कोरोना का खतरा और लापरवाही

asiakhabar.com | May 3, 2020 | 4:37 pm IST
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विनय गुप्ता

कोरोना वायरस इस समय जिस तरह से दुनियाभर को हलाकान किए है, वह लापरवाही की तरफ साफ इशारा कर
रहा है। वायरस का खतरा बढ़ता गया और सभी देश निश्चिंत बैठे रहे। समय रहते इसे रोकने की कवायद की जाती
तो आज देशों को मरघट न बनना पड़ता। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे देशों को काम छोड़ लाशें गिननी पड़ रही हैं।
भारत भी अछूता नहीं है। मामले भले ही कम हों, मगर हालात ऐसे नहीं हैं कि कहा जाए कि यहां वायरस नियंत्रण
में है। रही बात चीन की तो उसने अगर कोरोना वायरस के फैलते ही यानी दिसंबर, 2019 के प्रारंभ में जरूरी
एहतियाती कदम उठाए होते और दुनिया को भी बता दिया होता, तो 95 फीसदी नुकसान रोका जा सकता था।
दुनिया भर में मारे जाने वाले हर सौ में से 95 लोगों की जान बचाई जा सकती थी, संक्रमित होने वाले 95
फीसदी लोग सेहतमंद बने रह सकते थे। पूरी दुनिया में लॉकडाउन रोके जा सकते थे, आज घरों में कैद होकर भूखे
मरने के लिए मजबूर असंख्य गरीब तथा बुजुर्ग लोगों को इस स्थिति से बचाया जा सकता था, विश्व अर्थव्यवस्था
को तबाह होने से रोका जा सकता था तथा शेयर बाजार में इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट के कारण कंगाल हो
जाने वाले निवेशकों को सुरक्षित रखा जा सकता था।
लेकिन चीन में कम्युनिस्ट सरकार है, जो लोकतांत्रिक देशों की सरकारों की तरह पारदर्शी नहीं है। पूरी दुनिया को
घुटनों के बल टिका देने और अरबों लोगों की जिंदगी खतरे में डाल देने वाला चीन यह कहकर खुद को नायक के
रूप में पेश कर रहा है कि उसने तो अपने यहां पर हालात काबू कर लिए हैं। यह बात अलग है कि दुनिया चीन को
दोषी की तरह देख रही है। कोरोना वायरस का पहला मरीज 10 दिसंबर को वुहान में सामने आया था। इसके एक
महीने पहले यानी नवंबर में ही कुछ लोगों को वायरस का संक्रमण होने की दबी-छिपी बातें आने लगी थीं। चीन की
पहली गलती यह है कि यह खबर उसने जोर-शोर के साथ दबा दी। अगर यही बात भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में
होती, तो खबर दबती नहीं, बल्कि मीडिया, सोशल मीडिया, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और बहुत सारे दूसरे माध्यमों से
दुनिया भर में फैल चुकी होती। ऐसे वायरसों के खतरनाक वैश्विक इतिहास को देखते हुए भारत सरकार भी इसके
बारे में दूसरी सरकारों को जानकारी दे चुकी होती। हम पर विदेशी दबाव भी पड़ चुका होता। पर चीन ने ऐसा नहीं
किया। चीन की सरकार ने पहले तो वायरस फैलने की बात का यकीन ही नहीं किया और जब उसे यकीन हो भी
गया, तो उसका सारा जोर इसे छिपा देने पर था। जिन वैज्ञानिकों ने वायरस का पता लगाया, उनको चुप करा
दिया गया। उनके पास वायरसों के जो सैंपल थे, उनको भी नष्ट करने के लिए मजबूर कर दिया गया।
चीन की दूसरी गलती यह थी कि वायरस का संक्रमण शुरू होते ही उसका मुकाबला करने के बजाय उसने उसकी
अनदेखी की। उसने जनवरी में चीनी नववर्ष के मौके पर वुहान में सालाना पॉट लक डिनर की इजाजत दी। 40
हजार परिवार इस मौके पर अपने-अपने घरों से बना हुआ खाना लेकर आए और उसे साथ-साथ खाया। प्रति परिवार
तीन लोगों का भी औसत लगाएं, तो एक लाख से ज्यादा लोग उस वुहान में एकत्र हुए, जिसे आज हम कोरोना

वायरस के वैश्विक केंद्र के रूप में जानते हैं। बाद में जब वायरस बुरी तरह से फैल गया, तो स्पष्ट हुआ कि
संक्रमित लोगों में से बहुत सारे ऐसे हैं, जिन्होंने उस रात्रिभोज में हिस्सा लिया था।
चीन की तीसरी गलती यह थी कि उसके सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के लिए करीब साढ़े सात सौ करोड़ रुपए की
लागत से खरीदे गए अर्ली वार्निंग सिस्टम का दिसंबर के अंत तक इस्तेमाल ही नहीं किया गया। वर्ष 2002 और
2003 के बीच फैली सार्स की महामारी के बाद इसे खरीदा गया था, ताकि भविष्य में ऐसी कोई घटना होने पर
पहले ही चेतावनी मिल जाए। चीन की चौथी गलती यह थी कि 12 से 20 जनवरी के बीच वहां इंसानों से इंसानों
के बीच वायरस फैलने की बात साबित होने के बावजूद उसने यह महत्वपूर्ण तथ्य छिपा लिया। तब तक अस्पताल
के 15 कर्मचारी भी संक्रमित हो गए थे। अंत में यह कि आज जब चीन दूसरे देशों पर उंगली उठाने में लगा है,
तब विशेषज्ञों ने सिद्ध किया है कि अगर चीन ने एक हफ्ते पहले भी जरूरी कदम उठा लिए होते, तो मरीजों की
संख्या सिर्फ एक तिहाई होती। अगर वह तीन हफ्ते पहले चेत गया होता, तो आज दुनिया खुद को इतने भीषण
संकट में नहीं पाती। छोटी सी गलती से पूरी दुनिया तहस-नहस हो गई।


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