सुरेंदर कुमार चोपड़ा
दुनियाभर में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा चार करोड़ को पार कर चुका है। दूसरी ओर राहत की खबर यह सामने
आई कि भारत में कोरोना संक्रमण का पहला दौर बीत चुका है और बीते तीन सप्ताह के दौरान कोरोना के नए
मामलों और इससे होने वाली मौतों में कमी आई है। स्वस्थ होने वालों की दर बढ़कर 88.03 फीसदी हो गई है
और देश में सक्रिय मरीजों की संख्या अब 8 लाख से कम है। हालांकि कुछ विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि कोरोना का
असली प्रभाव तो अभी आना बाकी है और अब नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल ने सर्दियों में कोरोना संक्रमण की
दूसरी लहर आने की बात कहकर विशेषज्ञों की इस आशंका की पुष्टि कर दी है। दरअसल महामारी की पहली लहर
थमने के बाद यूरोप में कोरोना संक्रमण फिर से बढ़ गया है, जहां अब तक 63 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो
चुके हैं और दुनिया के हर 100 संक्रमितों में से 34 व्यक्ति यूरोपीय देशों के ही हैं। ब्रिटेन में सर्दी शुरू होते ही
40 फीसदी मामले बढ़ गए हैं। यही वजह है कि कोरोना से निपटने के प्रयासों के लिए बने विशेषज्ञ पैनल के प्रमुख
वीके पॉल भारत में भी सर्दियों में संक्रमण की दूसरी लहर आने की आशंका जताते हुए कह रहे हैं कि देश बेहतर
स्थिति में है लेकिन अभी हमें लंबा रास्ता तय करना है।
भारत में त्यौहारी सीजन की शुरूआत हो चुकी है और जिस प्रकार देशभर में कोरोना को लेकर अब लापरवाही और
बेफिक्री का माहौल देखा जा रहा है, ऐसे में 20 अक्तूबर की शाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को त्यौहारी मौसम में
लोगों से वायरस के प्रति लापरवाही न बरतने की अपील करने के लिए राष्ट्र को सम्बोधित करना पड़ा। उनका सीधा
और स्पष्ट संदेश था कि जब तक दवाई नहीं, तब तक ढि़लाई नहीं। कारोना काल के दौरान राष्ट्र के नाम अपने
7वें सम्बोधन में प्रधानमंत्री का कहना था कि लॉकडाउन भले ही चला गया हो पर वायरस अभी जिंदा है, इसलिए
देशवासी कोरोना को हल्के में न ले। उनका कहना था कि ऐसे बहुत से वीडियो सामने आ रहे हैं, जिनमें दिख रहा
है कि लोगों ने सतर्कता बरतनी बंद कर दी है, जिसका कारण यह मिथ्या धारणा है कि कोरोना चला गया है या
जाने वाला है। देशवासियों को चेताते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे किसी भी नतीजे पर पहुंचने और उसके चलते
सावधानी का परिचय न देने के वैसे ही खतरनाक परिणाम हो सकते हैं, जैसे कई यूरोपीय देशों और अमेरिका में
देखने को मिल रहे हैं, जहां कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने सिर उठा लिया है और इसीलिए प्रतिबंधात्मक उपाय
वहां फिर से लागू करने पड़ रहे हैं।
कोरोना को लेकर प्रधानमंत्री को एक बार फिर जनता को इसीलिए सचेत करने के लिए सामने आना पड़ा क्योंकि
विभिन्न सरकारी एजेंसियां चेतावनियां दे रही हैं कि अगर अब पूरी एहतियात नहीं बरती गई तो कोरोना की दूसरी
लहर सर्दियों में आ सकती है, जो पहली लहर से भी ज्यादा भयावह होगी। प्रधानमंत्री द्वारा कोरोना को लेकर
बिल्कुल लापरवाह और बेफिक्र हो चुके लोगों को चेताया जाना बेहद जरूरी था क्योंकि अधिकांश लोग अब मानने
लगे हैं कि जब देश में करीब-करीब सभी कुछ खुल चुका है, जिंदगी पुरानी रफ्तार से दौड़ने लगी है, फिर भला
कोरोना अब उनका क्या बिगाड़ लेगा। प्रधानमंत्री ने अपने 12 मिनट के सम्बोधन में लोगों को भीड़ से बचने और
दो गज की दूरी अपनाने की हिदायतें दोहरायी लेकिन उनके इस सम्बोधन के बाद सरकारी तंत्र पर सवालिया
निशान लगाते कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न भी खड़े हुए हैं। मसलन, क्या कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए जारी किए
जाने वाले तमाम दिशा-निर्देश केवल आम जनता के लिए ही हैं? प्रधानमंत्री को कोरोना प्रोटोकॉल की लगातार
धज्जियां उड़ाते रहे राजनीतिक लोगों की जमात के लिए भी कुछ सख्त शब्द बोलने चाहिएं थे। एक तरफ जहां
अपने परिजनों के अंतिम संस्कार या वैवाहिक आयोजनों में गिनती के लोगों को शामिल होने की छूट है, वहीं
तमाम राजनीतिक दल विभिन्न आयोजनों में सैंकड़ों-हजारों लोगों की भीड़ जुटाते देखे जाते रहे हैं। आम जनता पर
कोरोना प्रोटोकॉल का जरा भी उल्लंघन होने पर कानून का डंडा बरस पड़ता है, उन्हें हर कदम पर जुर्माना भरना
पड़ता है लेकिन राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों को हर बंदिशों से छूट है, उन पर किसी का कोई जोर नहीं। कम से
कम इस बार के सम्बोधन में देशवासियों को प्रधानमंत्री से यह अपेक्षा तो अवश्य थी कि वे विभिन्न राजनीतिक
दलों और उनसे जुड़े लोगों को उनके ऐसे कृत्यों के लिए जमकर फटकार लगाएंगे लेकिन नेताओं की मनमानी और
लापरवाही पर उन्होंने कुछ नहीं कहा।
देश में इस समय एक अजीब सा माहौल है। एक ओर कोरोना से बचने के लिए बार-बार दो गज की दूरी अपनाने
की सलाह दी जाती रही है, वहीं तमाम रेलगाडि़यां, बसें तथा सार्वजनिक यातायात के अन्य साधन किसी बिना
सार्वजनिक दूरी का पालन कराए यात्रियों की पूरी क्षमता के साथ दौड़ रहे हैं। आखिर ऐसे में कोई दो गज की दूरी
के सिद्धांत को अपनाए भी तो कैसे? बिहार तथा मध्य प्रदेश में चुनावी दौर में जिस तरह सभी राजनीतिक दलों
द्वारा मनमानी भीड़ जुटाई जा रही है, क्या ऐसे में कहीं से भी ऐसा लगता है कि हम उस कोरोना संक्रमण के दौर
से गुजर रहे हैं, जिसके लिए प्रधानमंत्री आमजन को एहतियात बरतने की सलाह दे रहे हैं। जिस समय लोग
लॉकडाउन के दौर में घरों में बंद थे, उस दौरान भी रह-रहकर ऐसे दृश्य सामने आते रहे, जब राजनेता खुलकर
कोरोना प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते देखे गए। आम लोग अगर घर से बाहर बगैर मास्क के घूमते दिख जाएं तो
फौरन उन पर पांच सौ रुपये का जुर्माना ठोक दिया जाता है लेकिन दूसरी ओर राजनेता अगर बिना मास्क लगाए
हजारों लोगों की भीड़ भी एकत्रित कर लेते हैं तो उन पर कोई कार्रवाई नहीं, ऐसा क्यों? प्रधानमंत्री को आमजन के
दिलोदिमाग में कौंध रहे इन सवालों पर भी कुछ बोलना चाहिए। आखिर कोरोना प्रोटोकॉल तो आम और खास सभी
के लिए समान है, फिर केवल राजनेताओं को ही इससे छूट क्यों?
ऐसे कई नेताओं के बयान सामने आ चुके हैं, जिनमें वे कहते देखे गए हैं कि वे मास्क नहंी पहनते। यही नहीं,
उनके साथ जुटने वाले अधिकांश लोगों के चेहरों से भी अक्सर मास्क अक्सर नदारद होता है, दो गज की दूरी तो
बहुत दूर की कौड़ी है। मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने एक प्रेस कांफ्रैंस में साफतौर पर कहा था कि वे
मास्क नहीं पहनते, मास्क से होता ही क्या है? जब उनके बयान का मीडिया द्वारा कड़ा विरोध किया गया, तब
उन्होंने अपने उस बयान को लेकर माफी मांगी। प्रधानमंत्री के भाषणों और संदेशों का देशवासियों ने सदैव सम्मान
किया है और हर कदम पर उनके कहेनुसार उनके साथ चले भी हैं, ऐसे में बेहद जरूरी है कि प्रधानमंत्री नेताओं की
उस जमात को भी कड़ा संदेश दें, जो खुद को कानून से ऊपर समझकर कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाते रहे
हैं। इससे जनता में प्रधानमंत्री के प्रति सम्मान भी बढ़ेगा और लोग पहले की भांति भरोसे के साथ उनके बताए
मार्ग पर चलने को भी प्रेरित होंगे।
फिलहाल त्यौहारी सीजन में जिस प्रकार लोग कोरोना से पूरी तरह बेफिक्र होकर बगैर मास्क के सार्वजनिक स्थानों
पर घूमने लगे हैं, वह आने वाले दिनों में वाकई काफी खतरनाक साबित हो सकता है। विशेषज्ञों की तमाम
चेतावनियों पर गौर करने के बाद हमें समझ लेना चाहिए कि जब तक कोरोना की वैक्सीन नहीं आ जाती, तब तक
कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए मास्क का इस्तेमाल सबसे प्रभावी उपाय है। सर्दियों में कोरोना का संक्रमण तेजी
से बढ़ने की जिस तरह की रिपोर्टें आ रही हैं, ऐसे में बेहद जरूरी है कि हम लापरवाही बरतकर अपने साथ-साथ
दूसरों को भी मुश्किल में डालने से परहेज करें क्योंकि यदि हमने सामाजिक दूरी और मास्क पहनने जैसी हिदायतों
को दरकिनार किया तो संक्रमण का स्तर काफी ऊपर जा सकता है और हालात बिगड़ सकते हैं।