-निर्मल रानी-
देश में एक बार फिर घोर संक्रमणकारी मर्ज़ कोरोना के संभावित विस्तार को लेकर अटकलों का बाज़ार गर्म है। कोरोना के लगातार बढ़ रहे मामलों ने पूरे देश को एक बार फिर चिंता में डाल दिया है। भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार कोरोना के नए मामलों के साथ-साथ उसका नया वैरिएंट जेएन.1 भी पैर पसारने लगा है। भारत में अबतक इस वायरस के कई मामले सामने आ चुके हैं। नए वैरिएंट को लेकर आईसीएमआर जियो सिक्वेंसिंग के माध्यम से जानकारी जुटाने में लगा हुआ है। परन्तु स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह भी कहा है कि इसे लेकर फ़िलहाल घबराने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि नए वैरिएंट की चपेट में आए अधिकांश लोगों का इलाज अब तक घर पर ही संभव हो सका है। फिर भी देश उन दिनों को भूल नहीं पा रहा जब भारत सहित विश्व के अधिकांश देश ‘लॉक डाउन’ से जूझ रहे थे। उस समय विश्व की अनेक सरकारों ने जहां कोरोना के वैश्विक प्रसार को रोकने के लिये पूरे विश्व की विमान सेवाओं को स्थगित कर दिया था वहीँ देश के भीतर रेल व बस सहित लगभग सभी सार्वजनिक यहाँ तक कि निजी वाहनों के आवागमन को भी कोरोनाकाल में प्रतिबंधित कर दिया गया था। माना जाता है किसी भी देश में महामारी के विस्तार में सबसे बड़ी भूमिका रेल प्रणाली की ही होती है। क्योंकि इसमें बड़ी संख्या में यात्री एक दूसरे के निकट आते जाते व बैठते हैं तथा देर तक और दूर तक साथ यात्रा करते हैं। इसलिये किसी भी महामारी के विस्तार में रेल सबसे अहम भूमिका निभाती है। अब एक बार फिर भारत में कोरोना के पैर पसारने की ख़बर आ रही है। इस बार यह एक नये वैरिएंट के साथ फैल रहा है। देश के लगभग सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं। कई एयर पोर्ट पर यात्रियों की प्रारंभिक व ज़रूरी जांच शुरू हो चुकी है। कुछ राज्यों ने मास्क अनिवार्य कर दिए हैं। सरकार की ओर से भी नागरिकों को कोरोना से बचाव सम्बन्धी दिशा निर्देश दिए जा रहे हैं। परन्तु सबसे बड़ा सवाल यह है कि देश की रेल व्यवस्था जिसे की कोरोना विस्तार का सबसे अहम कारक माना जाता है उसे लेकर सरकार और रेल मंत्रालय की तरफ़ से क्या तैयारियां हैं?
इत्तेफ़ाक़ से पिछले दिनों एक पारिवारिक विवाह समारोह में शिरकत करने के लिये लखनऊ जाने का मौक़ा मिला। कोरोना विस्तार के भय के साये में हो रही लखनऊ की यह रेल यात्रा बेहद चौकस होकर करनी पड़ी। परन्तु अफ़सोस की बात तो यह है कोरोना की दहशत के साये में भी ट्रेन में दुर्व्यवस्था, गंदिगी, विभागीय अवहेलना का वही आलम देखने को मिला जो आम तौर पर भारतीय रेल में हमेशा ही दिखाई देता है। मेरा आरक्षण 13307 गंगा सतलुज ट्रेन में था। अपराह्न क़रीब तीन बजे ट्रेन लखनऊ पहुंची। धनबाद से चलकर लखनऊ पहुँचने वाली ट्रेन के वातानुकूलित कक्ष में फ़र्श पर हर तरफ़ चादर कम्बल आदि फैले हुये थे। यह उन यात्रियों के थे जो धनबाद लखनऊ के बीच इसका इस्तेमाल कर छोड़ गए थे। परन्तु साथ चल रहे बेडिंग वितरण स्टाफ़ की अनदेखी व अकर्मण्यता के चलते उन्हें समेटा नहीं गया था जिसके चलते वह डिब्बे में इधर उधर गुज़रने वाले यात्रियों के जूतों की ठोकरें खा रहे थे। कई वातानुकूलित कक्ष तो ऐसे थे जिसके एक प्रवेश द्वार को इन्हीं बेड रोल वितरण स्टाफ़ द्वारा बेड रोल के बोरों से भरकर स्थाई रूप से बंद कर दिया गया था। इससे यात्रियों द्वारा कम्पार्टमेंट का एक ही दरवाज़ा प्रयोग में लाया जा रहा था जोकि उस डिब्बे में चढ़ने उतरने वाले यात्रियों के लिये काफ़ी भीड़ भरा व कष्टदायक था। दूसरी तरफ़ मेरे जैसे अनेक यात्री जो लखनऊ से अपराह्न 3 बजे सवार हुये थे उन्हें ठण्ड होने के बावजूद रात आठ बजे तक बेडिंग नहीं दी गयी।
उधर इसी ट्रेन के डिब्बे में टॉयलट से लेकर आवागमन के रास्तों में यहाँ तक कि शयन बर्थ पर गंदिगी का वह आलम था की जगह जगह कॉकरोच विचरण करते दिखाई दे रहे थे। वाश बेसिन ओवरफ़्लो हो रहे थे। टॉयलट में हैंड वाश नाम की कोई चीज़ नहीं। कोई सेनिटाइज़िंग का प्रबंध नहीं, बल्कि दुर्गन्धपूर्ण वातावरण था। इसके बजाये वातानुकूलित कक्ष में सारी रात आम यात्रियों की आवाजाही और टी टी की ‘अनुकम्पा’ से उन्हें एसी कोच में यात्रा के लिये इजाज़त देना जैसी अनेक बातें ऐसे थीं जिन्हें देखकर यह महसूस ही नहीं हो रहा था कि देश एक बार फिर कोरोना की दहशत में जी रहा है। और न ही इस बात का एहसास हो रहा था कि सरकार ख़ासकर रेल विभाग की ओर से भी ऐसे कोई उपाय किये गये हों जोकि कोरोना विस्तार को रोकने में मददगार साबित हों? यहां तक कि रेलवे स्टेशन पर भी इससे सम्बंधित कहीं कोई निर्देशावली नज़र नहीं आई। कहीं इससे सम्बंधित कोई उद्घोष होते नहीं सुनाई दिया। केवल अख़बार और कुछ टी वी चैनल्स के माध्यम से ही कोरोना सम्बन्धी कुछ सूचनायें मिल पा रही हैं। परन्तु ठीक इसके विपरीत उत्तर प्रदेश की पूरी राजधानी और रेलवे बस स्टेशन एयर पोर्ट बाज़ारें मॉल आदि मोदी की कथित गारंटी के प्रचार से पटे पड़े हैं। 22 जनवरी के अयोध्या कार्यक्रम का प्रचार ज़ोरों पर है। सरकार बड़े गर्व से हज़ारों करोड़ प्रचार पर ख़र्च कर यह बता रही है की कैसे वह देश के अस्सी करोड़ लोगों को ‘मुफ़्त ‘ राशन बाँट रही है।
सवाल यह है कि सरकार जनता के जितने पैसे अपनी पीठ थपथपाने वाले विज्ञापनों पर ख़र्च कर यह साबित करना चाहती है कि वर्तमान सरकार और उसके कुछ चुनिंदा नेता गोया मानव नहीं बल्कि ‘अवतार’ हैं उससे कहीं कम ख़र्च में जनता को कोरोना से बचाव के विषय पर जागरूक किया जा सकता है। रेल संचालन को केवल सफ़ाई, सेनिटाइज़िंग व यात्रियों को जागरूक कर और रेल चलित स्टाफ़ की ज़िम्मेदारियों का निर्धारण कर कोरोना नियंत्रण हेतु प्रभावी बनाया जा सकता है। कोरोना की दहशत के मध्य भारतीय रेल का स्वछ, कुशल व ज़िम्मेदारी पूर्ण संचालन बेहद ज़रूरी है।