी व दयालु समाज में अनेक लोग ऐसे भी हैं जो इस संकटकालीन घड़ी में भी लूट खसोट, धनसंग्रह,
चोरी व अमानत में ख़यानत करने की अपनी प्रवृति से बाज़ नहीं आ रहे हैं। इंसानों पर आए इस महासंकट के दौर
में भी विकृत मानसिकता के लोग कहीं अकेले तो कहीं संगठित रूप से तो कहीं संस्थागत आधार पर लोगों को
लूटने में लगे हुए हैं। लगता है ऐसी मानसिकता के लोगों ने यह ग़लतफ़हमी पाली हुई है कि 'इन्हें कभी किसी बुरे
दौर से तो गुज़रना ही नहीं है और लूट खसोट का यही पैसा शायद इनके मोक्ष का माध्यम बनेगा'। मध्य प्रदेश से
प्राप्त जानकारी के अनुसार लॉकडाउन के दौरान पीडीएस के तहत गेंहू का जो आटा आटा मिलों में पिसवाकर दस
दस किलोग्राम के पैकेट ज़रूरत मंदों में बांटे जा रहे हैं, उनमें दस किलो के बजाए लगभग सात या साढ़े सात
किलो तक आटा ही पैक किया गया है। बताया जा रहा है कि ज़िला आपूर्ति नियंत्रक ने स्वयं स्वीकार किया है कि
आटा मिल मालिकों ने सौ किलो गेहूं के बदले केवल 90 किलो आटा ही वापस दिया है। कुछ राजनैतिक दल इसे
मध्य प्रदेश के एक बड़े आटा घोटाले का नाम दे रहे हैं। राजस्थान से लेकर असम तक के कई मुख्यमंत्रियों ने भी
अपने अपने राज्यों में मिलने वाली इसी तरह की शिकायतों के बाद जाँच के आदेश भी दिए हैं। क्या यह ऐसा वक़्त
है कि कुछ शातिर व पेशेवर भ्रष्ट लोग संकट के ऐसे समय में भी ग़रीबों के मुंह का निवाला छीन कर उन पैसों की
बंदर बाँट करें?
निश्चित रूप से विभिन्न राज्य सरकारों ने व्यवसायियों को सख़्त निर्देश दिये हैं कि आवश्यक वस्तुओं की
जमाख़ोरी न होने पाए और दुकानदार किसी चीज़ की मनमानी क़ीमत न वसूलने पाएं। ऐसा करने वालों के विरुद्ध

कठोर कार्रवाई करने के निर्देश भी जारी किये गए हैं। कई जगह पुलिस व दूसरे विभागीय अधिकारी इससे संबंधित
जाँच पड़ताल करते भी देखे गए। परन्तु इसके बावजूद विभिन्न राज्यों में कई शहरों से अनेक जमाख़ोर व भ्रष्ट
व्यवसायियों द्वारा सब्ज़ियों से लेकर अनेक खाद्य सामग्रियों यहाँ तक कि दवाइयों तक की मनमानी क़ीमतें वसूली
गईं। ख़बरें तो यहाँ तक हैं कि लॉक डाउन होने बावजूद कई जगहों पर शराब, सिगरेट व गुटका जैसी चीज़ों की
चोरी छुपे आपूर्ति भी की गयी और इनके मुंह मांगे पैसे भी वसूले गए। इसी प्रकार ज़रूरतमंदों की पंक्ति में भी कई
ऐसे अवांछनीय तत्व शामिल हैं जो बिना ज़रुरत के ही ज़रूरतमंदों के हक़ की सामग्री इकठ्ठा करते दिखाई दे रहे
हैं। ऐसे लोग ग़रीबों को बांटी जाने वाली सामग्री मजबूरी के नाम पर इकट्ठी करते हैं तथा ज़रूरत से ज़्यादा
इकट्ठी कर उसे बाज़ारों में सस्ते दामों पर बेच देते हैं। यह भी लालची व भ्रष्ट लोगों की उसी श्रेणी में आते हैं जो
यही समझते हैं कि कोरोना महामारी जैसा घोर संकट दुनिया के लिए भले ही क़हर व तबाही क्यों न हो परन्तु इन
लुटेरों के लिए तो यह 'लूट खसोट, धनसंग्रह व भ्रष्टाचार का ही सुनहरा अवसर' है।


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