संयोग गुप्ता
कोरोना महामारी के चलते बदली दुनिया में भारत भी धीरे धीरे व्यापार नीति में बड़ा बदलाव करेगा। भारत का
प्रयास देशों के समूहों के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) में शामिल होने के बाद द्विपक्षीय आधार पर
व्यापार को बढ़ावा देने पर होगा। आर्थिक उदारीकरण के दौर के बाद भारत की छवि आयात हब की बन गई है।
भारत सरकार अब इस छवि से मुक्ति चाहती है। बीते दिनों भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आईसीईपी)
में फिर से शामिल न होने का संकेत दिया तो इसे चीन से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी तनातनी से
जोड़कर देखा गया। जबकि हकीकत यह है कि सरकार ऐसे समूहों के साथ हुए मुक्त व्यापार समझौते में लाभ से
अधिक हानि होने से चिंतित है। यह रणनीति प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण से जुड़ी है, जिसमें
आयात कम करने और निर्यात बढ़ाने पर जोर है। परिकल्पना यह है कि 90 के दशक से पहले हम जिन वस्तुओं
के निर्माण के मामले में आत्मनिर्भर थे और वर्तमान में जिन क्षेत्रों में हम इस दिशा में आत्मनिर्भर हो सकते हैं,
उन क्षेत्रों का पहले तेज गति से चुनाव हो।
बीते दो दशकों से देश में आयात और निर्यात में असंतुलन तेजी से बढ़ा है, जो व्यापार घाटे को जन्म देता है। 90
के दशक में उदारीकरण की नीति के बाद से भारत उन कई क्षेत्रों में भी आयात पर निर्भर हो गया, जिनमें उसकी
व्यापक पहचान थी। मसलन भारत दवाइयों के लिए कच्चा माल और बनारसी साड़ी के धागे के लिए भी चीन पर
निर्भर है। फिलहाल यह समीक्षा का दौर है। सहमति इस बात पर है कि हम भविष्य में देशों के उन समूहों के साथ
मुक्त व्यापार नहीं करेंगे, जिससे हमारा आयात और बढ़ जाए। निर्यात की संभावना अधिक होने की स्थिति में ही
ऐसा होगा। इस महामारी में वैश्विक अर्थव्यवस्था चरमराने के चलते संपन्न देश भी संरक्षणवादी नीति अपना रहे हैं।
जाहिर तौर पर ऐसे में देशों का जोर आयात पर कम और निर्यात पर ज्यादा होगा। अभी तीन दिन पहले विदेश
मंत्री एस जयशंकर ने भी व्यापार नीति में बड़े बदलाव के संकेत दिए थे। उन्होंने कहा था कि मुक्त व्यापार भारत
के लिए बड़े लाभ का सौदा नहीं रहा है। जरूरी नहीं है कि दुनिया से संपर्क साधे रखने के लिए मुक्त व्यापार का ही
रास्ता अपनाया जाए।
अब वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने संकेत दिए हैं कि भारत और अमेरिका के बीच बहुप्रतीक्षित बिजनेस
डील जल्दी हो सकती है। निवेश के मोर्चे पर भारत लगातार काम कर रहा है। सरकार कारोबार को आसान बनाने
पर जोर दे रही है। भारत को आने वाले वर्षों में विनिर्माण का मुख्य केंद्र बनाने की दिशा में तेजी से काम किया
जा रहा है। भारत का हमेशा से गुणवत्तापूर्ण उत्पादों और कम लागत पर फोकस रहा है। साथ ही भारत एक बड़ा
बाजार है। भारत अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन में खाली स्थान को भरने में सक्षम है। कोरोना संकट के बीच पूरी दुनिया
की निगाहें भारत पर हैं। पिछले कुछ वर्षों में देश में निवेश के बेहतर माहौल को तैयार किया गया है ताकि आने
वाले दिनों में दुनियाभर के निवेशकों के लिए भारत सबसे बेहतर ठिकाना हो।