कोरोनावायरस को लेकर अमेरिका की नाराजगी और चीन का जैविक युद्ध?

asiakhabar.com | April 16, 2020 | 5:43 pm IST
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कोरोनावायरस को लेकर अमेरिका ने चीन पर काफी गंभीर आरोप लगाए हैं। अमेरिका की नाराजगी, वैश्विक
स्वास्थ्य संगठन पर भी देखने को मिली है। अमेरिका का आरोप है, कोरोनावायरस की बीमारी को लेकर चीन ने
सारी दुनिया को अंधेरे में रखा। नवंबर माह से चीन में कोरोनावायरस के संक्रमण से रोजाना हजारों लोगों की मौत
हो रही थी। लेकिन चीन का सरकारी मीडिया कोरोनावायरस के संक्रमण तथा उससे होने वाली मौतों को कई महीनों
तक छुपाता रहा। अमेरिका का आरोप है, कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने दायित्व का सही निर्वाह नहीं किया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के चेयरमैन और उनकी टीम चीन भी गई थी। उसके बाद भी कई महीनों तक
कोरोनावायरस के वास्तविक तथ्यों को विश्व स्वास्थ संगठन ने छुपाया है। इससे अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप नाराज
हैं। उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन को दी जाने वाली आर्थिक सहायता बंद करने का निर्णय लिया है।
जैविक युद्ध को लेकर अमेरिका और चीन का कई दशकों पुराना गहरा संबंध है। अब धीरे-धीरे यह सारी दुनिया के
सामने आ रहा है। 1990 – 91 में अमेरिका ने इराक के खिलाफ इसी तरह के आरोप लगाए थे। इराक के
राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन जैविक विषाणु हमले के लिए तैयारी कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की सहायता से अमेरिका
ने इराक के ऊपर जैविक युद्ध की आशंका को लेकर वैश्विक आर्थिक प्रतिबंध भी लगवाए थे। अंतरराष्ट्रीय दबाव में
इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की टीम को इराक में प्रवेश करने, और संयंत्रों
का निरीक्षण करने की भी छूट दी थी। अंतरराष्ट्रीय टीम संयंत्रों का निरीक्षण करके वापिस गई। अमेरिका उनके
निरीक्षण से संतुष्ट नहीं हुआ। इसी बीच इराक के सैन्य बलों ने 2 अगस्त 1990 को कुवैत पर हमला कर दिया।
तेल के उत्पादन और विपणन को लेकर इराक की, सऊदी अरब तथा अमेरिका के नेतृत्व में जो ओपेक तेल
उत्पादक देश वह नाराज थे। अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने सऊदी अरब में अमेरिका की सुरक्षा बलों को
तैनात किया। इसके बाद अमेरिका ने इराक के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए कई देशों की सेना तैयार कर संयुक्त
गठबंधन ने ईराक से युद्ध लड़ा। सऊदी अरब, इजिप्ट और संयुक्त राष्ट्र की सेना भी इसमें शामिल हुई थी।
अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से अनुमति लेकर इराक पर 17 जनवरी 1991 को पहला हवाई हमला
किया। उसके बाद 23 फरवरी को जमीनी युद्ध शुरू किया। जमीनी युद्ध में गठबंधन की सेना विजयी हुई। जैविक
युद्ध की परिकल्पना को लेकर पिछले चार दशक में महाशक्तिशाली देशों के बीच समय-समय पर आरोप-प्रत्यारोप
तथा आशंकाएं देखने को मिलती रही हैं। इराक के खिलाफ अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ को ढाल बनाकर जैविक
युद्ध की आशंका पर, इराक को तबाह कर दिया। कच्चे तेल के उत्पादन और ओपेक देशों की सलाह नहीं मानने
पर अमेरिका ने एक तरह से इराक पर कृत्रिम आरोप लगाकर ईराक पर कब्जा कर लिया। अमेरिका ने इराक के
राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को गिरफ्तार कर फॉसी पर चढ़ा दिया था। जैविक हमले का कृत्रिम आरोप लगा कर
अमेरिका ने ईराक को तवाह किया था। अब चीन के कोरोना वाइरस ने अमेरिका में तवाही मचा रखी है। अमेरिका
के राष्ट्रपति ट्रंप अब कोरोनावायरस को लेकर चीन के ऊपर जो आरोप लगा रहे हैं। उसको अमेरिका के संदर्भ मे
हल्के में नहीं लिया जा सकता है।
पिछले 100 वर्षों में चीन से कई वायरस निकले हैं। जिन्होंने पूरी दुनिया के देशों में मौत का तांडव मचाया था।
इसमें सबसे पहले प्लेग नामक बीमारी का भयंकर प्रकोप चीन से 19 वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। इसके बाद यह

धीरे-धीरे भारतीय उपमहाद्वीप से होते हुए उत्तरी एवं दक्षिण अफ्रीका यूरोप जापान फिलीपींस ऑस्ट्रेलिया एवं उत्तर
दक्षिण अमेरिका में फैला था। 19वीं शताब्दी के अंत तक प्लेग का प्रकोप पूरी तरह समाप्त मान लिया गया। इस
रोग ने 1994 में एक बार फिर भारत में भीषण तबाही मचाई थी। महाराष्ट्र का बीड जिला बयूबोनिक प्लेग एवं
गुजरात का सूरत शहर न्यूमोनिक प्लेग का मुख्य केंद्र बिंदु था। प्लेग के जीवाणुओं को येरसीनिया
पेस्टीस(पासचुरेला) पेस्टीस के नाम से जाना जाता है।
2002 में चीन के गुआंगडोंग प्रांत से सार्स नामक बीमारी चली थी। इस बीमारी ने एक महामारी का रूप लिया।
एशिया महाद्वीप में सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति उत्पन्न हो गई थी। भारत में सार्स वायरस का सबसे पहला
मामला गोवा में दर्ज किया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सार्स की बीमारी कोरोनावायरस के लक्षण
है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2002 में इस बीमारी से बचने के लिए गाइडलाइन जारी की थी। जिसमें संक्रमित
होने के बाद मरीज को बीमार होने में 2 से 10 दिन का समय लगता था। सिर दर्द और बदन दर्द, सार्स बीमारी
के शुरुआती लक्षण थे। वायरस के संक्रमित होने वाला मरीज को 104 फ़ारनहीट से भी ज्यादा बुखार हो जाता था।
बुखार के बाद सूखा बलगम भी निकलता था। कुछ दिनों बाद दम फूलने के साथ सांस की बीमारी बढ़ जाती थी। 2
से 7 दिनों के अंदर सूखी खांसी शुरू हो जाती थी। जब इस वायरस का संक्रमण हुआ, उस समय मृत्यु दर काफी
ज्यादा थी। लेकिन उसके बाद समुचित चिकित्सा उपलब्ध होने से सार्स कोरोनावायरस के 4 फ़ीसदी रोगी मृत्यु के
शिकार हो रहे हैं।
वर्तमान स्थिति में अमेरिका ने चीन के ऊपर कोरोनावायरस फैलाने का आरोप लगाया है। इसके पीछे निश्चित रूप
से अमेरिका की कोई बड़ी रणनीति भी होगी। कोरोनावायरस का संक्रमण दुनिया भर के 200 देशों में पहुंच गया
है। अमेरिका स्पेन इटली फ्रांस जर्मनी इंग्लैंड ईरान तुर्की और बेल्जियम में हजारों लोग की मौत कोरोनावायरस हो
चुकी है। अमेरिका को चीन के खिलाफ कोरोनावायरस युद्ध में कई देशों का समर्थन आसानी से मिलेगा। चीन ने
पिछले दो दशक में जिस तरह से सारी दुनिया के देशों को पीछे छोड़ते हुए अपना आर्थिक एवं सामरिक साम्राज्य में
विस्तार किया है। उससे चीन, अमेरिका के आंखों में किरकिरी बन कर गड़ रहा है। चीन के जापान भारत सहित
कई देशों से सीमा विवाद चल रहे हैं। वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंम्प को कोरोना वायरस के कारण मीडिया और
जनरोस का सामना पड़ रहा है। राष्ट्रपति चुनाव में चीन के विरुद्ध माहौल बनाकर अगला चुनाव जीतने की
रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। ऐसी स्थिति में अमेरिका का बिफरना एक बड़े खतरे का संकेत भी माना
जाना चाहिए।


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